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सर्जक को कभी मृत्यु प्राप्त नहीं होता – डॉ. चित्तरंजन कर

(मनोज जायसवाल)

.-परमार जी प्रशंसकों की भीड़ में अकेले रहने वाले गीतकार थे – डुमन लाल ध्रुव
धमतरी(सशक्त हस्ताक्षर)। नगर की जिला हिन्दी साहित्य समिति द्वारा आयोजित यशस्वी कवि स्व. नारायण लाल परमार के 98 वें जन्मदिन के अवसर पर साहित्यकारों एवं सभी श्रद्धेय जनों की उपस्थिति में स्व.नारायण लाल परमार पर केन्द्रित उनके लिखे नवगीतों की सांगीतिक प्रस्तुति प्रख्यात भाषाविद , गीतकार ,गायक डॉ.चित्तरंजनकर जी द्वारा की गई। कार्यक्रम का शुभारंभ स्व.नारायण लाल परमार के तैल चित्र पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्जवलन कर किया गया। अतिथियों का स्वागत शाल, श्रीफल, पुष्पगुच्छ भेंट कर किया गया।

इस अवसर पर जिला हिन्दी साहित्य समिति अध्यक्ष डुमन लाल ध्रुव ने अपने स्वागत उद्बोधन में कहा कि श्री नारायण लाल परमार छत्तीसगढ़ के एक ऐसे हिन्दी रचनाकार थे जिनकी ख्याति अखिल भारतीय स्तर पर थी। श्रीपरमारजी बाल साहित्यकार तो थे ही लेकिन नवगीतों के माध्यम से अपनी अविस्मरणीय उपलब्धियां भी छोड़ी है। परमार जी का संघर्षशील रचनाकार जब अपनी नियति को ललकारने लग जाता है,तब रचनाकार के शब्द, शब्द नहीं रह जाते।वे शस्त्र बन जाते हैं – ओ मेरी नियति इतना जान ले कि मेरे होठों पर मुस्कुराहट सुखेगी नहीं क्योंकि यह मेरा एकमात्र संकल्प है कि एक न एक दिन मैं तुझे पराजय की भाषा सिखा कर ही रहूंगा।

इस तरह परमार जी प्रशंसकों की भीड़ में अकेले रहने वाले गीतकार थे। संरक्षक श्री गोपाल शर्मा ने कहा – परमार जी के गीतों में शिल्प कथ्य के दर्शन होते हैं। परमार जी के साहित्य में आशावादी है। आमंत्रित अतिथियों का परिचय देते हुए परमार जी की बड़ी सुपुत्री डॉ.रचना मिश्रा ने बताया कि पापाजी के नवगीतों में ग्रामीण समाज और उसकी प्रकृति संपदा से बहुत गहरा जुड़ाव था। गांव की संस्कृति में जीवन की वास्तविक तृप्ति घुली होती थी। दुर्ग से आमंत्रित साहित्यकार  बलदाऊ राम साहू ने कहा- श्री नारायण लाल परमार जी ने मील के उस पत्थर से अपनी यात्रा शुरू की। जब गीत, विषम यथार्थ के धरातल पर जीवन मूल्यों के लिए संघर्ष था, जब नए शब्द- प्रतिमानों,प्रतीक – बिंबों के औजारों से गीत अस्मिता को तलाशी जा रही थी।

तत्पश्चात गायक डॉ.चित्तरंजनकर जी ने परमार जी की कृति रोशनी का घोषणा पत्र के नवगीत सुबह-सुबह छरहरी रंग रूप रस भरी आमंत्रण बांट रही धूप दुपहर को नई सृष्टि नए मूल्य, नई दृष्टि लगता है, डांट रही धूप की प्रस्तुति देते हुए कहा कि सर्जक को कभी मृत्यु प्राप्त नहीं होता क्योंकि वह अपने जीवन काल में ही समय से कई शताब्दियों आगे तक के लिए अपने भीतर के संसार का शब्द चित्र रचना में उकेर जाता है ।

