”मिनीमाता जी साक्षात् करूणा और ममता की मूर्ति” डॉ रामायण प्रसाद टण्डन वरिष्ठ साहित्यकार कांकेर छ.ग.
साहित्यकार परिचय-
डॉ. रामायण प्रसाद टण्डन
जन्म तिथि-09 दिसंबर 1965 नवापारा जिला-बिलासपुर (म0प्र0) वर्तमान जिला-कोरबा (छ.ग.)
शिक्षा-एम.ए.एम.फिल.पी-एच.डी.(हिन्दी)
माता/पिता –स्व. श्री बाबूलाल टण्डन-श्रीमती सुहावन टण्डन
प्रकाशन – हिन्दी साहित्य को समर्पित डॉ.रामायण प्रसाद टण्डन जी भारत के छत्तीसगढ़ राज्य में हिन्दी के स्तंभ कहे जाते हैं। हिन्दी की जितनी सेवा उन्होंने शिक्षक के रूप में की उतनी ही सेवा एक लेखक, कवि और एक शोधकर्ता के रूप में भी उनकी लिखी पुस्तकों में-1. संत गुरू घासीदास की सतवाणी 2. भारतीय समाज में अंधविश्वास और नारी उत्पीड़न 3. समकालीन उपन्यासों में व्यक्त नारी यातना 4. समता की चाह: नारी और दलित साहित्य 5. दलित साहित्य समकालीन विमर्श 6. कथा-रस 7. दलित साहित्य समकालीन विमर्श का समीक्षात्मक विवेचन 8. हिन्दी साहित्य के इतिहास का अनुसंधान परक अध्ययन 9. भारतभूमि में सतनाम आंदोलन की प्रासंगिकता: तब भी और अब भी (सतक्रांति के पुरोधा गुरू घासीदास जी एवं गुरू बालकदास जी) 10. भारतीय साहित्य: एक शोधात्मक अध्ययन 11. राजा गुरू बालकदास जी (खण्ड काव्य) प्रमुख हैं। 12. सहोद्रा माता (खण्ड काव्य) और 13. गुरू अमरदास (खण्ड काव्य) प्रकाशनाधीन हैं। इसके अलावा देश के उच्च स्तरीय प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में, राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी सेमिनार में अब तक कुल 257 शोधात्मक लेख, आलेख, समीक्षा, चिंतन, विविधा तथा 60 से भी अधिक शोध पत्र प्रकाशित हैं। आप महाविद्यालय वार्षिक पत्रिका ‘‘उन्मेष’’ के संपादक एवं ‘‘सतनाम संदेश’’ मासिक पत्रिका के सह-संपादक भी हैं। मथुरा उत्तर प्रदेश से प्रकाशित मासिक पत्रिका ‘‘डिप्रेस्ड एक्सप्रेस’’ राष्ट्रीय स्तरीय पत्रिका हिन्दी मासिक के संरक्षक तथा ‘‘बहुजन संगठन बुलेटिन’’ हिन्दी मासिक पत्रिका के सह-संपादक तथा ‘‘सत्यदीप ‘आभा’ मासिक हिन्दी पत्रिका के सह-संपादक, साथ ही 10 दिसम्बर 2000 से निरंतर संगत साहित्य परिषद एवं पाठक मंच कांकेर छ.ग और अप्रैल 1996 से निरंतर जिला अध्यक्ष-पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी सृजनपीठ कांकेर छ.ग. और साथ ही 27 मार्च 2008 से भारतीय दलित साहित्य अकादमी कांकेर जिला-उत्तर बस्तर कांकेर छ.ग. और अभी वर्तमान में ‘‘इंडियन सतनामी समाज ऑर्गनाईजेशन’’ (अधिकारी/कर्मचारी प्रकोष्ठ) के प्रदेश उपाध्यक्ष.के रूप में निरंतर कार्यरत भी हैं।
पुरस्कार/सम्मान – 1-American biographical Institute for prestigious fite *Man of the year award 2004*research board of advisors (member since 2005 certificate received)
