छत्तीसगढ़ की नयी पीढ़ी के उभरते हुए कवि शिवानंद महान्ती को इस भौतिक संसार से गए आज 14 अगस्त को बारह महीने हो चुके हैं। बीते एक साल में उनकी बहुत याद आती रही । अब तो उनसे जुड़ी स्मृतियाँ ही बाकी रह गयी हैं ,जो हमें सदैव उनकी याद दिलाती रहेंगी।
उनका जन्म 15 फरवरी 1970 को ओड़िशा के समुद्र तटवर्ती जिले गंजाम के सोल बंधा नामक गाँव में हुआ था ।
उनके पिता स्वर्गीय देवराज महान्ती आजीविका के लिए 1970 के दशक में सपरिवार वर्तमान महासमुंद जिले के पिथौरा आ गए थे। शिवानंद की प्रारंभिक और हायर सेकेंडरी तक शिक्षा पिथौरा में हुई। उन्होंने रायपुर से एम.ए. एल. एल. बी. तक शिक्षा प्राप्त की। पिथौरा में रक्षा बंधन के दिन 11 अगस्त 2022 को एक सड़क हादसे में गंभीर रूप से घायल होने के बाद 14 अगस्त 2022 को छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के एक प्राइवेट अस्पताल में उनका निधन हो गया पिथौरा में वर्ष 1988 में गठित श्रृंखला साहित्य मंच के विभिन्न साहित्यिक -सांस्कृतिक आयोजनों में उन्होंने लगातार अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया।
मंच के अब तक प्रकाशित आंचलिक कवियों के साझा संग्रहों में उनकी भी रचनाएँ शामिल हैं। वे हिन्दी कविता की क्षणिका-विधा के सशक्त हस्ताक्षर थे। मंच की ओर से वर्ष 2018 में उनका पहला स्वतंत्र कविता-संग्रह ‘संशय के बादल’ का प्रकाशन हुआ । प्रथम पुण्यतिथि पर उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि सहित प्रस्तुत है उनकी दो क्षणिकाएँ ,जिनमें उनके कवि-हृदय की धड़कनों को महसूस किया जा सकता है —
मानसून
**********
मानसून पानी लाता है
खेतों ,तालाबों और नदियों में
और चंद बूढ़ी आँखों में,
जिनके परिजन
लौट आते हैं ईंट भट्ठों से
मानसून के साथ ।
***
सभी के जीवन में हो
एक सीधी और सरल रेखा
*****
गरीबी रेखा इंसान की
हैसियत बदल देती है ,
अमीरी रेखा बदल देती है
चाल ,चेहरा और चरित्र ,
जीवन में रेखाओं का होना
अगर लाज़िमी है तो
बेहतर है —
सभी के जीवन में हो
एक सीधी और सरल रेखा।
(सहयोगी कविता संग्रह ‘श्रृंखला 4’ में वर्ष 2017 में
और ‘संशय के बादल’ वर्ष 2018 में भी शामिल )