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कवि स्व.नारायण लाल परमार की 22 वीं पुण्यतिथि पर साहित्यकारों स्मरण

(मनोज जायसवाल)

– मुझे गर्व है कि मैं बड़ी बेटी हूं और पिता से मुझे दुनिया में रचना नाम मिला।

धमतरी(सशक्त हस्ताक्षर)। जिला हिन्दी साहित्य समिति द्वारा यशस्वी गीतकार कवि स्व.नारायण लाल परमार की 22 वीं पुण्यतिथि पर सार्थक स्कूल धमतरी में साहित्यकारों ने श्रद्धा-सुमन अर्पित किये।

आयोजन में सर्वप्रथम यशस्वी गीतकार कवि स्व. नारायण लाल परमार की बड़ी सुपुत्री डॉ. रचना मिश्रा, धमतरी जिला हिन्दी साहित्य समिति के अध्यक्ष डुमन लाल ध्रुव, संरक्षक सुरजीत नवदीप, मदन मोहन खंडेलवाल, दीप शर्मा, डॉ. भूपेन्द्र सोनी,हेमनाथ यदु, नरेश चंद्र श्रोती, आकाशगिरी गोस्वामी,भूपेन्द्र मानिकपुरी, मोहम्मद तारिक, चंपेश्वर राजपूत, प्रेमशंकर चौबे ने तैल चित्र पर माल्यार्पण किया।

इस अवसर पर संरक्षक सुुरजीत नवदीप ने कहा – नारायण लाल परमार का साहित्य जीवन मूल्य की शाश्वता को प्रतिपादित किया है। परमारजी ने पूरे हिन्दुस्तान में धमतरी को साहित्यिक पहचान दी। अपने साहित्य में अनावश्यक जीवन विरोधी, हानिकारक मूल्यों को उखाड़ फेंकने तथा नष्ट करने के लिए जरुर संघर्ष किये क्योंकि रचनाकार जीवन के लिए जरूरी मूल्यों की रक्षा करता है।

पिता से नाम भी रचना मिला-डॉ.रचना मिश्रा
डॉ.रचना मिश्रा ने कहा कि – मैं नारायण लाल परमार की बड़ी बेटी हूं इसका मुझे गर्व है। गर्व इस बात का भी कि पिता ने मुझे नाम भी रचना दिया। उनके व्यक्तित्व कृतित्व पर पद्मश्री पंडित मुकुटधर पाण्डेय के माध्यम से पता चला कि वे कितने बड़े रचनाकार, गीतकार कवि हैं। अपने पिता के माध्यम से पाण्डेयजी के समीप जाने का सुअवसर प्राप्त हुआ। बाद में पिता के सम्मोहित कर देने वाली लेखनी से प्रभावित हुआ।

अध्यक्ष डुमन लाल ध्रुव ने कहा – दादा नारायण लाल परमार के साथ साहित्य के विभिन्न पक्षों पर बारी बारी से चर्चाएं होती थी। उनके श्रेष्ठ गीतकार कवि होने के पीछे मौजूद उनके संघर्ष को कहा जा सकता है। परमारजी गीत लिखते हुए अपनी संवेदनात्मक अनुभूति और जीवन यथार्थ के साक्षात्कार से जीवन अनुभवों के विस्तार और मनुष्य के भविष्य के प्रति सजग अपनी काव्य चेतना के सहारे उत्तर की तलाश करते थे। प्रलोभन थे बहुत लेकिन नियम संयम नहीं टूटे।

चर्चा के दौरान उनका अतीत, रचना के अनुभव सब क्रमशः मुखर होने लगते थे। मदनमोहन खंडेलवाल ने कहा – परमार जी में साहित्य के प्रति अनन्य समर्पण भाव था और नए रचनाकारों के प्रति सहज आकर्षण। परमार जी के गीत जब धर्मयुग से लेकर हिन्दूस्तान भर में प्रकाशित होते थे हम लोग भाव विभोर होकर पढ़ते थे। बड़े सम्मोहक गीतकार थे। हेमनाथ ने यदु ने कहा समय-समय पर श्रीपरमार  के रचनाओं ने मुझे आकर्षित किया। कविता की चित्रात्मक प्रस्तुति उसके कथ्य को ज्यादा जीवंत और प्रभावी बनाती है।

सचिव डॉ. भूपेन्द्र सोनी ने कहा कि किसी भी रचनाकार को पूरी गहराई के साथ जानने समझने के लिए धैर्य चाहिए। परमार के गीतों में शिल्प की नवीनता है। कवि दीप शर्मा ने बताया कि निकष परमार के साथ कक्षा पहली से लेकर पांचवीं तक की पढ़ाई मोती लाल नेहरू स्कूल धमतरी में एक साथ की। अच्छी मित्रता भी रही। जो परमार जी के सुपुत्र हैं। कक्षा में परमारजी की पाठ्यक्रम में सम्मिलित रचना को पढ़कर जानने की उत्सुकता दिनों दिन बढ़ने लगी क्योंकि जीवन में प्रतिदिन कुछ न कुछ सीखना होता है और जब यह पाने की खुशी मन के साथ एक रस हो जाती है तो वह दिन जीवन का सचमुच में उजला दिन होता था।

लौट कर आती है तारीखे मगर वो दिन लौट कर नही आता पिता के बाद कोई नही रहा जो मुश्किलों को आसान बनाता एक आंधी ऐसी चली की सपनों के किले ढह गए जज्बात भीतर सिसकते रहे जो थे अरमान सारे बह गए एक परिवार में मौत उसकी नही हुई जो मर गया मौत उनकी हुई जो रह गए। रंगकर्मी और कवि आकाश गिरी गोस्वामी ने काव्यपंक्ति के माध्यम से श्रद्धा सुमन अर्पित किया हरेक चीज यहां वक्त के हिसार में है, हरेक चीज बिलाखिर जुदाई देती है। इसी तरह मोहम्मद तारीख ने आसमान को भी सर झुकाना पड़ता है यहां ये बुलंद हौसले के किरदार कहां से आते हैं। चंपेश्वर राजपूत ने संस्मरण के माध्यम से परमार जी को याद किया।

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