2. मानव कल्याण सेवा सम्मान 2005 भारतीय दलित साहित्य अकादमी छत्तीसगढ़ 3. बहुजन संगठक अवार्ड 2008 भारतीय दलित साहित्य अकादमी छत्तीसगढ़ 4. पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी स्मृति प्रोत्साहन पुरस्कार 2007(बख्शी जयंती समारोह में महामहिम राज्यपाल श्री ई.एस.एल. नरसिंम्हन जी के कर कमलों से सम्मानित। इनके अलावा लगभग दो दर्जन से भी अधिक संस्थाओं द्वारा आप सम्मानित हो चुके हैं।) उल्लेखनीय बातें यह है कि आप विदेश यात्रा भी कर चुके हैं जिसमें 11वां विश्व हिन्दी सम्मेलन मॉरीसस 16 से 18 अगस्त 2018 को बस्तर संभाग के छत्तीसगढ़ भारत की ओर से प्रतिनिधित्व करते हुए तीन दिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन में भाग लेकर प्रशस्ति-पत्र प्रतीक चिन्ह आदि से सम्मानित हुए हैं।
सम्प्रति – प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष, शोध-निर्देशक (हिन्दी) शासकीय इन्दरू केंवट कन्या स्नातकोत्तर महाविद्यालय कांकेर, जिला- कांकेर (छत्तीसगढ़) में अध्यापनरत हैं। तथा वर्तमान में शहीद महेन्द्र कर्मा विश्वविद्यालय बस्तर जगदलपुर छत्तीसगढ़ की ओर से हिन्दी अध्ययन मण्डल के ‘‘अध्यक्ष’’ के रूप में मनोनित होकर निरंतर कार्यरत भी हैं।
सम्पर्क –मकान नं.90, आदर्श नगर कांकेर, जिला- कांकेर, छत्तीसगढ़ पिन-494-334 चलभाष-9424289312/8319332002
अविभाजित मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ की प्रथम महिला सांसद मिनीमाता जी साक्षात् करूणा और ममता की मूर्ति थीं !
11 अगस्त 2023-51 वीं पुण्यतिथि पर विशेष लेख
‘‘ पति के लिए ‘चरित्र’ संतान के लिए ‘ममता’ समाज के लिए ‘शील’ विश्व के लिए ‘दया’ तथा जीव मात्र के लिए ‘करूणा’ और ममता की साक्षात् प्रतिमूर्ति आनंदमयी गुरू मां मिनी माता जी राष्ट्र की उन महिलाओं में एक थीं। जो कि आज सर्व समाज के महिलाओं के लिए प्रेरणा स्त्रोत हैं। तथा श्रद्धा की पात्रा भी हैं, तथा अनुकरणीय भी हैं।’’
पूज्यनीय माताजी का जन्म प्रथम महायुद्ध के पूर्व सन् 1913 के असम के एक दौलपुर गांव में ठीक होलिका दहन के दिन रात्रि को ग्यारह बजे हुआ था तथा इनका सुन्दर सौम्य और लावण्य रूप देखकर इनका नामकरण असम की प्रसिद्ध अराध्य देवी मीनाक्षी के नाम पर ही मीनाक्षी रखा गया था जो कि प्रेमवश मीनाक्षी का छोटा रूप ‘मिनी’ नाम से ही पुकारा जाने लगा। उनका परिवार छत्तीसगढ़ की व्यथा-कथा की सजीव कहानी थी। राजा नल के समान विपत्ति इस परिवार की जीवन संगिनी रही है। इनका संबंध नौनिहाल मौजा सगोना, तहसील मुंगेली जिला-बिलासपुर के सम्पन्न धनाढ्य मालगुजार परिवार सें संबंधित था। सन् 1897 से 1899 तक संवत् 53-56 के नाम से मशहूर छत्तीसगढ़ व्यापी अकाल ने घर बार छुड़ाकर जीवन की जीने की तलाश में असम के चाय बगान में मजदूरी करने पहंुॅचा दिया। जहां के वे लोग मूल निवासी बन गये। इनके पिता का नाम अधारीदास और माता का नाम बुधियारिन बाई था। जो कि असाम के एक प्रमुख महंत थे। माता जी की शिक्षा-दीक्षा असाम स्थित नवागांव तहसील-जिला-जमुना मुख्यालय में हुई थी तथा वे अंग्रेजी पढ़ी-लिखीं, अंग्रेजी का उत्तम ज्ञान रखती थी तथा आसामी भाषा, छत्तीसगढ़ी भाषा, तथा अंग्रेजी भाषा में पारंगत थीं।
