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‘टूटती संस्कृति, छूटते संस्कार’ सुश्री नलिनी बाजपेयी शिक्षिका,साहित्यकार,समाजसेवी,संबलपुर,भानुप्रतापपुर कांकेर छत्तीसगढ

साहित्यकार परिचय-

सुश्री नलिनी बाजपेयी

जन्म-22.07.1961 छत्तीसगढ प्रदेश के बलाैदाबाजार  में।

माता-पिता-श्रीमती दुर्गा बाजपेयी,श्री नर्मदा शंकर बाजपेयी

शिक्षा-एम.ए. हिंदी,इतिहास, राजनीति शास्त्र,समाज शास्त्र

प्रकाशन-प्रकाशित पुस्तकें- एकल-प्रक्रिया में सांझा संकलन-14(नवलोकांचल गीत,सरस्वती प्राथम्य,काव्य साधना,काव्य धरोहर,उम्मीद,लहर,नव्या, लघुकथा संग्रह,माँ का उत्सव, कहानी संग्रह,आदि) आकाशवाणी जगदलपुर से कविता पाठ,मंचीय प्रस्तुति-क्षेत्रीय ,राज्य,एवं अखिल भारतीय कवि सम्मेलनों में प्रस्तुति।राज भाषा आयोग के मंच पर।राष्ट्रीय कवि संगम मंच पर।स्थानीय, साप्ताहिक, मासिक काव्य गोष्ठियों मेंई पत्रिका में प्रकाशन उपलब्धियाँ-
क्रियात्मक अनुसन्धान (शोध पत्र)डाइट कांकेर जनजातीय एक परिदृश्य-(शोध पत्र) योग एक परिदृश्य-(शोध पत्र)
योग की उपयोगिता मानवाधिकार, नशे की बढ़ती प्रवृत्ति एवं निदान( प्रक्रिया में) प्रकाशित रचनाएं-स्थानीय समाचार पत्रों करीब-60 विधाएं-कविता,कहानी,लघुकथा,आलेख,निबंध, संस्मरण, यात्रा वर्णन,आदि। लेखन-हिंदी,छत्तीसगढ़ी

सम्प्रति-प्रधान पाठक,शा.इंग्लिश मीडियम स्कूल संजय पारा भानुप्रतापपुर, महामंत्री (महिला प्रकोष्ठ)छत्तीसगढ़ सर्व राष्ट्रीय ब्राह्मण,विद्या भारती सरस्वती शिक्षा संस्थान (स्थानीय एवं प्रादेशिक समिति में महत्वपूर्ण दायित्व)
राष्ट्रीय कवि संगम मंच में महत्वपूर्ण दायित्व, जिलाध्यक्ष जिला-कांकेर मानव कल्याण साहित्यिक, सांस्कृतिक मंच,विभिन्न साहित्य पटल-

(जिसमें जुड़ी हूँ) 1.राष्ट्रीय कवि संगम,2.सहित्योदय अंतर्राष्ट्रीय मंच,3. साहित्य -सागर मंच,4.आनन्द समूह अटूट रिश्ते,5.मानव कल्याण साहित्यिक सांस्कृतिक मंच अंबिकापुर,6.बस्तर पांति मंच जगदलपुर,7,.यूथ वर्ल्ड,8.सोशल एन्ड मोटिवेशनल ट्रस्ट,9.अंकुर साहित्य मंच दिल्ली,10.कलम बोलती है11.राष्ट्रीय नव साहित्य कुंभ, 12.भारत के श्रेष्ठ रचनाकार,13.अवनि सृजन समूह इंदौर,15.काव्यांगन,16.आगमन मंच दिल्ली,17.साहित्यिक मित्र मंडल जबलपुर,18.काव्य संसद,19.साहित्य सृजन मंच कौशाम्बी,20.गीत गजल मंच 22.काव्य कुंज मंच

सम्मान- 1.मुख्यमंत्री शिक्षा गौरव अलंकरण सम्मान।2.हिंदी साहित्य परिषद बलौदाबाजार से कहानी,एवं कविता में सम्मान पत्र। शा.बुनियादी प्रशिक्षण संस्था से प्राप्त सम्मान एवं प्रशस्ति पत्र। वक्ता मंच रायपुर द्वारा सम्मान पत्र।
साहित्य सागर सम्मान  कांकेर साहित्य श्री सम्मान। महादेवी वर्मा शक्ति सम्मान। प्राइड ऑफ वूमेन सम्मान।
शिक्षा एवं साहित्य सम्मान मानव कल्याण मंच।अंबिकापुर काव्य संसद सम्मान-2020 नवांकुर साहित्य सृजक सम्मान पुस्तक विमोचन सम्मान समारोह रायपुर सेवा सामाजिक मंच (सशक्त नारी सम्मान) महिला सशक्तिकरण सम्मान ग्राम पंचायत संबलपुर।  लोक कल्याण एवं साहित्य सृजन सम्मान ,संस्था ‘सिरजन’ नव लोकांचल गीत सम्मान  सरस्वती प्राथम्य-काव्य साधना  छत्तीसगढ़ी साहित्य समिति सम्मान उत्तर बस्तर कांकेर आदि
इसके अलावा अनेक ई प्रमाण पत्र।

