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क्या है,प्यार बताओ ना? मनोज जायसवाल संपादक सशक्त हस्ताक्षर कांकेर (छ.ग.)

(मनोज जायसवाल)
‘प्रेम’ शास्वत सत्य है। ‘प्रेम’ पर कोई काव्य,लेख,कहानी लिखकर तो कला संगीत जगत में कोई मधुर आवाजों में गाकर तो कोई प्रेम की धून बजा कर फिर कोई प्रदर्शन के स्वरूप में सिने चलचित्र पटल पर इसके साथ आधुनिक कई माध्यमों भी महान हुए है।  यह ‘प्रेम’ के स्वरूप के गुणगान करते वाले जब दुनिया में मशहूर हुए तो ‘प्रेम’ कैसा होगा? यह विचारणीय है। प्रेम विराट विषय है,जिस पर सीमित आलेख से नहीं समझा जा सकता। आज के तथाकथित प्रेम से दूर आत्मिक प्रेम वह ऊर्जा भी है,जो जीने की लालसा जगा कर प्रगति पथ पर प्रशस्त करता है। बावजूद आज भी प्यार को संभवतया जाना नहीं जा सका है।

दुनिया के हर प्राणी प्रेम को भावों के साथ पालन करते हैं। किसी वन्य प्राणी,जीव-जंतुओं को जोड़ियों और संगठन के रूप में देखा जा सकता है। इनसे आप विलग करके देखो! दूसरी ओर मनुष्य आज अपनत्व भाव खोने में गुरेज नहीं कर रहा। अपनत्व भाव नहीं होने से वह अपने में ही अलग-थलग दिखायी पड़ता है। अपनी वाणी से, शब्द से,कलम से मनोभावों से,नीति और नीयत से किसी के अंतस को ठेस ना लगे इन भावों को आत्मसात कर चलना भी प्रेम का ही शायद सिद्धांत  हो सकता है।

अपने को वह उपेक्षित मानता है,लेकिन अपनत्व भाव को संजोना नहीं चाहता। अपने तक सीमित रहने की स्वार्थ भावना अंततः उनमें हीन भावना लाती है। यही हीन भावना के चलते समाज में खुदकुशी एवं अन्य वारदातें होती है,जो जनक है।

अपनों के साथ अपनत्व भाव कायम रखे।अपनों से प्रेम बनाए रखें। प्रेम भावों के साथ आपके रूतबे,वैभव का कोई संबंध नहीं है। शास्वत सत्य प्रेम है,जिसके साथ चलें।

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