कविता काव्य

”होली है”श्री कमलेश झा श्री कमलेश झा साहित्यकार कवि नगरपारा भागलपुर बिहार

साहित्यकार परिचय : श्री कमलेश झा
जन्म :  01 मार्च 1978 जन्म स्थान नगरपारा भागलपुर
माता,पिता: श्री कैलाश झा   श्रीमती  महाविद्या देवी
शिक्षा : एम बी ए मार्केटिंग इलेक्ट्रॉनिक ग्रेड्यूएट
प्रकाशन  :नई सोच नई उड़ान काविता माला,पापा एक याद  vol 1 से vol 7 तक  प्रिंसिपल ऑफ मैनजमेंट, और डिसीजन मेकिंग प्रोसेस एंड तकनीक
सम्प्रति : लेखन के कार्य से जुड़ा हुआ, देश के विभिन्न प्रान्तों से प्रकाशित अखवारों में करीब 8 दर्जन काविता का प्रकाशन
संपर्क 9990891378  मेल  Kamleshjha1378@gmail.com

 

”होली है”

होली का त्योहार अनुठा बताता है आपसी सौहार्द।
अलग अलग रंगों का मिश्रण जगाता अपना समाजिक सौहार्द।।

रंग अनुपम और गहरा कर दिल में गहरा करता प्यार।
द्वेष घृणा को दूर कराकर दिलमें गहरा करता प्यार।।

दहन होलिका हमे बताती दहन करना है बुरे विचार।
सुन दिल की लाल धड़क को अब शुद्ध करना अब अपना विचार।।

अलग अलग रंगों की चाहत मन में भरता कुछ पाने की चाह।
उस रंगों में लिपट लिपट अब गहरा होता अपना चाह।।

रंग भरे हों अपने जीवन में वसंत ऋतु जैसा हो साल।
सुखद और सरस अनुभूति मिलता रहे बस सालों साल।।

मृग कस्तूरी ढूंढ ढूंढ़ जब सिथिल पड़े हो अपने चाल।
फिर कस्तूरी सुगन्ध फैलाकर ऊर्जा भरे ये रंग के छाप।।

केशरिया रंग उस वीर जवानों को जो सीमा पर है तैयार।
जिनके कठिन तपस्या से ही हम उड़ा रहे यहाँ गुलाल।

दो मोती सफेद अश्रु के जिनका छुटा अपनों से साथ।
रंग हीन इस मोती से जुड़ा रहे अपनों से साथ।।

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