सम्पर्क- संबलपुर,भानुप्रतापपुर जिला कांकेर छत्तीसगढ

 

”टूटती संस्कृति, छूटते संस्कार”

संस्कृति किसी भी देश की आत्मा होती है और संस्कार उसकी साँसे होती हैं।
” संस्कृति और संस्कार दोनों अन्ययार्थ शब्द है ।पहले मनीषियों ने संस्कृति शब्द का पुष्कल और एक से अधिक अर्थ में उपयोग कर उसे महा अर्थ- वाहक बनाया है ।संस्कार का अर्थ स्पष्ट करने के लिए जड़ वस्तु के साथ संस्कार का उदाहरण दिया गया है।” किंतु हमको यहां मनुष्य के संस्कार विचार करने हैं ।संस्कार से हमारा तात्पर्य मनुष्य के मन, बुद्धि ,भावना ,अहंकार, आदि को चमकाकर विकसित करने से है।

संस्कृति और संस्कार किसी भी देश की पहचान होती है । भारत को इसी सभ्यता संस्कृति के बदौलत विश्व गुरु का दर्जा प्राप्त था।उस समय पूर्वजों ने ज्ञान विज्ञान की विभिन्न धाराओं को खोजा और लोगों के लिए उसे उपयोगी बनाया ।हमारी संस्कृति में वैदिक संस्कृति का प्रभाव अधिक था आज वैदिक संस्कृति लुप्त होते जा रही है ।संस्कार को लोग छोड़ते जा रहे हैं। संस्कृति और संस्कार का जीवन में बहुत अधिक महत्व है ।

आज बढ़ते पाश्चात्य प्रभाव एवं आधुनिकता के चकाचौंध में हम अपनी संस्कृति ,सभ्यता और संस्कारों को भूलते जा रहे हैं ।आज शिष्टाचार और नैतिकता को भूलते जा रहे हैं। जबकि जीवन में इस- की महती आवश्यकता है ।आज की पीढ़ी लगभग इस संस्कृति और संस्कार को तिलांजलि दे चुकी है। “टूटती संस्कृति और छूटते संस्कार” के लिए सिर्फ युवा वर्ग ही दोषी नहीं हैं। उनमें संस्कारों की कमी हो रही है तो उसकी वजह सिर्फ हम और हम हैं ,क्योंकि हम उनमें संस्कार नैतिकता और शिष्टाचार नहीं भर पा रहे हैं ।यह सोचने का विषय है ।बच्चों का अनैतिक होना हमारी कमजोरी है ।आज संयुक्त परिवार लगभग खत्म हो गया है।

एकल परिवार लोगों को भाने लगा है।पहले बचपन में ही हमें दादा दादी टूटती संस्कृति संस्कार हेलो किसी भी देश की संस्कृति उसकी आत्मा होती है और संस्कार उसकी सांसे होती हैं संस्कृति और संस्कार दोनों अन्य अर्थ शब्द है पहले मनीषियों ने संस्कृति शब्द का पुष्कर और एक से अधिक अर्थ में उपयोग कर उसे महा अर्थ वाहक बनाया है संस्कार का अर्थ स्पष्ट करने के लिए जड़ वस्तु के साथ संस्कार का उदाहरण दिया गया है किंतु हमको यहां मनुष्य के संस्कार विचार करते हैं संस्कार के हमारा मनुष्य के मन बुद्धि भावना अहंकार आदि को चमक आकर्षित करने से है

संस्कृति और संस्कार से ही देश की पहचान बनती है भारत इसी सभ्यता संस्कृति के बदौलत विश्व गुरु का दर्जा प्राप्त किए थे उस समय पूर्वजों ने ज्ञान विज्ञान की विभिन्न धाराओं को खोजा और लोगों के लिए उपयोगी बनाया हमारी संस्कृति में वैदिक संस्कृति का प्रभाव अधिक था आज वैदिक संस्कृति लुप्त होते जा रही है संस्कार को लोग छोड़ते जा रहे हैं संस्कृति और संस्कार का जीवन में बहुत अधिक महत्व है आज बढ़ते पाश्चात्य प्रभाव एवं आधुनिकता के चकाचौंध में हम अपनी संस्कृति सभ्यता और संस्कारों को भूलते जा रहे हैं आज शिष्टाचार और नैतिकता को भूल कर जीवन भूलते जा रहे हैं ।

