आलेख

‘एक रावण को सहस्त्रार्जुन ने देखा’ मनोज जायसवाल संपादक सशक्त हस्ताक्षर कांकेर छ.ग.

(मनोज जायसवाल)
आपने न सीरियल अपितु,अपना स्वर्णिम इतिहास देखा
अंगद ने कहा-सहस्रार्जुन ने तो तुम्हें मसल कर फेंक दिया था
– वही सहस्त्रबाहुअर्जुन जो कलार समाज के आराध्य माने जाते है।
एक बहोरि सहसभुज रेखा। धाइ धरा जिमि जंतु बिसेशा।
कौतुक लागि भवन लै आवा। सो पुलस्ति मुनि जाई छोड़ावा।।
महाभारत के अतिरिक्त रामायण में भी राज राजेश्वर भगवान सहस्त्रार्जुन का वर्णन मिलता है। राज लगाने का अर्थ सहस्त्रार्जुन राजाओं के राजा थे। बाल कांड के 8 वें सोपान में ऊपर लिखी बातें लिखी है,जिसे टीवी सीरियल रामायण में भी दिखाया गया है।

इसका अर्थ है कि एक रावण को सहस्त्रार्जुन ने देखा और उसने दौड़ कर उसको विचित्र जंतु की तरह समझ कर पकड़ लिया। तमाशे के लिए वह उसे घर ले आया तब पुलस्त मुनि ने जाकर उसे छुड़ाया। इस प्रकार अन्य वर्णन करते कहा कि तुम कौन सा रावण हो। बालि पुत्र अंगन जब राम के कहने पर लड़ाई पुर्व रावण को समझाने जाता है।

जहां अपना पराक्रम भी उन्हें दिखाता है बावजुद रावण नहीं समझता। रामायण में लंका कांड 16(ख) में इस हेतु यह भी उल्लेख है-
फूलइ फरइ न बेत जदपि सुधा बरषहि जलद।
मुरूख हृदय न चेत जौं गुर मिलहि बिरंचि सम।।

अर्थात– यद्वपि बादल अमृत सा जल बरसाते हैं, तो भी बेत फलता फुलता नहीं है। इसी प्रकार चाहे ब्रम्हा के समान ज्ञानी गुरू मिलें तो भी मुर्ख के हृदय में चेत(ज्ञान) नहीं होता। यही रावण के लिए लागू भी होता है। अंगन रावण को अपना पराक्रम का परिचय देते दुत्कारा फिर भी नहीं माना और अंततः युद्व का आगाज हुआ। यहां सब अद्भुत लीला है,जो आज के लिए भी प्रासंगिक है।

इससे पूर्व जब माता सीता को रावण चोरी कर ले जाया गया तब वायु मार्ग का खोज तब जबकि उस समय तकनीक विकसित नहीं थी इतना शार्ट कट मार्ग सोचने विवश करता है। गौर कीजिए नासिक का पंचवटी जहां सुर्पणखा ने राम,लक्ष्मण को विवाह के लिए जिद की जहां लक्ष्मण ने उनकी नासिका काट दी। कहा जाता है इसी के चलते इस नगर का नाम नासिक पड़ा।

आगे देखें तो पुष्पक विमान में सीता ने अपने वस्त्र,कंगन बांध कर नीचे फेंका ताकि राम को ढूंढने में सहायक हो सके वह वानरों के बीच वही स्थान ऋषमूक पर्वत जो हम्पी(कर्नाटक) में स्थित है। गिद्वराज जटायु ने इस दृश्य को देखा और खुद रावण से युद्व किया जहां रावण ने जटायु के पंख काट दिए वन मार्ग में राम लक्ष्मण सीता की खोज में मुलाकात होती है उस जगह का नाम दक्षिण भाषा में लेपक्षी बताया जाता है जो आंध्रप्रदेश में है। फिर यहां से होते श्रीलंका! कहने का मतलब कितना शार्टकट वायुमार्ग था। जहां मुझे चित्र प्राप्त हुआ उसे देखने से यह काफी अद्भुतता का अहसास कराया। जिज्ञासु मन ने आज के दौर में यह जानने की उत्कंठा तृप्त होते दिखायी दी। अथाह महासागर पर पुल बनाने समय रामेश्वरम में शिवलिंग की स्थापना की जहां हर भक्त आज दर्शन का लाभ लेते हैं,यहां जाने पर वानरसेना द्वारा बनाये गये पुल देखने का भी जिज्ञासा होता है,जो कि राम सेतु जो समुद्र में डूब गया पर उनके चिन्ह अपनी कहानी स्वयं बयां करते हैं।

साथ ही तब की उत्कृष्ट कला की विरासत हमें दे गये है। भगवान विश्वकर्मा जो तब के इंजीनियरिंग के ज्ञाता थे जिन्होंने से सारी रचनाएं की उनकी बात भी अहम में चुर रावण को समझाने का प्रयास किया पर नहीं माने। अब इस कड़ी में भगवान श्रीराम के हाथों लड़ाई में पूरी तरह हार का सामना करते हुए दुनिया में यह संदेश देंगे कि अधर्म पर धर्म और असत्य पर सत्य का विजय जरूर होता है ।

 

LEAVE A RESPONSE

error: Content is protected !!