माता जी बहुत ही लावण्यवती और गुणवती थी। अखिल भारतीय सतनामी पंथ प्रवर्तक एवं पंथ प्रदर्शक गुरू घासीदासजी के वंशज अग्रणी गुरू अगमदास जी का अचानक असाम दौरा हुआ तो गुरू प्रथा के स्वरूप कुमारी मिनाक्षी ने गुरू दर्शन तथा गुरू प्रसाद ग्रहण कर अपने आपको धन्य माना। मिनी को देखकर गुरू अगमदास जी उस पर मोहित हो गए और माता जी को अर्धागिनी जीवनसाथी बनाने की उनके परिवार वालों से मांग की तो भेंट स्वरूप माता जी को दे दी गई। इस प्रकार गुरू अगमदास जी मिनी माता जी को अर्धागिनी के रूप में अपने साथ छत्तीसगढ़ की पावन धरा पर ले आए और सन् 1932 में परिणय सूत्र में बंध गए। तब से होनहार मिनाक्षी उर्फ मिनी श्रीमती मिनी माता के नाम से संपूर्ण समाज में प्रख्यात हुईं और गुरू माता मीनाक्षी देवी की तरह पूजीं जाने लगीं।
राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन में इस क्षेत्र में गुरूजी की समाज सेवा तथा देश भक्ति पर महत्वपूर्ण भूमिका रही। वे समाज सुधारक और शिक्षा जगत में प्रगति के न्यायमूर्ति थे।पं. सुन्दरलाल शर्मा,पं. रविशंकर शुक्ल, ठाकुर प्यारेलाल सिंह, महंत लक्ष्मीनारायणदास, तथा उक्त नेताओं का गुरूजी से घनिष्ठ संबंध था। साथ ये सभी गुरू अगमदास जी का बड़े ही आदर सम्मान किया करते थे। इस प्रकार सम्पन्नता राज घराने से कम नहीं थी।
सर हरिसिंह गौर, बैरिष्टर ठा. छेदीलाल, राय साहब मुंदड़ा, राय साहेब ई. राघवेन्द्र, महंत वैष्णवदास, सेठ बाल किशन नत्थानी, सेंठ नेमीचंद श्रीमाल, आदि व्यक्तियों का गुरू अगमदास जी से घनिष्ठ संबंध था। सभी गुरू अगमदास जी का बेहद आदर सम्मान किया करते थे। सामाजिक एवं राष्ट्रीय देश भक्ति के आंदोलन में महात्मा गांधी, स्वामीं श्रद्धानंद ,श्री ठक्कर बापा, मदन मोहन मालवीय, डॉ. बाबा साहेब अम्बेडकर जैसे महान नेताआके से नजदीकी संबंध था। इन सब वातावरण का परस्पर परिचय आदि से माताजी के जीवन पर बहुत अधिक गहरा असर पड़ा जिससे भविष्य में इन्ही वातावरण के कारण माताजी भी एक महत्वाकांक्षी महान नेता बनकर समस्त भारत वर्ष में प्रख्यात हुईं। और प्रसिद्धि को प्राप्त कीं हैं।
सन 1953 में इनके पति का देहावसान हुआ। सतनामी समाज बिना गुरू निष्क्रिय और मायूस होने लगा तो उस समय माता जी ने साहस का परिचय दिया और नारी रूप में नारायणी बनकर विशाल समाज सतनामी समाज की बागडोर अपने कंधों पर संभालीं तथा माता और पिता दोनों का साथ-साथ प्यार एवं दुलार एक साथ देकर कुछ ही दिनों में गुरू गद्दीनशीन गुरू माता-राजमाता बन गई और इतनी अधिक प्रसिद्धि पाई की अपने स्वर्गीय पति अगमदासजी, जो एक कुशल सांसद एवं राजनीतिज्ञ थे, उन्ही के निर्वाचन क्षेत्र से सभी कण्डिडेटों की जमानत जप्त कर प्रचंड बहुमत से विजयी हुईं। सन 1957 से 1962 तक रायपुर, बिलासपुर क्षेत्र से निरंतर बलौदाबाजार 1967 और 1972 में जांजगीर लोकसभा से प्रचंड बहुमत से निर्वाचित हुईं।
