बहन से आत्मीय संबंध नहीं, तो आपके जीवन में है क्या? (मनोज जायसवाल संपादक सशक्त हस्ताक्षर छ.ग. )

बचपने में भाई बहन के रिश्तों में जिस तरह खेल खेल में लड़ाई झगड़ा और फिर कुछ देर में ही मित्रता जैसे भाव लेते एक हो जाने और फिर रोजमर्रा बितायी जाती थी। विवाह के बाद भी कभी-कभी तनावपूर्ण जीवनचर्या में कोई बात आ जाये उसे भी भूल कर ठीक बचपने जैसे दिनों को याद कर अपने भाई से बात कर लेनी चाहिए।
भाई बड़ा हो या छोटा। मां,पिता के इस दूनियां से चले जाने पर भाई में ही वह स्वरूप देखा जाना चाहिए। माता,पिता के चले जाने के बाद कोई कोई बहनों में यह बात कि अब हमारे कौन हैं वहां?भाई तो अपनी पत्नी के साथ बदल गए हैं। हर परिवार में हो न हो पर अमूमन रूप से यह देखा गया है।
भाई अगर सच्चा है तो उनके लिए तो उनकी बहन उनके जीवनसाथी पत्नी से बढ़कर है। उसके दिल में अपनी बहन के प्रति स्नेह की ज्योत कभी कमजोर नहीं होगी। दीगर मान लिया जाय उन बातों को जिसकी खातिर मनमुटाव ने जन्म लिया है। लेकिन मनमुटाव रिश्तों को निभाने के लिए नहीं होना चाहिए। याद रखें जीवनसाथी यानि भाई की पत्नी भी किसी की बहन है। कानूनन रूप से पिता की संपत्ति,जमीन जायदाद में अपने अधिकारों का प्रयोग करते हक लिया जा सकता है,जो बड़ी बातें नहीं है,लेकिन व्यावहारिक मूल संबंध में कटूता न रहे उन बातों पर भी विचार निहीत है।
भाई और विवाहित बहन के भी संबंधो में यदि आपकी कटूता है,बात नहीं होती तो विचारणीय यह है कि भाई बहन में आत्मीयता का संबंध नहीं है,तो फिर जीवन में आपके पास है क्या? क्योंकि भाई बहन का संबंध तो जन्म जन्मांतर का है। जीवनसाथी का संबंध तो भाई का या बहन का बाद में तय हुआ है।