”खुशियाें भरी क्रिसमस” श्री मनोज जायसवाल संपादक सशक्त हस्ताक्षर‚कांकेर (छ.ग.)
श्री मनोज जायसवाल
पिता-श्री अभय राम जायसवाल
माता-स्व.श्रीमती वीणा जायसवाल
जीवन संगिनी– श्रीमती धनेश्वरी जायसवाल
सन्तति- पुत्र 1. डीकेश जायसवाल 2. फलक जायसवाल
(साहित्य कला संगीत जगत को समर्पित)

”खुशियाें भरी क्रिसमस”
प्रति वर्ष 25 दिसंबर को प्रभु-पुत्र ईसा मसीह का जन्मदिन हर्षाेल्लास से मनाने की परंपरा है। वैसे क्रिसमस 12 दिनों तक चलने वाला उत्सव है। 25 दिसंबर यीशु मसीह का जन्मदिन होने का यूं तो कोई तथ्यपूर्ण प्रमाण नहीं है, लेकिन समूची दुनिया इसी तिथि को यह रोमन पर्व सदियों से मनाती चली आ रही है। ना सिर्फ इसाई समुदाय अपितु जो सर्वधर्म को मानते हैं‚ वे भी अपने मुताबिक क्रिसमस अपने घरों में बच्चों एवं अपनों के साथ केक काट कर मनाते हैं। यही कारण है कि नगरों में तमाम बाजारों में रौनक दिखायी देती है।
कैसे मनाते हैं, त्यौहार !
अनुमान है कि पहला क्रिसमस रोम में 336 ईस्वी में मनाया गया था। इस अवसर पर गिरजा घरों को आकर्षक ढंग से सजाया जाता है। लोग अपने आंगन में क्रिसमस ट्री बनाकर उसे रंग-बिरंगे बल्बों से सजाते हैं। गिरजाघरों में यीशु के जन्म से संबंधित झांकियां तैयार की जाती हैं। 24 दिसंबर की आधी रात (ठीक 12 बजे) यीशु का जन्म होना माना जाता है, इसलिए गिरजाघरों में ऐन वक्त पर विशेष प्रार्थना की जाती है, कैरोल गाए जाते हैं और अगले दिन धूमधाम से त्योहार मनाया जाता है।
कौन हैं, सांता?
पौराणिक मान्यता है कि क्रिसमस की रात बड़ी सफेद दाढ़ी-मूंछ वाले सांता स्वर्ग से उतरकर हर घर में आते हैं और बच्चों के लिए तोहफे की पोटली क्रिसमस ट्री में लटकाकर चले जाते हैं। इसलिए बच्चों में इस पर्व को लेकर काफी उत्साह देखा जाता है। व्यापक रूप से स्वीकार्य एक ईसाई पौराणिक कथा के अनुसार, प्रभु ने मैरी नामक एक कुंवारी लड़की के पास गैब्रियल नामक देवदूत को भेजा। गैब्रियल ने मैरी को बताया कि वह प्रभु के पुत्र को जन्म देगी तथा बच्चे का नाम जीसस रखा जाएगा। वह बड़ा होकर राजा बनेगा और उसके राज्य की कोई सीमा नहीं होगी।
देवदूत गैब्रियल, एक भक्त जोसफ के पास भी गया और उसे बताया कि मैरी एक बच्चे को जन्म देगी। उन्होंने उसे सलाह दी कि वह मैरी की देखभाल करे। जिस रात को जीसस का जन्म हुआ, उस समय नियमों के अनुसार अपने नाम पंजीकृत कराने के लिए मैरी और जोसफ बेथलेहेम जाने के रास्ते में थे। उन्होंने एक अस्तबल में शरण ली, जहां मैरी ने आधी रात को जीसस को जन्म दिया। इस प्रकार प्रभु के पुत्र जीसस का जन्म हुआ।
क्यों मनाते हैं,ईस्टर
ईसा मसीह के विचार उस समय के क्रूर शासक पर नागवार गुजरा और उसने प्रभु-पुत्र को सूली पर टांगकर हथेलियों में कीलें ठोंक दीं। इस यातना से यीशु के शरीर से प्राण निकल गए, मगर कुछ दिन बाद वे फिर जीवित हो उठे। इस खुशी में ईस्टर मनाया जाता है।
कौन है, मरियम
मॉं छठवें महीने में परमेश्वर की ओर से जिब्राईल स्वर्गदूत गलील के नासरत नगर में एक कुंवारी के पास भेजा गया। जिस की मंगनी यूसुफ नाम दाऊद के घराने के एक पुरूष से हुई थी। उस कुंवारी का नाम मरियम था। और स्वर्गदूत ने उसके पास भीतर आकर कहा; आनन्द और जय तेरी हो, जिस पर ईश्वर का अनुग्रह हुआ है, प्रभु तेरे साथ है। वह उस वचन से बहुत घबरा गई और सोचने लगी, कि यह किस प्रकार का अभिवादन है? स्वर्गदूत ने उस से कहा, हे मरियम भयभीत न हो, क्योंकि परमेश्वर का अनुग्रह तुझ पर हुआ है।
और देख, तू गर्भवती होगी और तेरे एक पुत्र उत्पन्न होगा, तू उसका नाम यीशु रखना। वह महान होगा; और परम प्रधान का पुत्र कहलाएगा; और प्रभु परमेश्वर उसके पिता दाऊद का सिंहासन उस को देगा।
और वह याकूब के घराने पर सदा राज्य करेगा; और उसके राज्य का अन्त न होगा। मरियम ने स्वर्गदूत से कहा, यह क्योंकर होगा? मैं तो पुरूष को जानती ही नहीं। स्वर्गदूत ने उस को उत्तर दिया; कि पवित्र आत्मा तुझ पर उतरेगा और परम प्रधान की सामर्थ तुझ पर छाया करेगी इसलिये वह पवित्र जो उत्पन्न होनेवाला है, परमेश्वर का पुत्र कहलाएगा।