माता जी कांग्रेस पार्टी की एक प्रमुख कर्णधार भी थीं। संगठन शक्ति प्रचार-प्रसार करने के लिए देश प्रदेश की महामंत्री तथा उपाध्यक्षा का पद संभाल चुकी थीं। माता ने लाखों करोड़ों लोगों का हित संरक्षण किया। उनके जीवन का हर क्षण हर पल लोक हित में बीता। अस्पृश्यता निवारण कानून माता जी के हाथों लोकसभा में पेंश किया जो उनकी प्रसिद्धि देश के लिए ऐतिहासिक देन है। जो आज भी उनकी मृत्यु के निरंतर बाद भी अजर अमर विद्यमान है।
निराश्रित महिलाओं तथा वृद्धा आश्रम वृद्धा अवस्था वर्ग की महिलाओं के लिए जीवन दात्री थी। वह दलित आदिवासी एवं पिछड़े वर्ग के लोगों को शिक्षा एवं उच्च शिक्षा के लिए सदैव प्रोत्साहन तथा सहायता भी दिया करती थी तथा सभी सर्वहारा निचले तबके के वर्ग समाज की संरक्षिका मददगार भी थी। नारी जागरण, छत्तीसगढ़ पृथक राज्य की महत्वाकांक्षी, भिलाई, कोरबा, बैलाडीला, स्थनीय कारखानों, कार्यालयों में अंचल के उम्मीदवार भरमार की प्रणेता थीं।
हसदेव महानदी परियोजना की स्वप्न साकार करने तथा उनकी जन्मदात्री थीं। वास्तव में सादगी सौम्य,निःस्वार्थ सेवा प्रशिक्षण कर्मवीर वात्सल्यमय भारत माता के समान छत्तीसगढ़ की माता और प्रत्यक्ष देवी थीं।
अब जब छत्तीसगढ़ राज्य गठन के पश्चात् 11 अगस्त 2001 दिन शनिवार को गांधी मैदान चौक, रायपुर में मिनीमाताजी की 29 वीं पुण्यतिथि को मिनी माता स्मृति दिवस के रूप में भव्य आयोजन छत्तीसगढ़ राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री माननीय श्री अजीत प्रमोदकुमार जोगी,जी के सानिध्य। अध्यक्षता माननीय श्री धनेश पाटिला जल संसाधन एवं उर्जा मंत्री एवं माननीय श्री डेरहूप्रसाद द्यृतलहरे, अध्यक्ष अखिल भारतीय सतनामी कल्याण समिति एवं वन मंत्री छत्तीसगढ़ शासन के संयोजन एवं निर्देशन में कार्यक्रम आयोजित की गई। जिसमें छत्तीसगढ़ राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री श्री अजीत जोगी जी ने यह घोषणा की थी की रायपुर में स्वर्गीया मिनी माता की विशाल आदमकद कास्य प्रतिमा लगाई जायेगी तथा उनके नाम पर प्रमुख सड़क मार्ग का नामकरण किया जावेगा, इस तरह अपने उद्बोधन में पं. श्यामाचरण शुक्ल ने संसद में इस आशय का प्रस्ताव पेश् करना स्वीकार किया था कि सतनामियों में देश भक्ति की अटूट भावना को देखते हुए भारतीय सेवा में सतनामी रेजीमेंण्ट की स्थापना की जाये, उन्होने आगे यह भी कहा था कि सतनामी कभी सिर झुकाकर नहीं चलते, सतनामीं जिस भी परिस्थिति में हो वह गर्व से सिर उंचा करके ही चलना पसंद करते हैं।
यह मैने अपने राजनीतिक जीवन के पिछले चालीस वर्षो में सिर्फ अनुभव ही नही किया है बल्कि इसे देखा भी है। लेकिन आज मुझे लगता है कि सतनामी पिट्ठू बनकर अपने स्वाभिमान को खत्म कर दिया है और अपने राजनीतिक आकाओ के सामने हमेशा शिरोधार्य ही दिखते हैं। सांस्कृतिक उपासक केयूर भूषण ने मिनी माता के साथ अपने उल्लेखनीय सानिध्यकला का जिक्र किया तथा उन्हे छत्तीसगढ़ के जन-जन के महतारी के रूप में निरूपित किया। इस शख्श को मिनी माता ने ही राजनीतिक क्षेत्र में लायीं और महत्वपूर्ण स्थान दिया जिसका