साहित्यकार-परिचय –
श्रीमती इन्दिरा परमार
माता-पिता –
जन्म – 14 नवम्बर 1942 ग्राम-छेलिया, जिला बरमपुर(उड़ीसा)
शिक्षा –
प्रकाशन – अच्छी आदतें और स्वास्थ्य, निदिया रानी, विभीन्न पत्र पत्रिकाओं में रचनाओं का नियमित प्रकाशन, बाल एवं प्रौढ़ साहित्य के लेखन में विशेष अभिरूचि, आकाशवाणी के रायपुर केन्द्र से रचनाओं का नियमित प्रसारण।
पुरस्कार / सम्मान –
सम्प्रति- शासकीय कन्या हायर सेकेण्डरी स्कूल, धमतरी रायपुर में अध्यापन।
सम्पर्क – पीटर कालोनी,टिकरापारा धमतरी(छ.ग.)
”शिकायत है उंगलियों को”
फ्रेम की तस्वीर जैसी सॉंझ है यह
रात होगी किस तरह निर्मम, न जाने?
ज्ञात होकर नेक का पथ
आज भी अज्ञात लगता।
चॉंदनी की पुर्णिमा का
चॉंद कब पर्याप्त लगता?
मुक्ति कब देगा हृदय की सहजता को
अश्रु बोझिल गीत कस संभ्रम न जाने?
रह गये हैं स्वप्न भी
कोणार्क के पाषाण होकर
रख दिया कंटकों ने
गंध को औचक डुबोकर।
शिकायत है उॅंगलियों को,खो चुकी कब
समय की यह बॉंसुरी, सरगम न जाने?
दिशाएँ भी चुप निरन्तर
जिस तरह जल में मछलियॉं।
भूलकर पंछी न गाता
नमित सिर है कमल कलियॉं।
इस तरह दुर्भाग्य मेले में विवश हो
कब तलक भटका करेंगे हम, न जाने?