(मनोज जायसवाल)
– स्वतंत्रता का प्रयोग गलत अर्थों से किए जाने की सजा मिलेगी जरूर।
स्वच्छंदता के नाम पर तो तुमने अपनी संस्कार को भी भूला दिया। ऐसा भूला दिया कि परिवार के संस्कार क्या होते हैं,रिश्तों का सम्मान किस तरह किया जाना है! यह याद ही नहीं रहा। रिश्ते याद करने से भी क्या तुमने तो अपने दुष्कृत्यों से समाज में अपनी जाति को ही बदनाम करने पर तुले हो। उस जाति नहीं मानव जाति के भी होकर किसी के बाप में दम है,क्या? की बात कर रहे हो। यह तुम नहीं तुम्हारा अहं बोल रहा है। जब संस्कारित समाज जिसे किसी पर्दे की आड़ में करता है,तुम नग्नता का प्रदर्शन सरेआम कर रहे हो।
तुम्हें बाहरी हवा हवाई भले ही उचित लगे पर तुम्हें इसकी सजा मिलेगी नहीं अपितु मिल रही है। बस उसे अनुभव करने की जरूरत है। परिवार में प्यार के कई रिश्ते होते हैं, सबकी अपनी अहमियत और मान मर्यादाएं होती है। स्वच्छंदता और किसी के द्वारा जीवन सफर में तल्ख क्षणिक सहयोग को जिस प्रकार से अपनी संपदा मान रही हो वह दरअसल कोई ठोस आधार नहीं है।
ईश्वर ने सबको कर्म करने के लिए भेजा है। किसी के सहयोग या किसी के प्यार से ही जीवन नहीं चला करती। प्यार के साथ कर्तव्य जो बड़ी चीज है। लेकिन कर्तव्य तो शायद तुम्हें याद ही नहीं रहा,ना अपने मान सम्मान की फिक्र। अब फिक्र होगी भी क्यों? तनिक संस्कार मिला होता या फिर परिवार के मिले संस्कार का कद्र की होती तो समाज,परिवार आम लोगों में सम्मान पाने का पात्र होती।
लोग सिर्फ पेट की तृप्ति के लिए नहीं कमाते। एक सामान्य ग्रामीण परिवार में पांच हजार के राशन महीने चलाने के लिए भरपूर होता है। बाकी जो लोग खर्च करते हैं वह सभी कहीं न कहीं अपने आत्म सम्मान के लिए ही होता है। क्षणिक जिंदगी में अपने बुते अपना कुछ पहचान ही नहीं बना पाए तो फिर ऐसी जिंदगी भी क्या। पेट तो किसी तरह जानवर भी भर लिया करते हैं।
सोचते होगे कि अपने कृत्य का किसको पता है? ऐसी भूल मत करना। इस संबंध में लोगों द्वारा कहा जाता है कि उपर वाला सब देख रहा है लेकिन मैं कहूं कि उपर वाला नहीं अपितु मनुष्य रूपी भगवान भी सुक्ष्म रूप में हमारे आसपास हैं वे सब देख रहे हैं। प्रकृति को हर क्षेत्र में चित्रित और जीवंत करने वाले लेखक तो चेहरे के भाव से ही समझ जाते हैं।
अपने मां,बाप से दूर रह कर कहीं दूर में किसी ने न जानने पहचानने की बातें भूला देना। विदेशी संस्कृति का अनुसरण करते अर्धनग्नता का प्रदर्शन करते सस्ती लोकप्रियता की चाहत एक दिन गर्त में ले जाएगी। अपनी स्वतंत्रता के नाम अपनी नग्नता का प्रदर्शन एक दिन गर्त में ले जाएंगी। वैसे भी तुम्हारे पीछे तुम्हें कोई अच्छा करने के नाम पूज नहीं रहा,गलत को गलत ही समाज मान रहा है।
गरीब रह कर भी अपने स्वाभिमानपूर्वक जीने और सम्मान प्राप्त करने के लिए सब कुछ है। बस अपनी ईमानदारी और उपर लिखे गये कर्तव्य की बातें याद रखना पर्याप्त है। अपने को गैर संस्कारिक बना कर समाज के रीति रिवाजों और रिश्तों की मर्यादाएं तार तार करने की सजा तो यहीं से मिलनी शुरू हो जाती है, कि कोई भी अच्छे संस्कार का व्यक्ति उनके साथ चलना नहीं चाहता। वैसे भी वर्तमान गवाह है और कहा भी गया है कि जैसी संगति वैसी गति। जिन्हें अच्छे परिवार में संस्कार का पालन किया है,जिनकी छवि कभी तनिक भी डिगी नहीं है वह भला गलत संस्कार के व्यक्ति के साथ जीवन सफर ही नहीं सामान्य रूप से भी क्यों चलना चाहेगा?