“हिंदी पत्रकारिता दिवस” मित्रों किस शब्द से बधाई दूं” श्री मनोज जायसवाल संपादक सशक्त हस्ताक्षर कांकेर(छ.ग.)

श्री मनोज जायसवाल
पिता-श्री अभय राम जायसवाल
माता-स्व.श्रीमती वीणा जायसवाल
जीवन संगिनी– श्रीमती धनेश्वरी जायसवाल
सन्तति- पुत्र 1. डीकेश जायसवाल 2. फलक जायसवाल
(साहित्य कला संगीत जगत को समर्पित)
“हिंदी पत्रकारिता दिवस” मित्रों किस शब्द से बधाई दूं”
– विकट स्थितियों साथ देने वाले पत्रकार अच्छे दिनों में गलत कैसे हो सकते हैंॽ
सबकी खबर और सबको खबर देने वाले। घर परिवार से दूर वे सुदूर एवं दुर्गम इलाकों में सब कुछ न्यौछावर कर आपको खबर देने वाले। किसी भी पार्टी संगठन का आयोजन हो निष्पक्ष रूप से अपनी कव्हरेज से जनमानस में फैलाने वाले वे “पत्रकार” जिन्हें सीधे एक शब्दों में आप कहीं चाटुकारिता कहीं दलाल और न जाने कौन कौन सी भाषा से बिना अपने आप पर नजर डाले सोशल में कुछ बोल रहे होते हैं।
वे भाषा ये नाम जो होंगे उसी पर हो। पत्रकार जगत विशाल समंदर है‚जिस पर ऐसा तुच्छ मानसिकता से बोलना किसी भी दृष्टि से उचित नहीं है। किसी घटना‚दुर्घटना‚हादसों पर पुलिस से पहले पहूंच कर प्रभावितों को अस्पताल तक पहूंचाकर मानवता की सेवा करने वाले पत्रकार की तभी याद आती है‚ विकट स्थिति परिस्थितियों में तो बाकी अच्छे दिनों में कैसे वो गलत हो सकते हैंॽ कुछ लोग जरूर पत्रकारिता जगत को बदनाम किया पर सभी ऐसा नहीं। पत्रकार जगत में ही साहित्य भी आता है।
यह सब लेखन का ही क्षेत्र है। कोई कलमकार सिर्फ पैसे के लिए नहीं लिखता। पैसा तो बाद का विषय होता है। जैसे किसी सिंगर एवं कलाकार के लिए मंच अहम होता है। अपनी जान जोखिम में डाल सुदूर अंचल में काम कर रहे वे पत्रकार बंधु जो हमेशा समाज के लिए डटे हुए हैं। हर पल की खबर आप तक पहूंचा रहे होते हैं।
वे स्वयं अभी तक किसी भी प्रकार से उग्र तो उग्र शांति पुर्वक विशाल आंदोलन भी नहीं किए हैं। छत्तीसगढ प्रदेश के कई संगठन जो अपनी मांग कर रहे हैं‚ जरूर उन पर खबर आ रहा होता है‚ लेकिन अभी तक पत्रकारों के संबंध में कोई खबर छन कर नहीं आ रही है। एक मात्र “पत्रकार” सुरक्षा कानुन के लिए पत्रकार एकजुट हैं‚ लेकिन आज पत्रकारिता दिवस के शुभ दिन में भी सकारात्मक विचार हो तो यह मांग पुरी कर प्रदेशभर के वे पत्रकार जो इस चुनावी वर्ष में आस बंधाये हैं‚ उन्हें उपहार दिया जा सकता था। पर अभी तक कोई रूझान भी न आने से उत्साहित नहीं है।
छत्तीसगढ में पत्रकार कम उत्पीडित नहीं है। कही विद्वेश भुनाया जा रहा तो कहीं फर्जी रिर्पोट दर्ज कर कर कलम रोकने का कुत्सित प्रयास किया गया है। सबके लिए संवेदना रखने वाले पत्रकारों के लिए सरकार की संवेदना कब जागेगी यह विचारणीय प्रश्न बना हुआ है। सब तरफ से स्वयं उत्पीडन का शिकार हुए मेरे वे पत्रकार भाईयों को मैं किस शब्द से किस मुंह से बधाई भी दुं यह मैं सोच रहा हूं।