ऐसे भी उत्कृष्ट रचनाओं का क्या? श्री मनोज जायसवाल संपादक सशक्त हस्ताक्षर कांकेर(छ.ग.)

श्री मनोज जायसवाल
पिता-श्री अभय राम जायसवाल
माता-स्व.श्रीमती वीणा जायसवाल
जीवन संगिनी– श्रीमती धनेश्वरी जायसवाल
सन्तति- पुत्र 1. डीकेश जायसवाल 2. फलक जायसवाल
(साहित्य कला संगीत जगत को समर्पित)

ऐसे भी उत्कृष्ट रचनाओं का क्या?
कितने ही उत्कृष्ट गजल हो या अन्य आलेख। यदि आपकी कलम आम पाठकों की समझ से बाहर हो, तो आपकी कलम की अहमियत क्या है? यह विचार करने वाली बात है। अंतिम सिरे के व्यक्ति की तो बात ही छोड़ो। कितनी सरल,धाराप्रवाह लाईनें आप लिखते हैं!
जिन मुद्दों पर लिखते हैं वह किसी सामाजिक असमानता सिस्टम को ठोकर मार रही है कि नहीं! किसी को तंज लग रहा है कि नहीं। यदि इन बातों को दरकिनार आपका कोई आलेख रचना जिसे शब्दों से सजासंवार कर कितनी ही अच्छी प्रस्तुती दी जाय उसके कोई मायने नहीं है।
कई लोग अपनी अपनी विधा वालों को आजकल के वाट्सएप ग्रुप में एड किए होते हैं। यथा -कोई साहित्य पत्रकार वाला ग्रुप है तो उसमें इससे जुड़े व्यक्तियों को शामिल किया जाता है। खुद को पता है कि इसमें आपके ही बिरादरी के लोग जुड़े हैं, हॉं में हॉं मिलायी जाएगी फिर जो लेखन सामग्री डाली जाएगी वो तो आपके अपनों तक सीमित हो गया।
फायदा तो तब है जब उसमें अन्य लोग भी जुड़े हों। अपनी विधा अपनों के लिए ही परोसने का क्या? कोई आयोजन में जब तक आम लोगों की जन उपस्थिति न हो तब इस आयोजन का क्या? आपके जैसे ज्ञानी के आयोजन में कौन ज्ञान ग्रहण करेगा। अतएव अपनी विधा पर गर्व न कर आम लोगों को महत्व दें जो जनबल से भी आपको सम्मान देते मान बढ़ाते हैं।
वरन ज्ञानियों की टोलियों में तो सकारात्मक नहीं आपकी लाईनों में नकारात्मक भाव के पीछे पड़े होते हैं। महत्व उन लाईनों का ज्यादा है,जो आम लोगों तक की समझ में आ जाए। उत्कृष्टता के नाम आम लोगों की समझ में न आने वाली लाईनों का प्रयोग खुद में जरूर गदगद हों पर आम बाहरी दुनियां में बड़ा औचित्य नहीं जान पडता।
कुल मिलाकर आपकी कलम सहज,सरल हो जो अच्छी तरह पाठक समझ सकें। आज के सोशल युग में लोगों को सारगर्भित मैटर चाहिए। काव्य में वो समय नहीं देना चाहते। दरअसल गद्य की भाषा उन्हें ज्यादा समझ आती है,वो भी तब जब वो ज्यादा क्लिष्ट ना हों। खासकर उर्दू के वो शब्द ना हों जिसके मायने अच्छे अच्छों की समझ में ना आये।
आजकल कई नवोदित साहित्यकारों में पुस्तक प्रकाशन और विमोचन की होड लगी है। पैसे की बदौलत उनके अपने खुद के जीवन से मिली सीख को भावनात्मक कविताएं लिख कर जब 20-25 काव्य हो जाए तो पुस्तक प्रकाशक को मय पैसे के साथ देकर पुस्तक बनवा लिए। लेकिन उनके इस काव्य को भी उत्कृष्टता,प्रामाणिकता की कसौटी पर कसे जाने की बातें खुद नहीं जानते,क्योंकि ऐसे साहित्यकारों का देश के राष्ट्रीय समाचार पत्र पत्रिकाओं में कभी प्रकाशन ही नहीं हुआ। इनकी रचनाएं वहां प्रकाशित हो तो जाने कि प्रकाशन के लिए उत्कृष्टता क्या है?
वे लिखने के नाम अपने को मशहुर करें,पर पाठकों को यह जानना जरूरी है कि क्या और कैसे लिखते हैं!