
”आगमन ऋतुराज का”
मदमस्त पवन चली है,
मिजाज हर बदला सा है,
दिन भी ये ढलने लगा है,
दूर कुछ पलता सा है।
पर कहे कौन क्या राज है।
टेसू के फूल इस कदर से खिले हैं,
स्वच्छंद से यह जैसे पवन से मिले हैं,
लगता तो है यही हो जैसे,
सब प्रेम के कुछ सिलसिले है।
शायद उन्हें इनसे कुछ काज है,
पर कहे कौन क्या राज हैं।
अनबनी सी सब दिशाएंँ दिखी है,
जैसी बिदाई की बेला हो,
शीत सहमी सी खडी़ है,
मानो,
बेबस हो सबने इसको झूला है।
इस पर हमें पर नाज है,
पर कहें कौन क्या राज है।
धीमें धीमें ग्रीष्म,
करवट अब लेने लगा है,
समूची प्रकृति से मानो,
कोई समझौता करने लगा है।
और बनाया इसे कुछ खास है।
जरूर इसमें कुछ राज है।
राज की बात यह कि,
सब ऋतुओं का राजा,
बसंत आता है,
इसके संग यह मधुमास छाता है।
अपने यह सब राज,
एक एक खोलता जाता है।
एक एक पत्ते खोल,
अपनी हर मौलिकता,
वह दिखलाता जाता है।
बसंत आता है,
सखे,
बसंत आता है।