
श्री मनोज जायसवाल
पिता-श्री अभय राम जायसवाल
माता-स्व.श्रीमती वीणा जायसवाल
जीवन संगिनी– श्रीमती धनेश्वरी जायसवाल
सन्तति- पुत्र 1. डीकेश जायसवाल 2. फलक जायसवाल
(साहित्य कला संगीत जगत को समर्पित)
-छत्तीसगढ़ के भक्तों से विशेष लगाव था श्रीसत्य साई का। उनके स्नेह का प्रतिफल है कि नवा रायपुर में सर्व सुविधायुक्त दिल के ईलाज के लिए निःशुल्क अस्पताल संचालित है।
देश के अन्य कोनों की तरह इस क्षेत्र में भी साईबाबा को मानने वाले भक्तों की तादात काफी है। महानदी तटीय हर गावों में साई भक्तों की टोलियां है। कई ऐसे भक्त हैं जो किसी भी संगठन में कभी शामिल नहीं हुए। इस तारतम्य स्वमेव उन सारी गतिविधियों से दूर स्वयं में बाबा को पूरे मन से मानते रहे हैं।
क्षेत्र के ग्राम शाहवाडा निवासी सुत्तु भैया को यह क्षेत्र कभी नहीं भूलेगा। आज भी शाहवाडा का जिक्र होने पर सुत्तु भइया के नाम याद किया जाता है। उन्हें स्थानीय लोग साईराम नाम लेकर पुकारते थे। वे अब नहीं है, पर उनकी यादें अमिट है। उनकी सुक्ष्म उपस्थिति जरूर लोगों के अंतस में है। उनके परिवारजन शाहवाडा में रहते हैं। उनके ज्येष्ठ पुत्र अरूण का विवाह इसी वर्ष हुआ है।
अतीत की बातें बताते चलें तब सुत्तु भइया आंध्रप्रदेश के पुट्पर्ती गये थ,े जब इस क्षेत्र में बाबाजी का कोई प्रचार प्रसार नहीं हुआ था। उन्होंने वहां से आने के बाद गांव गांव समितियां बनाई और हर गुरूवार को बाबाजी के भजन का आयोजन होने लगा।
हालांकि कुछ समयों बाद शरीर से कमजोर होने के बाद समितियांें में जाना उनके लिए संभव नहीं हो सका, अलबत्ता समितियां उतनी सक्रिय नहीं रही। लेकिन भक्तों की तादात कभी कम नहीं हुई अपितु बढती ही गई।
धमतरी जिला मुख्यालय से महानदी तट पर सटा ग्राम करेठा गांव में भी एक बाबाजी के भक्त हैं। इनके बारे में बता दूं तो ये पहले पहल तो श्रीसत्य साई बाबा को जानते तक नहीं थे। इन्हें जोर जबरदस्ती कर ले जाया गया। तब पुट्पर्ती में भींड आज की अपेक्षा कम होती थी जहां इन्हें बाबा जी से साक्षात मिलने का मौका मिला।
इनका किस्मत भी था कि गांव के पूरे भींड से इनसे बाबा जी ने बात किया।उनके बताए अनुसार श्रीसत्य साई बाबा ने उनसे उनकी इच्छा पूछी। श्रीसत्य साई बाबा के बालों की आकर्षक घुंघरालू बालों को देख कर इन्होंने सिर्फ एक मांग की कि बाबा जी आपके बालों जैसा मेरा भी बाल हो। फिर क्या था बाबा जी के आशीर्वाद से इनका बाल भी हुबहू वैसा हो गया।
करेठा में वे दीनदुखियों का आज भी वे इलाज करते हैं। ग्राम अरौद के एक साई भक्त जब पुट्टपर्ती गए थे तो उनका चप्पल वहां से गायब हो गया। उन्होंने पुट्टपर्ती रूकते तक बिना चप्पल के दिन बिताया। लेकिन जब अरौद आया तो सदैव के लिए चप्पल पहनना छोड दिया। क्षेत्र के लोग जानते हैं वे बिना चप्पल के चलते हैं। वे भी अब नहीं रहे, लेकिन श्रीसत्य साई समिति के माध्यम काफी कार्य किया।
आज श्रीसत्य साई समिति तो है,लेकिन वो सक्रियता नहीं है,जो उन दिनों हुआ करता था। लेकिन यह जरूर है कि साई बाबा को मानने वाले भक्तों की संख्या पहले से ज्यादा है।