”नियमित साहित्य साधना जरूरी”श्री मनोज जायसवाल संपादक सशक्त हस्ताक्षर कांकेर(छ.ग.)

श्री मनोज जायसवाल
पिता-श्री अभय राम जायसवाल
माता-स्व.श्रीमती वीणा जायसवाल
जीवन संगिनी– श्रीमती धनेश्वरी जायसवाल
सन्तति- पुत्र 1. डीकेश जायसवाल 2. फलक जायसवाल
(साहित्य कला संगीत जगत को समर्पित)
”नियमित साहित्य साधना जरूरी”
सामाजिक विषमताओें पर जिस तरह मुखरता से सवाल उठाया जाता है,बिल्कुल उठाया जाना ही चाहिए यही साहित्यकार का समाज के प्रति धर्म है। आलेख,कविताओं,कथाओं के माध्यम प्रस्तुति को पढ़कर आम लोग अनुसरण करते अपने अंदर व्याप्त खामियों को दूर करने का प्रयास किया जाता है।
उदासीनता यदि समाज के अन्य वर्गों में हावी है,ऐसा लगता है कि कहीं साहित्यकार भी उदासीन तो नहीं हो चले हैं। वर्तमान युग में तमाम सम्मान पुरस्कार की बातें की जाती है,लेकिन जब रचनाओं को सामने आने की बात कही जाती है तो रचनाओं के भी टोटे पड़ जाते हैं?
यदि रचनाएं हैं,भी तो संभवतया धूल खाते पड़े हैं,जिसे ढूंढना पड़ेगा। मिल गया तो ठीक वरना खो जाने की बात। सोचनीय बात कि क्या वह तमाम पुरस्कार,सम्मान कुछ रचनाओं के लिए दिए गए हैं? साहित्य और मुख्य रूप से कोई भी साहित्यकार यदि वह सृजनकर्ता है वह अथाह सागर है,जिसके पास किसी रचना की कमी नहीं होता।
यह बात भी अमूमन नहीं होता कि कोई साहित्य किसी एक विधा या विषयों पर लिखे। लेखन प्रतिभा है तो वह आप जो विधा बोलो रचना का सृजन करेगा। कला संगीत में मंच पर खड़े हो जाएं और यदि किसी गीत पर फरमाइश कर दिया जाय तो असंभव बोलना जरूर आपका अपना परिचय देता है।
देखा जा सकता है कि तमाम टीवी शो पर टैलेंटेड प्रतिभाएं किस तरह नया हो या पुराना हर गीत पेश करती दिखायी देती है। उस बीच यह नहीं बोला जाता कि यह गीत हमें याद नहीं है। ठीक यही है प्रतिभा।
सृजन में विषय बहुत महत्वपूर्ण है यह भी आपको तय करना है। सामाजिक क्षेत्र में लिखना चाहें तो तमाम विसंगतियां है। लेखन पूर्व जरूर आपके सामने प्रश्न आयेगा क्या लिखूं? जैसा कि महान साहित्यकार पदुमलाल पुन्नालाल बक्शी ने लिखा था। अब आप किसी दूसरों से विषय मांग कर लेखन करना चाहें तो कोई बात नहीं हुई। आप क्या सोचते हैं?क्या मन में आ रहा है। सोते,जागते,टीवी पर शो एवं खबर देखते तमाम ऐसी बातें है,जहां यदि आप साहित्य प्रतिभा हैं तो उस विषय को पकड सकते हैं। पत्रकारिता के लिए आप कहें कि किस पर खबर लिखूं।
लिखने के लिए आपका लेखन नजरिया होना चाहिए। फिर देखिये कि आपको कैसे किन-किन चीजों पर खबर नजर नहीं आता। साहित्यकार कहलाना जरूर पसंद है पर समर्पित रहना नहीं शायद ! किस तरह स्थानीय जगहों पर किसी साहित्यिक आयोजन के लिए जद्दोजहद करनी पडती है। बात-बात पर नाराज होते देखा जाता है।
छोटी-छोटी बातों को इगो का विषय मान लिया जाता है। एक छोटी सी शब्द पर तो नाराजगी से लेकर क्या-क्या अर्थ नहीं निकाले जाते। लेकिन साम्य बनाने की बात पर कदम बढ़ाना भी तो स्वयं का जिम्मा और समझदारी है।
सच बोलो तो मनोज तंज कस रहा है वाली बात आती है,जो साहित्यकारों को भी नहीं छोडता। लेखन में सच को लिखने में तंज कैसा? यदि तंज ही मान लिया तो भी कोई बात नहीं जैसा कि ऊपर लिखा और सनद हो कि कड़वा सच जब परोसी जाएगी तो निश्चित रूप से जिसे खराब लगेगा तो अपने ऊपर सुधार लायी जायेगी। रचनाओं के लिए रचनाएं खोजी जाने की क्या जरूरत!
समसामयिक से लेकर जब आपकी साधना में सृजन हो कर लिया। सागर की भांति विराट क्षेत्र में से एक बुंद के लिए सोचना पड़े तो ऐसे में साहित्य प्रतिभा कैसे कहा जाएगा। जिन्हें खुद के रचना प्रकाशन के लिए प्रेस में देने हेतु सोचना पडे।
साहित्य ऐसी साधना जो किसी पुरस्कार का मोहताज नहीं है। बताने की जरूरत नहीं है कि आप साहित्य प्रतिभा हैं। नियमित साहित्य लेखन साधना आपका परिचय देने काफी है। हम भी लिखते हैं कह कर परिचय देने की भी जरूरत नहीं है, वह तो आपकी कीर्ति स्वयं आपको इंगित करा देगा। लिखने वाला कभी किसी विषमता को देख चुप नहीं बैठ सकता। चाहे दूसरों का लेखन क्यों न हो। उस पर जरूर टिप्पणी करेगा। वैसे भी विषमताओं को देख चुप रहना तो धर्म भी नहीं है।