(मनोज जायसवाल)
कुछ लोगों के जीवन में सामाजिक सोच ही नहीं है। उन्हें सिर्फ और सिर्फ उनकी अपनी जीगिषा से मतलब है। कुछ अमीर लोगों की सामाजिक सोच तो है,लेकिन वह लकवाग्रस्त हो गया है। दर्द से तो कराह रहे हैं,लेकिन यह बात घर कर गयी है अब यह ठीक नहीं होने वाली। उन्हें दवाओं,दुवाओं और तो और भोजन पर भी शायद विश्वास नहीं रहा कि उससे भी पेट भरेगा कि नहीं। कुछ लोग चेतनावस्था में रह कर अचेतावस्था में है। नीरसतापूर्ण,खानाबदोश जीवन की तरह सामाजिक सोच को भी सोच से नहीं देख रहे हैं। इनके पास वही नीरसतापूर्ण जवाब बीते अतीत को लेकर नकारात्मक सोच है,कि अभी तक तो किसी ने चमत्कार नहीं दिखाया,अब चमत्कार की क्या आस रखें।
जरूरी नहीं है कि आप किसी समाज का प्रतिनिधित्व करें। आपके हाथों में मतदान जो कि स्वयं एक बड़ा अधिकार है,का उपयोग कर अपनी जागृति से परिवर्तन की ओर बढ़ सकते हैं,यदि कुछ नया देखना है तो! सोच हमेशा बदलाव का होना चाहिए देखें कि हमारा संगठन और कितना बेहतर हमारे सामाजिक जीवन में ला सकता है। समाज की कितनी विषमताओं को हटा सकता है। समाज के ही अंदर तिरस्कारित लोगों का कितना ध्यान रख पाता है।
गौरवशाली परंपराओं के इस समाज को और कितना ऊंचाईयों तक ले जा सकता है। सामाजिक महात्वाकांक्षाओं को किस प्रकार फलीभूत किया जा सकता है।
रक्त नहीं हो सकता पानी! बशर्तें आपके ठंडी पड़ी सोच में उबाल आना चाहिए। सिर्फ अपने लोगों की अच्छाई को लेकर नशे के मद जैसी बातों में ना रहकर ना चाहते हुए भी परिवर्तन का सोच होना जरूरी है। तभी आप देख सकेंगे कि क्या परिवर्तन होगा? वरना एक लत के चलते एक ही सोच अपने रिश्ते, अपने संबंध के साथ ही कुछ मजबूरी हो तो आप परिवर्तन लाने का कैसे सोच सकते हैं?
आपका सहयोग,विचार साम्य रहे तो आने वाले क्षण में आप भी पूरी स्फूर्ति से सीना ठोक कर कहेंगे बदलाव यानि परिवर्तन प्रकृति का नियम है,उसे नही रोका जा सकता। अतएव हम परिवर्तन के साथ रहे तो परिवर्तन के विजयश्री पर आपकी खुशी का ठिकाना नहीं रहेगा। वरना आपकी सोच ठंडी रही तो वही निरसतापूर्ण बातें घर कर रहेंगी। अधिकार,विचार आपके स्वयं के हाथों में है। पुराने विचारों पर मंथन छोड़े कुछ नया देखने का विचार करें। उठिये,जागिए नया सवेरा का आगाज हो चुका है। परिवर्तन के साथ चलिए।