जबकि जीवन में इस की महती आवश्यकता है 20 संस्कृति और छोटे संस्कार के लिए सिर्फ युवा वर्ग ही दोषी नहीं हैं उनमें संस्कारों की कमी हो रही है तो उसकी वजह सिर्फ हम हैं क्योंकि हम उनमें संस्कार नैतिकता और शिष्टाचार नहीं भर पा रहे हैं यह सोचने का विषय है बच्चों का अनैतिक होना हमारी कमजोरी है बचपन में ही हमें दादा दादी घर के बुजुर्ग नैतिक शिक्षा का पाठ पढ़ाते थे बच्चा जब छोटा होता है तो दिमाग सुन्न होता है और हम जैसा संस्कार शिक्षा देंगे उसका प्रभाव उस पर पड़ेगा बच्चों को संस्कारित करने में दादा-दादी माता-पिता और बुजुर्गों का हाथ होता था बचपन में ही हमें नैतिक शिक्षा की एक पुस्तक पढ़ाई जाती थी आज वह पुस्तक बच्चों के पास से गायब है आज बच्चों के पास ढेरों काम इस कंप्यूटर वीडियो गेम्स फिल्मी गानों की ढेरों सी डी मिल जाएगी लेकिन भगतसिंह विवेकानंद जैसे महापुरुषों की जीवनी से वह वंचित हैं संस्कारों को भूल चुका है देश के नागरिकों का भी है ।

संस्कार हमारी पहचान संस्कार शिष्टाचार एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तांतरित करते आए हैं वर्तमान शिक्षा प्रणाली एक बड़ा दोष है कि वह बच्चों के व्यक्तित्व निर्माण में सहायक नहीं है नैतिकता की बात ही नहीं होती है गणित विज्ञान अंग्रेजी विषयों पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है इसका कारण है तो उस मीडिया का प्रयोग गलत नहीं है बेशक ज्ञान स्तर को बढ़ाता है लेकिन इसका गलत प्रयोग नहीं करना चाहिए एक समय था जब बच्चे बड़े बुजुर्गों का चरण छूकर आशीर्वाद ग्रहण करते थे आज हेलो हाय तक सीमित होकर रह गए हैं संयुक्त परिवार में बहुत कुछ सीखने मिलता था लेकिन आज एकल परिवार के कारण भी हमारी संस्कृति टूटते जा रही है ।

हर सिक्के के दो पहलू होते हैं। घर के बुजुर्ग नैतिक शिक्षा का पाठ पढ़ाते थे। बच्चा जब छोटा होता है तो दिमाग शून्य होता है और हम जैसा संस्कार शिक्षा देंगे उसका प्रभाव उस पर निश्चित पड़ेगा ।बच्चों को संस्कारित करने में दादा-दादी ,माता-पिता, और बुजुर्गों का हाथ होता था ।बचपन में ही हमें नैतिक शिक्षा की एक पुस्तक पढ़ाई जाती थी ।आज वह पुस्तक बच्चों के बैग से गायब है। आज बच्चों के पास ढेरों कॉमिक्स, कंप्यूटर गेम्स, वीडियो गेम्स, फिल्मी गानों ,की ढेरों सी डी मिल जाएगी, लेकिन भगतसिंह विवेकानंद जैसे महापुरुषों की कहानियों से वह वंचित हैं ।संस्कारों को भूल चुका है ।देश के नागरिकों का भी दायित्व है कि वो संस्कारों को बच्चों के मन में भरे।संस्कार हमारी पहचान है।संस्कार और शिष्टाचार एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी हस्तांतरित होती आई हैं।

वर्तमान शिक्षा प्रणाली एक बड़ा दोष है कि वह बच्चों के व्यक्तित्व निर्माण में सहायक नहीं है।उसमें नैतिकता की बात ही नहीं होती है ।गणित, विज्ञान ,अंग्रेजी ,विषयों पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है ।सोशल मीडिया हावी है। सोशल मीडिया का प्रयोग गलत नहीं है, बेशक ज्ञान स्तर को बढ़ाता है ।लेकिन इसका गलत प्रयोग नहीं करना चाहिए ।एक समय था जब बच्चे बड़े बुजुर्गों का चरण छूकर आशीर्वाद ग्रहण करते थे ,आज हेलो, हाय तक सीमित होकर रह गए हैं।पहले संयुक्त परिवार में बहुत कुछ सीखने मिलता था लेकिन आज एकल परिवार के कारण भी हमारी संस्कृति टूटते जा रही है ।

हर सिक्के के दो पहलू होते हैं।हर अच्छी और बुरी चीज में अच्छाई और बुराई दोनों होती है।हमें अच्छी चीजों को ग्रहण करना चाहिये और तर्कहीन बातों से परहेज करना चाहिए। जिस संस्कृति और संस्कार के बदौलत देश का स्वर्णिम इतिहास विश्व के मिसाल बना है।नालन्दा और तक्षशिला की शिक्षा पद्धति की आज जरूरत है।यूँ ही नहीं यहाँ विदेशों से बच्चे पढ़ने आते थे।हमारी संस्कृति में वैदिक संस्कृति और शिक्षा का बहुत प्रभाव था।आज आवश्यकता है उन्हीं सोच और विचारों की,संस्कृति के पुनरुत्थान के लिए कार्यक्रमों की रुपरेखा तैयार की जानी । शोध पत्र, वार्ता,एवं। परिचर्चा की जानी चाहिए। हमारी संस्कृति और सभ्यता पुनः जी उठेगी।

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