एहसान केयूर भूषण जी आज भी मानते हैं। इसी तरह पं. राजेन्द्र प्रसाद शुक्ल ने अपनी बात रखते हुए छत्तीसगढ़ सरकार को यह सुझाव दिया कि प्रत्येक विकास खण्ड के एक गांव को स्व. मिनीमाता के नाम पर चयन कर आदर्श गांव के रूप में उसे विकसित करने की योजना बनाई जाए ताकि माता के नाम को गा्रम स्तर पर अक्षुण्ण बनाया जा सकें। लेकिन आज भाजपा की सरकार में हमारे इन महान विभूतियों की सपनों को नजर अंदाज करते हुए धूल धुसरित एवं दमन एवं दफन किया जा रहा है।
माता जी धार्मिक कट्टरपंथी विरोधी थी। माता जी सभी धर्मो का सम्मान करती थीं। धर्म के नाम पर उन्माद द्वेष और संघर्ष की विरोधी थीं। दया, प्रेम, सद्भाव, भाईचारा स्थापित करने के लिए सदैव तत्पर रहती थीं। यही वजह है कि सभी धर्म जाति के लोग माताजी का आदर और सम्मान किया करते थे। अगस्त सन् 1972 को हवाई जहाज दुर्घटना में माता जी का सतलोक गमन हुआ। माताजी आज भी अमर हैं। माता लाखों करोड़ों लोगो की आदर्श है उनका वात्सल्य प्रेम आज भी लाखों लोगो के हित में है। लाखों लोगो के दिलों में समाया हुआ है।
मिनी माताजी राष्ट्र की उन महान महिलाओं में एक थी। अतः आज मिनी माता का अगर राष्ट्रीय स्तर पर सम्मान किया जाता है तो देश की समस्त नारियों का सम्मान होगा। सांसद रहते हुए मिनीमाता कई महत्वपूर्ण गरिमामयी पदों पर तथा विभिन्न संस्थाओं की मार्गदर्शिका तथा प्रतिनिधि भी थीं। यही कारण है कि उन्होने अपने जीवन काल में, अमेरिका, चीन, जापान, इंग्लैण्ड तथा अन्य पश्चिमी देशों का दौरा भी किया था। माताजी सत्य, अहिंसा, सौम्य,स्वरूपतम देवी थी, लेकिन जब मुंगेली काण्ड पर समाज पर गहरा संकट मंडराया तो माताजी मीनाक्षी का सौम्य रूप बदलकर ताण्डव रूप नवदुर्गा, रणचंडी के रूप में अवतरित हुईं। अपने बच्चों के लिए उनके हदृय से जो चित्कार निकली वह आज भी लोक सभा की कार्यवाही में अंकित है।
उनके जीवन का आखिरी दिन एक अविस्मरणीय घटना बनकर सतनामियों के दिलो-दिमाग में आज भी घूमती रहती है कि जिस दिन माता जी दिल्ली जा रही थी तो समाज के प्रबुद्ध वर्ग उनके साथ उनके निवास स्थान पर सह भोजन किया था और बातचीत के दौरान उनके मुंॅह से यह शब्द अचानक निकल पड़ा कि मेरे बेटों, मैं दिल्ली तो जा रही हूॅं लेकिन मैं रायपुर वापस कब तक आ सकूंॅगी। मेरा आना कोई निश्चित नहीं है। मेरा देह तो परदेश में रहता है तथा मेरी आत्मा छत्तीसगढ़ में ही घूमती रहती है और उनकी यह भविष्यवाणी सत्य प्रतीत हुई। उसके बाद ही दिल्ली से तीन मील दूर विमान दुर्घटना में कालग्रस्त हुईं।
11 अगस्त 1972 का वह दिन सतनामी समाज ही नहीं अपितु पूरे छत्तीसगढ़ की चहेती मिनी माताजी हवाई जहाज दुर्घटना में काल कवलित हो गई और एक कुशल सक्षम, साहसिक दबंग नेतृत्व का अंत हो गया। आज ममतामयी मिनी माता जी हमारे साथ नहीं हैं पर उनका आगाध स्नेह प्यार और आदर्श सदैव हमारे साथ रहेगा। स्वाभिमान का जीवन जीने वाला सतनामी समाज सचमुच में एक संघर्षशील और साहसिक समाज रहा है और आज भी है। बेशक इसमें कोई संदेह नहीं है।