आज भी परमार जी अपने साहित्य दर्पण के माध्यम से हमारे बीच उपस्थित हैं। उन्होंने आगे कहा परमार जी के प्रिय शिष्य एवं जिला हिन्दी साहित्य समिति के अध्यक्ष डुमन लाल ध्रुव एक चुम्बकीय व्यक्तित्व है जिनके कारण इस तरह के आयोजन में सभी साहित्यकार जुड़ पाते हैं। मैं लीक से हट सकता हूं लेकिन लोक से नहीं। आसमान की आंखें मुझको उकसा रही कोयल के लिए मधुर गीत बार-बार लिखूं कोई अफसोस नहीं बीत गई रात का मुझको विश्वास बहुत इस नये प्रभात का धूल भरी धूप के पलाशिया कपोलों पर अधरों की ऊष्मा से आकुल त्यौहार लिखूं।

आंगन के कोने में बिल्ली सी चुप बैठी धूप क्वांर की आशा करना फिजूल सूरज की बेटी से सदाचार की। अंधियारा फैला है अजगर की तरह आज सूरज के नये बीज चलो आज रोप दें। प्रेम का वरदान पाकर धन्य मेरा गांव पसीना ही एक मंगलसूत्र माटी का परिश्रम के सामने हर दृश्य है फीका प्रार्थना सी धूप है जिसकी धरती सी छांव। यदि चुरा लाये तुम्हारी याद की खुशबू जरा सी गीत ये मेरे अयाने हैं बुरा क्यों मानती हो ?

जैसे नवगीतों की बारी बारी से प्रस्तुति दी जो शास्त्रीय लय ताल में निबद्ध थे। रुपेन्द्र श्रीवास्तव ने दीपचंदी ,एकताल, झपताल,तीन ताल,दादरा तालों के माध्यम से उंगलियों को थिरकाते हुए तबला में संगत किया साहित्य भवन के सभागार में उपस्थित साहित्य रसिकों ने जी भर के गीत संगीत का रसास्वादन किया। अंत में साहित्य समिति के बैठक व्यवस्था हेतु श्रीमती कामिनी कौशिक, आकाशगिरी गोस्वामी ने दस- दस व रेडक्रास सोसायटी के चेयरमैन प्रदीप कुमार साहू,गेवेन्द्र कामड़े, शेष नारायण गजेन्द्र,वैभव रणसिंह ने पांच- पांच नग कुर्सी सप्रेम भेंट किया गया। समिति द्वारा दानदाताओं के प्रति आभार व्यक्त करते हुए पुष्प गुच्छ भेंट कर सम्मान किया गया।कार्यक्रम का संचालन कवयित्री श्रीमती कामिनी कौशिक ने की। आभार प्रदर्शन श्री चन्द्रशेखर शर्मा ने किया।

कार्यक्रम संयोजन आकाशगिरी गोस्वामी, लोकेश कुमार प्रजापति ने किया। इस अवसर पर मुख्य रूप से श्रीमती माधुरी कर, निमिष परमार, रेखा परमार, प्रार्थना शाह, संजय शाह, नरेश चंद्र श्रोती, चन्द्रहास साहू, कुलदीप सिन्हा, श्रीमती ऊषा गुप्ता,श्रद्धा कश्यप,हस्ताक्षर चौनल के संपादक मनोज जायसवाल, डॉ.अनंत दीक्षित, राकेश दीवान,पी.व्ही.पराडकर,एच .एस.आरमो,एन.एस.सोनकुसरे,हीरालाल साहू, राजकुमार गंजीर,तीर्थराज साहू,जे.एल.साहू,आर.एल. कुल्हारा,लक्ष्मण हिन्दुजा, मदनमोहन दास, लोकेश साहू, कमलेश पांडे, धनंजय पांडे, श्रीकांत वेरुलकर, कुलेश्वर कुमार यादव, डॉ.माझी अनंत, मोहम्मद तारीक, रिजवान अली, अखिलेश मिश्रा, श्रीकांत सरोज,गोपी मिश्रा,लालाराम मगेन्द्र, प्रेमशंकर चौबे,सुनील साहू,वरुण मिश्रा, शिवशंकर कन्नौजिया, डॉ.आशीष नायक, भूमिका मिश्रा,भारतेषु मिश्रा,डुमन नेताम उपस्थित थे।उनके लिखे नवगीतों की सांगीतिक प्रस्तुति प्रख्यात भाषाविद , गीतकार ,गायक डॉ.चित्तरंजनकर जी द्वारा की गई। कार्यक्रम का शुभारंभ स्व.नारायण लाल परमार के तैल चित्र पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्जवलन कर किया गया। अतिथियों का स्वागत शाल, श्रीफल, पुष्पगुच्छ भेंट कर किया गया।

