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”नवरात्रि पर सेवा के विविध स्वरूप” श्री मनोज जायसवाल संपादक सशक्त हस्ताक्षर कांकेर (छ.ग.)

(मनोज जायसवाल)
-मॉ के दर्शन को मानवता की सेवा में रोपवे बड़ा कदम है।
नवरात्रि पर्व नौ दिनों का पवित्र पर्व है, पर इस पवित्र पर्व की रौनकता और छाप चहुं दिशा में देखने मिलती है। नौ दिनों तक शक्ति की उपासना,पूजा अर्चना सबकी आस्थानुरूप तस्वीर दिखायी देती  है।

कला संगीत जगत, साहित्य लेखन मॉं सरस्वती के पुण्य साधना में रत जो लोगों को माता के आशीर्वाद से ही प्राप्त होता हैं, वे अपने क्षेत्र में इसका उपयोग करते हैं। सांस्कृतिक कार्यक्रमों में मॉं की आराधना भला मॉं के सुमधुर भजनों के बगैर हो ऐसा संभव ही नहीं है। नवरात्रि पर्व में तो जगराता के नाम हर प्रस्तुति मॉं के नाम होती है।

संगीत को सुर देने वाला कोई कलाकार तब तक अधूरा है, जब तक साहित्य लेखक अच्छी गीतों की रचना ना करे। श्रद्वा के भावों के अनुरूप और जनमानस को कर्ण प्रिय लगे आत्मसात करते रचनाएं की जाती रही। छत्तीसगढ में तो माता सेवा जसगीत ऐसी परंपरा है,जो अतीत से आज भी माता को मनाने के लिए प्रमुख गायन के रूप में जानी जाती है। जसगीत का कोई तोड नहीं है।

मानवता की सेवा क्षेत्र में रेखी जाय तो नवरात्रि पर्व पर लोग अपने तरीके से सेवा को तत्पर दिखायी देते हैं। कोई अमूमन रूप से लोगों को मुख्यतः दुर्गा अष्टमी पर भंडारा आयोजित करते देखा जा सकता है। तो कई धार्मिक अध्यात्मिक समितियां पहाडा वाली माता के दर पर चढने वाले श्रद्वालुजनों को पेयजल के साथ अत्यावश्यक सहयोग करते देखा जा सकता है। शासन प्रशासन बडे स्तर पर देखा जाय तो पहाडो पर दर्शन को जाने वाले भक्तों के लिए रोपवे की सुविधा भी मानवता के क्षेत्र किया जाने वाला बडा नेक कार्य है।

दुर्गा अष्टमी पर नव कन्या भोज हिंदु धर्म में महती वक्त माना जाता है,जहां भोजन के लिए उपस्थित कन्याओं को देवी दुर्गा स्वरूपा मानकर पूजा अर्चना किया जाता है। पैर धोकर चरण वंदन किया जाता है। उनसे अपने जीवन में सुख शांति समृद्वि की कामना हेतु आशीर्वाद मांगी जाती है। छत्तीसगढ़ के प्रत्येग गांव में ग्राम्य देवी मॉं शीतला को भी विशिष्ट तरीके से आराधना की जाती है। कई जगह नवरात्रि पर मॉं शीतला मंदिरों में भी आस्था की ज्योति जलायी जाती है।

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