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गरिमामयी आयोजन में डॉ. शशि की कृति का विमोचन

(मनोज जायसवाल)

– काव्य विमोचन आयोजन में पधारे साहित्यकारों ने डॉ. शशि जायसवाल के संकलन की समीक्षा की। अपने उद्बोधन में गणमान्य नागरिकों ने आत्मिक शांति के साहित्य क्षेत्र में विमोचन समारोह को अग्रणी कदम बताया।

प्रयागराज(सशक्त हस्ताक्षर)। गत 5 जनवरी को साहित्यकार डॉ. शशि जायसवाल, प्रयागराज के सद्यः प्रकाशित काव्य-संग्रह ‘काव्य गगन’ ‘मन तू अधीर क्यों है’ का लोकार्पण हिन्दुस्तानी एकेडेमी के गाँधी सभागार, प्रयागराज में एक गरिमामयी सभा के रूप में सम्पन्न हुआ। कार्यक्रम का शुभारम्भ माँ सरस्वती की छायाचित्र पर माल्यापर्ण, दीप प्रज्जवलन एवं शिक्षिका मधु जायसवाल (सन्त एन्थोनी कान्वेन्ट) की गणेश वन्दना प्रस्तुती के साथ हुआ।

तत्पश्चात् जायसवाल बुद्धिजीवी परिषद् के अध्यक्ष,कमलेन्द्र जायसवाल एवं महासचिव आर. आर. गुप्ता द्वारा मुख्य अतिथि सहित सभी विशिष्ट अतिथियों का स्वागत किया। पुस्तक का विमोचन मुख्य अतिथि प्रो. आनन्द श्रीवास्तव ,पूर्व प्राचार्य, सी.एम.पी. डिग्री कॉलेज एवं पूर्व अधिष्ठाता, महाविद्यालय विकास, इ. वि. वि. ने रिबन काटकर किया। तत्पश्चात् कवयित्री द्वारा अपने ‘काव्य गगन’ को अपने स्मृति शेष माता-पिता को समर्पित करते हुये संग्रह की पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालते हुए संग्रह की चन्द पंक्तियाँ प्रस्तुत की।

कविता सृजन दुर्लभ प्रक्रिया

मुख्य अतिथि ने सभी काव्यरसिकों को सम्बोधित करते हुए कहा कि कविता सृजन एक दुर्लभ प्रक्रिया है जो जन्म-जन्मान्तरों के पुण्य कर्मों के फलस्वरूप ही कुछ व्यक्तियों को प्राप्त होता है। आपने कविता में ध्वनि के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा जब जब घटनाओं में निहित ध्वनि सुनने की प्रतिभा जन्म लेती है, तब तब कविताओं का सृजन होता है।डॉ. जायसवाल के ‘काव्य गगन’ की समीक्षा करते हुए आपने इस संग्रह को प्रसूति में ‘प्रसव की वेदना’ की ‘अनुभूति’ कराता हुआ सा बताया।

‘काव्य संकलन’ की समीक्षा

विशिष्ट अतिथि डॉ. राजेन्द्र त्रिपाठी रसराज अध्यक्ष संस्कृत विभाग, इलाहाबाद डिग्री कॉलेज ने अपने वक्तव्य में कहा कि कविता जब तक हृदय से न जुड़े, स्पन्दित न हो, तब तक पूर्ण नहीं। उक्त संग्रह को आपने अनुभूति एवं प्राकट्य की क्षमता से आप्लावित आशा और निराशा के बीच की अभिव्यक्ति बताया।
कविता मेरी जान है, कविता मेरी शान है
कविता में ही भरा हुआ, सारा जीवन अरमान है
कविता से सम्मान मिला, कविता ही मेरी प्राण है
कविता में इतिहासभरा है, कविता में गुणगान है…आदि पंक्तियों के माध्यम से आपने अपनी समीक्षा प्रस्तुत की।

काव्य सृजन में नैसर्गिक प्रतिभा जरूरी

डॉ. उर्मिला श्रीवास्तव , पूर्व प्राचार्य ने इस मौके पर कहा- कविता सृजन में नैसर्गिक प्रतिभा एवं संवेदनाओं का होना अनिवार्य है। रस, छन्द, अलंकार, भाव व आध्यात्म का होना भी आवश्यक है,जिसकी झलक डॉ. शशि की कविताओं में स्पष्ट दिखाई देती है।।
श्री शैलेन्द्र, वरिष्ठ अधिवक्ता, उच्च न्यायालय ने कविता के विभिन्न उपांगों पर प्रकाश डालते हुए इस काव्य गगन को कवयित्री के अन्तस की खूबसूरत ‘अभिव्यक्ति’ बता कर समीक्षा प्रस्तुत की। वहीं डॉ. रविनन्दन ने विशिष्ट अतिथि के रूप अपने वक्तव्य में कहा कि वह कविता जो केवल अपनी ही अभिव्यक्ति करे, जनसामान्य के भावों को न समेटे, उसकी पूर्णता सम्भव नहीं। जैसे जैसे भावों के साथ गहराई में जाते हैं वैसे वैसे खूबसूरत मोतियों सदृश काव्य सृजन की सम्भावना बढ़ती जाती है।

डॉ. कल्पना वर्मा (अध्यक्ष हिन्दी विभाग आर्य कन्या पी. जी. कॉलेज) ने अपने अध्यक्षीय आसंदी में कहा कि कविता होती किसी और की है, लेकिन पढ़ता कोई और है, बशर्ते सृजन करने वालों के लिये स्वान्तः सुखाय होना जरूरी है। लय, स्वर के साथ एक संदेश कि होना कविता का अनिवार्य अंग है। अन्त में परिषद के महासचिव आर आर. गुप्ता ने सभी अतिथियों एवं उपस्थित साहित्यानुरागियों के प्रति आभार व्यक्त करते हुए धन्यवाद ज्ञापित किया।

यह थे,उपस्थित

उक्त कार्यक्रम में विनोद कुमार शर्मा श्अनुरागश् डॉ. विद्या सागर गुप्ता, भीभ शंकर , दीनानाथ जायसवाल,सुनील जायसवाल, मानिक चन्द्र, गिरीश, राकेश ‘राजू’ डॉ. सुधा जायसवाल, डॉ. कौमुदी श्रीवास्तव, डॉ. कृष्ण स्वरूप आनन्दी, डॉ. अरविन्द मालवीय,जूही जायसवाल, प्रिया, मिनाक्षी मजूमदार आदि प्रबुद्धगण, मनीषी, काव्य प्रेमी एवं कलमकार उपस्थित रहें। गरिमामयी कार्यक्रम का संचालन डॉ. ज्योति रानी जायसवाल (असिसटेंट प्रोफेसर, प्राचीन इतिहास, पी. जी. कॉलेज) ने किया। डॉ. शशि जायसवाल ने आयोजन में उपस्थित सभी साहित्यकारों,बुद्विजीवियों का आभार व्यक्त करते कहा कि अपने बहुमूल्य समय से विमोचन कार्यक्रम में आपने जो आपने समय दिया वह मैं कभी नहीं भुला पाऊंगी। आभारी हूं और रहूंगी कि इसी तरह आप सभी आगे भी स्नेह बनाये रखेंगे।

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