इस अवसर पर जिला हिन्दी साहित्य समिति अध्यक्ष डुमन लाल ध्रुव ने अपने स्वागत उद्बोधन में कहा कि श्री नारायण लाल परमार छत्तीसगढ़ के एक ऐसे हिन्दी रचनाकार थे जिनकी ख्याति अखिल भारतीय स्तर पर थी। श्रीपरमारजी बाल साहित्यकार तो थे ही लेकिन नवगीतों के माध्यम से अपनी अविस्मरणीय उपलब्धियां भी छोड़ी है। परमार जी का संघर्षशील रचनाकार जब अपनी नियति को ललकारने लग जाता है,तब रचनाकार के शब्द, शब्द नहीं रह जाते।वे शस्त्र बन जाते हैं – ओ मेरी नियति इतना जान ले कि मेरे होठों पर मुस्कुराहट सुखेगी नहीं क्योंकि यह मेरा एकमात्र संकल्प है कि एक न एक दिन मैं तुझे पराजय की भाषा सिखा कर ही रहूंगा।

इस तरह परमार जी प्रशंसकों की भीड़ में अकेले रहने वाले गीतकार थे। संरक्षक श्री गोपाल शर्मा ने कहा – परमार जी के गीतों में शिल्प कथ्य के दर्शन होते हैं। परमार जी के साहित्य में आशावादी है। आमंत्रित अतिथियों का परिचय देते हुए परमार जी की बड़ी सुपुत्री डॉ.रचना मिश्रा ने बताया कि पापाजी के नवगीतों में ग्रामीण समाज और उसकी प्रकृति संपदा से बहुत गहरा जुड़ाव था। गांव की संस्कृति में जीवन की वास्तविक तृप्ति घुली होती थी। दुर्ग से आमंत्रित साहित्यकार श्री बलदाऊ राम साहू ने कहा- श्री नारायण लाल परमार जी ने मील के उस पत्थर से अपनी यात्रा शुरू की। जब गीत, विषम यथार्थ के धरातल पर जीवन मूल्यों के लिए संघर्ष था, जब नए शब्द- प्रतिमानों,प्रतीक – बिंबों के औजारों से गीत अस्मिता को तलाशी जा रही थी।

तत्पश्चात गायक डॉ.चित्तरंजनकर जी ने परमार जी की कृति रोशनी का घोषणा पत्र के नवगीत सुबह-सुबह छरहरी रंग रूप रस भरी आमंत्रण बांट रही धूप दुपहर को नई सृष्टि नए मूल्य, नई दृष्टि लगता है, डांट रही धूप की प्रस्तुति देते हुए कहा कि सर्जक को कभी मृत्यु प्राप्त नहीं होता क्योंकि वह अपने जीवन काल में ही समय से कई शताब्दियों आगे तक के लिए अपने भीतर के संसार का शब्द चित्र रचना में उकेर जाता है ।

