कविता काव्य

‘बाल अभिलाषा’ खुशी झा बाल साहित्यकार जमशेदपुर

मेरी बस है यही अभिलाषा सपने सच करने की आशा ।
जल्दी से बड़ी हो कर फिर आसमां में फिर उड़ने की आशा।।

मन में मेरे कई खयाल कुछ छोटे तो कुछ हैं विशाल ।
मन में ठाना करुँगी साकार अपने सपनों को देना आकार।।

जीत हार की यह स्पर्धा गाथा गाती बारंबार ।
जीत दिलाती उल्लास जहाँ हार दिखाती नई राह।।

नई राह पर आगे बढ़ना मन मे पाले दृढ़ संकल्प।
तम रजनी का हरकर फिर रश्मि रथी संग होंगे रवि प्रकट।।

अरुण किरण की लाली में नव ऊष्मा का करना संचार।
लाल लहू को धमनी में करने देना स्वच्छंद संचार।।

बेसक फिसलन वाला रास्ता पर मन मे है दृढ संकल्प।
मंजिल पाने की चाहत मन में लिए दृढ संकल्प।।

वीरों का तो काम है लड़ना चाहे युद्ध हो कितना घनघोर ।
कड़क उठे फिर बिजली गर्जन पाँव जमी पर होंगे मौजूद।।

दिनकर जायेंगे फिर शशि आयेंगे करने को फिर थोड़ा विश्राम ।
रवि की फिर धवल किरण लाएंगे भरकर मन मे नव अरमान।।

अरमान पूरा हो जब मन का तब सिंह नाद का होगा गान
गूंज उठेगी जय घोष का नारा भारत माता का ही होगा गान।।

 

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