
(मनोज जायसवाल)
-भगवान श्रीराम की आस्था के नाम निभाये जाते हैं भांजा, भांजी के पवित्र रिश्ते
भांजी की शादी में पाणिग्रहण पर चरण धोकर जल पान कर छत्तीसगढ़ की लोक सांस्कृतिक परंपराओं को हम आज भी बनाये रखे हुए हैं। यहां की लोक सांस्कृतिक परंपराएं ही है,जो हमें सबसे अलग पहचान दिलाती है और इन परंपराओं का सशक्त आधार है,भगवान श्रीराम से जुड़ी वो सब बातें। बता दें त्रेता युग में देश का हमारा आज का छत्तीसगढ़ प्रदेश का क्षेत्र दण्डकारणय एवं कोसल नाम से जाना जाता था।
यहां के नरेश भानुमंत थे। वाल्मिकी रामायण के मुताबिक अयोध्या के युवराज राजा दशरथ के राज्याभिषेक में भानुमंत भी आमंत्रित थे। कौशल नरेश भानुमंत के साथ राजकन्या भानुमति भी वहां गई थी,जिन्हें देश राजा दशरथ आकर्शित हो गये। कौशल नरेश से विवाह का प्रस्ताव रखा,जहां वैवाहिक संबंध स्थापित हुआ। कौशल क्षेत्र की होने के चलते भानुमति का नाम कौशिल्या कहा जाने लगा। इनसे भगवान श्रीराम का जन्म हुआ। कौशल क्षेत्र के लोग माता कौशिल्या को बहन मानकर बहन के पुत्र के नाम भगवान श्रीराम को भांजा मानते पैर छूकर आर्शीवाद लिया जाता था,जो आज संपूर्ण छत्तीसगढ़ में सभी जाति संप्रदाय में निभायी जाती है। छत्तीसगढ़ में भांजा के साथ भांजी के पैर छुने की परंपरा है।
जीवन के अभिन्न विवाह संस्कार में पाणिग्रहण अवसर पर टिकावन में भांजी भांजे जिनकी शादी हो कांस्य के नये बर्तन में पैर धुला कर उस जल का पान किया जाता है। 126 तालाबों के लिए मशहूर रायपुर जिले का चंदखुरी के जलसेन तालाब के बीच माता कौशिल्या का दुनिया में एकमात्र मंदिर है। इसे श्रीराम का ननिहाल कहा जाता है। रामायण के बालकाण्ड में इसका चंद्रखुरी का उल्लेख मिलता है,जो तब चंद्रपुरी था। छत्तीसगढ़ की संस्कृति में लोगों के नाम के साथ राम तो अभिवादन में राम राम किया जाता रहा है। श्रीराम अपने 14 वर्ष के वनवास काल की अवधि में 10 वर्ष तो छत्तीसगढ़ में बिताये जाने की बात कही जाती है।
यहां से चाैमासा बिताने के बाद आगे के लिए प्रवेश किया था। यहां की लोकप्रिय भुपेश बघेल सरकार ने भगवान श्रीराम के संपूर्ण छत्तीसगढ़ में बिताये स्थानों को चिन्हांकित करते हुए उसे विकसित करने पर जोर देकर बजट में प्रावधान किया है, राम वन गमन पथ विकसित किये जाने पर निश्चित ही पर्यटन क्षेत्र में लाभ होगा साथ ही इस अद्भुत विरासत को भी सभी लोग देख पाएंगे।छत्तीसगढ़ में भगवान श्रीराम को प्रतीक मान कर जीवन के महती संस्कारों में निभायी जा रही रस्में अतीत से वर्तमान और आगे भी निभायी जाती रहेंगी।