आज भी परमार जी अपने साहित्य दर्पण के माध्यम से हमारे बीच उपस्थित हैं। उन्होंने आगे कहा परमार जी के प्रिय शिष्य एवं जिला हिन्दी साहित्य समिति के अध्यक्ष डुमन लाल ध्रुव एक चुम्बकीय व्यक्तित्व है जिनके कारण इस तरह के आयोजन में सभी साहित्यकार जुड़ पाते हैं। मैं लीक से हट सकता हूं लेकिन लोक से नहीं। आसमान की आंखें मुझको उकसा रही कोयल के लिए मधुर गीत बार-बार लिखूं कोई अफसोस नहीं बीत गई रात का मुझको विश्वास बहुत इस नये प्रभात का धूल भरी धूप के पलाशिया कपोलों पर अधरों की ऊष्मा से आकुल त्यौहार लिखूं।

आंगन के कोने में बिल्ली सी चुप बैठी धूप क्वांर की आशा करना फिजूल सूरज की बेटी से सदाचार की। अंधियारा फैला है अजगर की तरह आज सूरज के नये बीज चलो आज रोप दें। प्रेम का वरदान पाकर धन्य मेरा गांव पसीना ही एक मंगलसूत्र माटी का परिश्रम के सामने हर दृश्य है फीका प्रार्थना सी धूप है जिसकी धरती सी छांव। यदि चुरा लाये तुम्हारी याद की खुशबू जरा सी गीत ये मेरे अयाने हैं बुरा क्यों मानती हो ?

जैसे नवगीतों की बारी बारी से प्रस्तुति दी जो शास्त्रीय लय ताल में निबद्ध थे। रुपेन्द्र श्रीवास्तव ने दीपचंदी ,एकताल, झपताल,तीन ताल,दादरा तालों के माध्यम से उंगलियों को थिरकाते हुए तबला में संगत किया साहित्य भवन के सभागार में उपस्थित साहित्य रसिकों ने जी भर के गीत संगीत का रसास्वादन किया। अंत में साहित्य समिति के बैठक व्यवस्था हेतु श्रीमती कामिनी कौशिक, आकाशगिरी गोस्वामी ने दस- दस व रेडक्रास सोसायटी के चेयरमैन प्रदीप कुमार साहू,गेवेन्द्र कामड़े, शेष नारायण गजेन्द्र,वैभव रणसिंह ने पांच- पांच नग कुर्सी सप्रेम भेंट किया गया। समिति द्वारा दानदाताओं के प्रति आभार व्यक्त करते हुए पुष्प गुच्छ भेंट कर सम्मान किया गया।कार्यक्रम का संचालन कवयित्री श्रीमती कामिनी कौशिक ने की। आभार प्रदर्शन श्री चन्द्रशेखर शर्मा ने किया।

कार्यक्रम संयोजन आकाशगिरी गोस्वामी, लोकेश कुमार प्रजापति ने किया। इस अवसर पर मुख्य रूप से श्रीमती माधुरी कर, निमिष परमार, रेखा परमार, प्रार्थना शाह, संजय शाह, नरेश चंद्र श्रोती, चन्द्रहास साहू, कुलदीप सिन्हा, श्रीमती ऊषा गुप्ता,श्रद्धा कश्यप,हस्ताक्षर चौनल के संपादक मनोज जायसवाल, डॉ.अनंत दीक्षित, राकेश दीवान,पी.व्ही.पराडकर,एच .एस.आरमो,एन.एस.सोनकुसरे,हीरालाल साहू, राजकुमार गंजीर,तीर्थराज साहू,जे.एल.साहू,आर.एल. कुल्हारा,लक्ष्मण हिन्दुजा, मदनमोहन दास, लोकेश साहू, कमलेश पांडे, धनंजय पांडे, श्रीकांत वेरुलकर, कुलेश्वर कुमार यादव, डॉ.माझी अनंत, मोहम्मद तारीक, रिजवान अली, अखिलेश मिश्रा, श्रीकांत सरोज,गोपी मिश्रा,लालाराम मगेन्द्र, प्रेमशंकर चौबे,सुनील साहू,वरुण मिश्रा, शिवशंकर कन्नौजिया, डॉ.आशीष नायक, भूमिका मिश्रा,भारतेषु मिश्रा,डुमन नेताम उपस्थित थे।

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