‘साहित्य में आज खुलेपन का दौर विचारणीय’श्री संतोष श्रीवास्तव ‘सम’ संपादक जागाे भारत कांकेर छ.ग.

‘साहित्य में आज खुलेपन का दौर विचारणीय’
हमें यह बात नहीं भूलनी चाहिए कि हमारा देश एक बहुत ही लंबे समय तक गुलाम रहा। जबकि यह देश मूल रूप से त्रेता युग में श्री राम जी एवं द्वापर युग में श्री कृष्ण जी जैसे तमाम अवतारों से पुष्पित होता रहा था। गोस्वामी तुलसीदास व सूरदास जैसे तमाम साहित्यकारों के अंदर भक्ति का भाव इसलिए आया क्योंकि यह देश सदियों से भक्ति में डूबा रहा है और इस देश की माटी में ही हिंदुत्व विराजित है। जहांँ हमें हिंदुत्व का मतलब धर्म से नहीं लेना चाहिए या किसी संप्रदाय से नहीं लेना चाहिए बल्कि इसका मतलब इस देश की माटी से लेना चाहिए। जहाँ राम व कृष्ण जैसे अवतारों ने साहित्यकारों को प्रभावित किया।
फिर धीरे-धीरे मुगलों ने निहत्थे एवं अपनी धार्मिक भावनाओं से ओतप्रोत हिन्दुओं पर जुल्म ढाते हुए अपना कब्जा इस माटी पर करना शुरू किया। और हम इस क्रम में औरंगजेब बाबर जैसे तमाम मुगल राजाओं की श्रृंखला इतिहास में पाते हैं। यह सारे मात्र एक लुटेरे एवं आक्रमणकारी रहे थे जो यहाँ कब्जा करना चाहते थे। इनका बल तथा शौर्य इतना अधिक था कि भक्ति भाव में डूबे हुए हिंदुओं पर यह बहुत भारी पड़ रहे थे और बहुत वर्षों तक इनके अत्याचार यहांँ के लोग सहते रहे। और इसी कड़ी में ही धर्म की अंधी दौड़ शुरू हुई और हिंदुओं को मुस्लिम बनाने का क्रम चला इस देश के लोग मुस्लिम आक्रमणकारियों से भयभीत होकर मुस्लिम हो जाना प्राण रक्षा के लिए उचित समझा।
दो संप्रदाय हिंदू मुस्लिम
इस देश के मुख्य रहवासी हो गये। इनमें प्रेमभाव व एकता स्थापित करने कबीर जैसे कवियों का दौर चला। और फिर उसके बाद एक और भी चतुर विदेशी जो इंग्लैंड से यहांँ आए थे वे अंग्रेज रहे। इनके द्वारा भी हिन्दुओं का ईसाईकरण हुआ। संप्रदायवाद का जहर कुछ इस तरह घोला जाने लगा कि वह आपस में इन्हें लड़ा कर भारत को अपने कब्जे में करते हुए अपना साम्राज्य कायम करें। और फिर इन्होंने 200 से अधिक वर्षों तक इस देश को अपने कब्जे में कर रखा।
भारत की आजादी विश्व की बहुत बड़ी घटना है। जो घटित हुई। यह देश एक ऐसे मकड़जाल में अपनी गुलामी के दौर में फँस चुका था जहांँ इसके मूल स्वरूप की हत्या कर दी गई थी। यदि हम स्वतंत्रता संग्राम में महात्मा गांधी जी पर अध्ययन करते हैं तो पाते हैं कि उन्हें इस देश में इसलिए एक व्यापक समर्थन मिला कि वे देश की आध्यात्मिकता को अपने अंदर समावेशित कर राम नाम के सहारे इस देश के जन-जन तक पहुंँचकर व्यापक समर्थन सबका हासिल किया। और देश की आजादी को मूर्त रूप प्रदान किया। उनके अनुयायियों में नरम दल एवं गरम दल दोनों शामिल इसलिए थे कि वे उनके अंदर इस देश का मूल होना देखा था।
आज जब हमें स्वतंत्रता मिल चुकी है और सदियों की दास्तांँ के बाद यह देश आजाद हो चुका है, तो अब फिर यहाँ का साहित्य एक खुलापन चाहता है। अपना मूल स्वरूप चाहता है। ताकि वह इस देश के मूल स्वरूप से साक्षात्कार पाकर पुन: तुलसीदास एवं सूरदास की भक्तिकालीन स्वरूप को स्थापित कर सके।
साथ ही मार्कस लेनिन जैसे चिंतक जिन्होंने इस देश के प्रति श्रमिक लोगों को एकजुट कर कहा कि हमें शोषण और अत्याचार और नहीं सहना और सारे विश्व को एकजुट हो जाने पर बल दिया। उनके शुद्ध चिंतन को भी अपने अंदर आत्मसात करना है।
यहांँ पर हिंदुत्व से मैं स्पष्ट करना चाहूंँगा इसका आशय यह है कि इस देश में वर्तमान में रहने वाले जितने भी धर्म जाति संप्रदाय के लोग हैं वे सभी इसमें समाहित हैं। सिंधु के तट पर स्थित यह भूभाग हिंदुस्तान के नाम से जाना जाता है। यहाँ रहने वाले सारे लोग हिंदू हैं। हिंदू कोई संप्रदायवाद नहीं, कोई एक विशेष धर्म नहीं, बल्कि इस देश का प्राण है। जिस मूल में यह भूभाग प्राचीन काल से स्थापित रहा। इस क्षेत्र की माटी रही। उसी से तारतम्य स्थापित करता हुआ यह शब्द है। अगर यहाँ इसे संप्रदायवाद का हिंसात्मक स्वरूप दिया जायेगा तो यह भारत की स्वतंत्रता पर काला धब्बा होगा। जो किसी और को पुन: इस देश में कब्जा करने आमंत्रित करेगा।
यदि आज पवार जी हिंदुत्व एवं राष्ट्रभक्ति का भाव लेकर अपनी कविता में अपने शब्दों को प्रवाहित करते हैं तो यह आज इस देश की आवश्यकता है। मैं चाहूंँगा कि अब हम अपने साहित्य के माध्यम से सिर्फ वही इस देश के लोगों को परोसे जो इस देश का मूल है। और जिस मूल पर यह देश सदियों सदियों तक कायम रहा है। और आज अपनी स्वतंत्रता का ध्वज लेकर पूरे गर्व एवं आत्मविश्वास के साथ खड़ा है।