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दोनों ने विदेशी जमीं पर बाते की पर माफ़ी एक ही क्यों मांगे?

(राकेश प्रताप सिंह परिहार)

वसुधैव कुटुम्बकम, विश्व गुरु, विश्वबंधुत्व का नारा आप सब सुन ही रहे हैं।अगर इनका शाब्दिक अर्थ समझते तो यह बहस ही नहीं होती। इन्हीं बातों के तारतम्य यह कहा जा रहा है कि यह आदमी बाहर जाकर यह कह रहा फिर यह बाहर कैसे हुआ।. ऐसेे में यह कहना कि कांग्रेस के सांसद राहुल गांधी द्वारा यह कहना कि मोदी देश के लोकतंत्र को बर्बाद कर रहे है , जो कि देश का अपमान है।लेकिन कैसे? मोदी देश नहीं है मोदी भी एक विचार धारा का नेतृत्व कर सरकार में आए है यह बहस का विषय हो सकता है कि जिस विचारधारा से जनसंघ या बीजेपी का जन्म हुआ है, उस मातृ संस्था का लोकतंत्र पर कभी विश्वास रहा है कि नहीं.. क्योंकि इतिहास में कई उदाहरण है, जब वे इटली और जर्मनी के पूर्व तानाशाह शासकों के विचारो से प्रभावित दिखे है।

पूर्व सरकारों को कोसते रहे

एक सांसदीय लोकतंत्र में विपक्ष की भूमिका क्या है ? विपक्ष का नेता विदेश जाए और कहे कि हमारे यहा सावन की हरियाली है। हमारी सरकार बहुत शानदार कार्य कर रही है बागो में बहार है। यह करने के लिए तो प्रधानमंत्री और उनके सारे मंत्री विदेश जा रहे है न.. विदेशों में। हाउडी मोदी … अबकी बार ट्रंप सरकार करते रहे है न …
विपक्ष का तो छोड़िए वर्तमान प्रधानमंत्री विदेशों में जाकर पूर्ववत सरकारों को कोसते रहे है।

लोकतांत्रिक मुल्यों पर एक साथ आएं

2015 के भारत में पैदा होने पर शर्म आती थी वाला बयान..! मेरे भारत के लोग 70 साल तक अंधेरे में जीते थे। क्या आप मुझे आशीर्वाद देंगे! मैं कोई राहुल गांधी का प्रशंसक नही पर राहुल गांधी ने जो बात कही है.. देखा जाय तो बहुत ही गंभीर है। इस पर चिंतन जरूरी है। उन्होंने कहा की भारत की सारी आंतरिक मामले हमारे अपने है उससे कैसे निपटना है वह हम भारत में निपटेंगे पर साथ ही साथ उन्होंने कहा जितने भी राष्ट्र लोकतांत्रिक हैं उन्हें लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए एक साथ आना होगा ।

उन्होंने अमेरिका और चाइना के लिए एक बात कही उन्होंने कहा कि चाइना जहा लोकतंत्र नहीं वो देश दुनिया भर उत्पादन से संबद्ध सारी नौकरियां सारे स्टार्टप अपने यहां ले गया यह सारे लोकतांत्रिक राष्ट्रों के लिए चिंता का विषय है…
आगे कहते है अगर सारे लोकतांत्रिक राष्ट्र नौकरियां वापस नहीं ला पाएंगे ऐसी स्थिति में हमारे युवाओं का क्या होगा? देश कैसे तरक्की करेगा. तो क्या लोकतंत्र खतरे में नही होगा।

राहुल गांधी जो भी लंदन में कहा उस पर बहस हो सकती है, पर हम क्या वो मुद्दे हम यहा भारत में नही उठा रहे है कि देश की सारी संवैधानिक संस्थाए खतरे में है उन्हे कार्य नही करने दिया जा रहा है.। नम्बे प्रतिशत से ज्यादा मामले ईडी सीबीआई द्वारा विपक्ष के नेताओं पर दर्ज किया जा रहा है.. और दोष सिद्धि का प्रतिशत क्या है? यैसे तमाम उदाहरण है और हम सब भारत वासी महसूस भी करते है..