इनके शौर्य की गाथा मुगल कालीन भारत में भी देखने को मिलता है। और यह भी सच है कि आज भी छत्तीसगढ़ की राजनीति में सतनामीं समाज का अपना एक अलग ही वजन एवं प्रभाव कायम है। लेकिन इस बात का अफसोस भी है कि आज तक मिनी माताजी जैसा राष्ट्रीय स्तर का न तो कोई राजनेता है और न ही कोई राजनेत्री सामाजिक कार्यकर्ता सतनामी समाज में बन पाया। सतनामी समाज की महिलाएं भी मिनी माता के ओजस्वी एवं प्रभावशाली व्यक्तित्व से भी प्रेरणा नहीं ले सकीं। मिनी माताजी ने जिस निःस्वार्थ भाव से सतनामी समाज एवं छत्तीसगढ़ी समाज के लिए कार्य किया है। वह अपने आप में एक मिसाल हैं। यदि मिनी माताजी का विमान दुर्घटना में असामयिक निधन नहीं हुआ होता तो आज सतनामीं समाज की महिलाएंॅ निश्चित रूप से कुछ-न-कुछ कर गुजरती। सतनामी समाज की महिलाएं बड़ी दबंग एवं निडर होती है। लेकिन स्थिति आज ऐसी नही दिखती।
इस समाज की महिलाएं जो आज एक अनकही कसक के साथ जीती तो हैं, परंतु अवसर मिलने पर पलटवार करने से भी नहीं चुकती। सतनामी समाज को आज बालिका शिक्षा पर आज जोर देने की आवश्यकता है। यदि सतनामी समाज की महिलाएंॅ बेटियांॅ शिक्षित हो जाएंॅ तो भविष्य में इसका सुखद परिणाम देखने को मिलेंगे। सतनामी समाज सतनाम पंथ और सतनाम धर्म का अनुयायी है। वैसे तो सतनामी समाज की महिलाएंॅ पूरी तरह स्वतंत्र हैं जो एक जागरूक समाज मे होता है। लेकिन फिर भी सक्रिय राजनीति और समाजिक कार्यकर्ता समाज सेवा में सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में सामने नहीं आ पा रही हैं।
ममता मयी मांॅ मिनी माता से प्रेरित होकर सतनामी समाज की नारी एवं पुरूषों को माता के आदर्शो पर चलने चाहिए तथा उन्हें अपने जीवन में अंगीकार करते हुए उच्च आदर्शो को प्राप्त करें। आज मुझे इस बात का बड़ा ही अफसोस होने लगा है कि कांग्रेस पार्टी की इतनी बड़ी राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की शख्शियत होने के कारण छत्तीसगढ़ के प्रथम मुख्यमंत्री अजीत प्रमोद कुमार जोगी ने मिनीमाता जी के नाम पर छत्तीसगढ़ विधान सभा का नामकरण किया था और उन्हें सम्मान दिया था। और मिनीमाता पण्डरी बस स्टेण्ड रायपुर और बांगो बांध कोरबा का भी नामकरण उन्हीं के नाम पर था। किंतु वर्तमान में कांग्रेस पार्टी के ही मुख्यमंत्री होने के बावजूद भूपेश बघेल ने इनके नाम को विलोपित कर दिया है।
इस बात को सतनाम के अनुयायियों को नहीं भूलना चाहिए बल्कि वर्तमान मुख्यमंत्री को स्मरण कराते हुए मिनीमाता जी के नाम को यथावत रखने की अपील करना चाहिए। हमें एक बात और ध्यान में रखना चाहिए कि मिनी माता जी सामाजिक समरसता की मिसाल थीं। उन्होंने कभी भी अपने हृद्य में संकीर्ण भावनाओं को स्थान नहीं दिया था। बल्कि छत्तीसगढ़ की समग्र जनता की खुशहाली और आनंदमय जीवन की कामना करती रही,ं यही कारण है कि वह सभी समाज में सम्मान और आदर की पात्रा थीं। इन्हीं सद्भावनाओं के साथ माता जी को श्रद्धांजली अर्पित करता हूंॅ।