कविता काव्य देश

”गीत हुए बासंती” श्रीमती नवनीत कमल शिक्षिका साहित्यकार, जगदलपुर,बस्तर(छ.ग.)

साहित्यकार परिचय
श्रीमती नवनीत कमल
जन्म- 28फरवरी 1964
माता, पिता – श्रीमती टी.सत्यवती राव, स्व.श्री टी.सत्यनारायण राव
पति- श्री कमल रामजी
शिक्षा-एम ए.हिंदी साहित्य, एम ए.लोक प्रशासन, बी.एड. सृजनात्मक लेखन में डिप्लोमा
प्रकाशन – मासिक त्रैमासिक एवं दैनिक पत्र पत्रिकाएं । प्रतिक्षा दक्षिण,नवकिरण,दि ग्राम टुडे, विंध्य टुडे, काव्य मंजरी, साहित्य धरा अकादमी, गूंज कलम, सरस्वती सुमन, युगधारा, बोलती खबर , दैनिक युगजागरण, दैनिक भास्कर, नवभारत, दंडकारण्य,आदि। साझा संकलन- सूत्र,अमृत काव्यम, काव्य सागर, काव्य वाटिका, हिंदी के प्रमुख महिला रचनाकार, अपनी बात, बस्तर की लोककथाएं। प्रथम प्रकाशित- काव्य संकलन। स्मृतियों के मृग 2020 चेन्नई। एक नदी सा मन- गीत संग्रह 2023जनवरी-बुक क्लीनिक बिलासपुर। ताड़ वनों के बीच दोहा संग्रह 2023नवम्बर-बुक क्लीनिक बिलासपुर। दोरली लोक कथाएं- 2 कृष्णायन महाकाव्य -साझा संग्रह में गांधारी का श्राप-तांटक छंद में लेखन। आकाशवाणी जगदलपुर केन्द्र में अल्प समय के लिए नैमित्तिक उद्धघोषिका। लगभग बीस वर्षों तक महिला कार्यक्रम,छात्रीय कार्यक्रम, रूपक लेखन, चिंतन लेखन, कविता पाठ,दोरली कहानी वाचन, एवं साप्ताहिक बालवाड़ी कार्यक्रम का संचालन।

सम्मान – कई आभासी साहित्यिक मंचों से, उत्कृष्ट शिक्षक सम्मान,पवन दीवान स्मृति सम्मान ,राष्ट्रीय काव्य संग्रह मंच से, विश्व हिन्दी लेखिका मंच से महादेवी वर्मा सम्मान, साहित्य भारती सम्मान, गीत गौरव सम्मान, श्रेष्ठ टिप्पणीकार सम्मान, काव्य कुसुम सम्मान, उत्कृष्ट दोहाकार सम्मान ।

सम्प्रति- जगतु माहरा शासकीय हायर सेकंडरी स्कूल (बस्तर हाई स्कूल)जगदलपुर छत्तीसगढ़ में-व्याख्याता।

सम्पर्क – राजीव गांधी वार्ड, शांति नगर -जगदलपुर। जिला-बस्तर-छत्तीसगढ़।पिन  494001

 

 

”गीत हुए बासंती”

वन उपवन की छटा निराली,ऋतु बासंती आई है।
दिखे नही अब कहीं कुहासा,पूरब लाली छाई है।

अंबर पथ से किरण सुनहरे,
धरती तक जब आते हैं ।
आलोकित कर सकल जगत को,
नवगति नवलय लातें हैं।

कोकिल आई बाबुल के घर,अमुआ भी बौराई है।
वन उपवन की छटा निराली,ऋतु बासंती आई है।

बैठे खगदल शाख -शाख पर,
दूर पपीहा बोली है।
चैत चांदनी की रातों में,
मौसम ने रस घोली है।

पीले -पीले फूल ओढ़कर,आज धरा मुस्काई है।
वन उपवन की छटा निराली,ऋतु बासंती आई है।

अबंर पथ से धूप उतर कर,
आंगन द्वारे आई है।
यादों वाले चित्र दिखाकर,
गोरी भी शरमाई है।

घोल- घोल कर मधु नैनों में,प्रेम सुधा बरसाई है।
वन उपवन की छटा निराली,ऋतु बासंती आई है।

टेसू फूले महुआ फूला,
सेमल उड़- उड़ जाता है।
झर -झर झरते पीत पात सब,
नव कोपल मुस्काता है।

झूम रहा है अलि फूलों पर,देख पुष्प इतराई है।
वन उपवन की छटा निराली,ऋतु बासंती आई है।

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