तब मर्यादा का हनन नहीं

अभी हाल में ही सांसद राहुल गांधी को 45 मिनट तक संसद में बोलने का मौका दिया उनके भाषण में जहा जहा भी अदानी और मोदी के रिश्तों का जिक्र था उसे लोकसभा के रिकार्ड से हटा दिया उसके बाद उनका भाषण कितने मिनट का बचा। इन प्रस्थितियो में मेरा मानना है की राहुल गांधी ने बड़ा ही उम्दा ही काम किया है.. पर हम यह कह सकते है की उन्होंने जो लंदन में बोला वह लंदन में क्यू बोला..पर यह सरकार और उनके समर्थक व नोएडा मीडिया जितनी चर्चा कर रहा है क्या उतना चर्चा कोई और कर रहा हैं क्या .. तो यह कहा जासकता है की संवाद के नजरो से अच्छा हुआ है क्युकी राहुल गांधी को इतना कवरेज उनके अन्य कार्यों व भारत जोड़ो यात्रा पर नही मिला…जितना उनके लंदन के केंब्रिज में दिए गए भाषण को मिल गया हैं। प्रधानमंत्री बनने के बाद भी पहले के सरकारों को कोसते है और शर्मिंदा होने जैसे शब्दों का इस्तमाल करते है तब क्या देश के मर्यादा का हनन नहीं होता।

1976 की घटना है आपतकाल में स्व. जार्ज फर्नाडीज के ऊपर इनाम की घोषणा कर दी गई और साथ ही साथ यह घोषणा कर दिगई की उनका इनकाउंटर कर दिया जाय.. उन्हे कलकत्ता में गिरफ्तार कर लिया जाता है .. बीबीसी से लेकर उस समय के सभी मिडिया घराने को खबर कर दी गई की जार्ज फर्नाडीज की जान को खतरा है उस वक्त की जितनी विदेशो की सोशलिस्ट सारकरे थी उनके राष्ट्राध्यक्ष ने उस समय के प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को ट्रंकल और फोन के माध्यम से यह कहा की जार्ज फर्नाडीज को कुछ नही होना चाहिए तो क्या जार्ज फर्नाडीज देश द्रोही हो गये?

क्या यह लोकतंत्र की हत्या नहीं!

कल किस पार्टी का क्या इतिहास रहा है हम उसको पीछे छोड़ देते है उस नजरिया से न तो नरेंद्र दामोदर मोदी देश द्रोही है और न ही राहुल गांधी। सारे मुद्दो के पीछे की जड़ क्या है अदानी ग्रुप पर लगे आक्षेप। कांग्रेस चाहती है कि इस मामले में जेपीसी का गठन हो पर सरकार सांसद में जेपीसी की गठन तो छोड़िए इस पर चर्चा को भी तैयार नहीं है बल्कि अदानी और प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदर मोदी के रिश्तों पर राहुल गांधी द्वारा कहे गए सारे तथ्यों को लोकसभा के रिकार्ड से हटा दिया गया। यह क्या चार बार के चुने हुए सांसद की आवाज दबाना नहीं और क्या यह अलोकतांत्रिक नही है? और क्या यह लोकतंत्र की हत्या नही है?

भारत सरकार के चार मंत्री राजनाथ सिंह ,किरण रिजिजु, स्मृति ईरानी और भारत के सत्ता पक्ष के चुने हुए सांसद संसद में देश द्रोह का आरोप लगाया और देश से माफी मांगनी चाहिए कहा तो उसका जवाब सांसद में ही तो दिया जाएगा और सांसद राहुल गांधी को संसद में बोलने नही देना अलोकतांत्रिक नही है फिर लोकतंत्र का गला घोटा जारहा यह कहना क्या देशद्रोह है। सोलह मिनट तक लोकसभा टीवी को म्यूट कर देना क्या अलोकतांत्रिक नही है? इससे लोकतंत्र का गला नही घुटा?

नजीर आप भी पेश करें
अंतिम बात अगर सत्ता पक्ष इस बात के लिए अड़ा है की राहुल गांधी को लंदन में बोले गए उनके वक्तव्य के लिए माफी मांगनी चाहिए तो नरेंद्र दामोदर मोदी को विदेश सियोल, चीन ,लंदन में बोले गए उनके वक्तव्यों के लिए भी माफी मांग कर देश के सामने नजीर पेश कर विपक्ष की जुबान बंद कर देना चाहिए। बल्कि इससे भी एक कदम आगे बढ़कर अदानी मामले पर जेपीसी का गठन इस मुद्दे को ही खत्म कर देना चाहिए।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार व  अखिल भारतीय पत्रकार सुरक्षा समिति  के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं )

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