हम भी अगर बच्चे होते… श्री मनोज जायसवाल संपादक सशक्त हस्ताक्षर कांकेर(छ.ग.)

श्री मनोज जायसवाल
पिता-श्री अभय राम जायसवाल
माता-स्व.श्रीमती वीणा जायसवाल
जीवन संगिनी– श्रीमती धनेश्वरी जायसवाल
सन्तति- पुत्र 1. डीकेश जायसवाल 2. फलक जायसवाल
(साहित्य कला संगीत जगत को समर्पित)

हम भी अगर बच्चे होते…..
सदैव लोगों के साथ सरोकार रखने वाले भावों के हमारा जन्म दिवस मजदूर दिवस के दिन यानि 01 मई को आता है। हमें भी याद नहीं होता और कोई विशेष उमंगे भी नहीं अन्य दिन की तरह यह दिन भी बीत जाता है, पर सोशल आभासी दूनिया और लोगों के स्नेह इसे विशेष बनाने में अपने भी कसर नहीं छोड़ते।
कई बार हम लोगों से मिल नहीं पाते जहां उनकी आस होती है,पर घर पर रहकर आभासी रूप में ही सही याद आए यही बड़ी बात हो सकती है। सोशल के चलते ही हमें भी बखुबी याद रहता है,तो कई लोग तो पहले पहल याद दिलाते रहते है। हम सामाजिक सरोकार वाले आम लोगों की कड़ी के लोग हैं,इतने स्नेह की भी जरूरत नहीं है। दूसरों की खुशी में ही अपनी खुशी मना लेते हैं।
ना कोई उमंगे रही,ना कोई ख्वाहिशें रही, ना कोई इंतजार रहा ना किसी से ऐतबार रहा। वही रोजमर्रा की जीवनचर्या में जीवन के इस मेले में मशगुल रहे। आपाधापी के दौर में दूश्मनी भुनाने भरपूर समय रहा पर भौतिक मुलाकातों के लिए किसी के पास समय नहीं रहा।
तब वो दिन थे जब जन्मदिवस के दिन महीनों से याद करते थे। विदाउट केक वाले उन दिनों खीर पूरी जरूर बना करती थी। वर्ष संवत भले ही मां को याद ना रहे पर समय मौखिक बता दिया करती थी। केक काटने और मोमबत्ती बुझाने वाले दिन आए जहां कला जगत में इसे अपने अपने तरह से मधुर गीतों की भावों से भुनाया।
सक्षम लोगों के लिए इंज्वाय करने का एक और माध्यम बना। मोमबत्तियां जितने वर्ष उतनी मोमबत्ती का दौर भी खत्म और आ गया सिंगल मोमबत्ती का जिसे बुझाना होता था। वो बुझाये जाने लगे धीरे धीरे प्रज्जवलित दीपक को बुझा दिए जाने पर भी लोगों की सोच बलवती हुई और जन्मोत्सव पर अपने मुताबिक स्वमेव बुझने दिया गया। देर से सही समझदारी आ गई।
केक का स्वरूप भी बदला लेकिन एक ऐसा संस्कार को भी जन्म दिया जहां इसी केक की मलाई खाने की छोड़ चेहरों पर मली जाने लगी। केक में फुलझड़ी,बैलून को फोड़ना सब संस्कार जागरूक पीढ़ी को आज और भी जागरूक कर गयी और जो जागरूक होने लगे मलाई मलने और अनावश्यक बातों को तिलांजलि देने लगे।
दौर में आज भी कई कहानियां सामने आयी जहां बड़े होने के बाद बर्थ-डे मनाना तो दूर तारीख भी इसी रोजमर्रा में विलुप्त होकर भूला दी जाती है। सोशल मीडिया ने जन्म दिवस के दौर को पुर्नजीवित कर दिया। आज भले ही सामने वाले को याद ना हो लेकिन दौर में वे अपने लोगों की जन्म दिवस सोशल पर फोटो के साथ पोस्ट करने लगे जहां लोगों ने अपनी बधाई कमेंट कर दी जाने लगी।
सोशल मीडिया संबंध बनाने का एक कड़ी भी साबित हुआ कि नगरों में कईयों ऐसे मिलेंगे जहां वे आपसी दुश्मनी भूना रहे होते हैं, आंतरिक द्वेश चरम पर होता है, कभी उनके लिए अच्छा नहीं सोचते लेकिन द्वेश भी भुनाना है और संबंध भी बनाना है, सो सोशल में पोस्ट जन्मदिवस पोस्ट पर बड़े भाव से बधाईयां भी दी जाने लगी। कई वाट्सएप ग्रुपों में तो यदि किसी सदस्य का जन्म दिवस है तो सारे सदस्य कुछ और पोस्ट नहीं करेंगे बल्कि उंगलियों में वाहवाही का निशान इंगित करते जरूर अपनी उपस्थिति दर्ज कराएंगे।
हो, क्यों ना वक्त के साथ सब चीजें अच्छी है। लेकिन समयानुकुल जब बातें अत्यावश्यक विषयों पर चर्चा की हो तब चर्चा को आगे बढ़ाने में ही समझदारी है। जन्म दिवस पर उपहार का दौर भी खत्म होने की कगार में है, लोग सोशल में उक्त उपहार का इमेज चश्पा कर रहे होते हैं, यही नहीं गुलाब जामुन,रसमलाई,कलाकंद जैसी मिठाइयां लोग चेंप कर देने लगे हैं।
इसका आशय यह है कि सिर्फ एहसास है ये रूह से महसूस करो, प्यार को प्यार ही रहने दो कोई नाम ना दो… लेकिन अतीत के वो गीत आज भी लोगों की जुबां पर होते हैं अपने अतीत बालपन को लेकर जहां बोल था- हम भी अगर बच्चे होते, नाम हमारा होता गगलू बबलू और खाने को मिलते लड्डू तो दुनियां कहती हैप्पी बर्थ डे टू यू…