
एक समय गांव गांव देशी तरीके से शराब बनाने से लेकर बिक्री किये जाने वाले अपनी मूल व्यवसाय को लेकर प्रसिद्वि में रहे समाज आज वह सब त्याग कर विकास की ऐसी धारा में पदार्पण कर विकास की नई इबारत गढ रहा है जो अन्य समाज के लिए भी प्रेरणास्पद है।
भले ही आयुर्वेद संहिता में इस बात के बखान मिलते हों कि मनुष्य के लिए इतने प्रतिशत एल्कोहाल लाभप्रद होता है‚ लेकिन इसे भी समझने का प्रयास किया गया कि प्रकृति के दिये अमूमन चीजों में एल्कोहाल की मात्रा पायी जाती है फिर हम क्यों सीधे एल्कोहाल ग्रहण करें। अतीत गवाह है शराब पतन का ही कारण साबित हुआ है‚ उत्थान का नहीं।
सो लोगों ने धीरे धीरे ही सही इससे दूर होना ही उचित समझा। आज स्थिति यह है कि इसी समाज में शराब बनाने के कोई उपकरण नहीं मिलेंगे। विकास के इस दौर में नयी पीढी को यह भी नहीं बता पाएगी कि अतीत में उनका मूल धंधा यह शराब बनाना रहा है। आज समाज से ही कई उच्च सरकारी सेवाओं पर युवा सेवा दे रहे है तो कई निजी कंपनियाें सहित ग्रामीण नगरीय क्षेत्रों में देखा जाय तो कलार समाज के युवा अपने कार्य में एकाग्रचित होकर स्वयं की नयी पहचान बनाए हैं। यही नहीं कृषि क्षेत्र जिसे मजबुरी का नाम कहा जाता है
वहां पर भी इस समाज ने आज तकनीकी खेती के जरीये सब्जियों का उत्पादन एवं खरीब एवं रबी की खेती कर अपनी स्थिति सृदृढ कर ली है। पहले जिस तरह कलार गंवटिया कहा जाता था आज भी कलार गंवटिया के नाम से ग्राम के बुद्विजीवी आम किसान जाने जा रहे हैं। आपसी साम्य बनाने वाले इस समाज के अंदर कभी भी लडाई झगडे जैसी विस्फोटक स्थिति नहीं रही। आज छत्तीसगढ के ही किसी भी ग्राम नगर में जाकर देखें तो सर्वप्रथम प्रतिष्ठानें कलार समाज के युवाओं की ही नजर आयेगी।
बात अगर समाज की हो रही हो तो राजनीतिक क्षेत्र कैसे नजरअंदाज किया जा सकता है। राजनीतिक क्षेत्र में योगदान अच्छा खासा है लेकिन अभी तक सीटों की लडाई में कभी उग्र नहीं हुआ। बात कला क्षेत्र की हो या पत्रकारिता की हर क्षेत्र में कलार समाज के युवाओं की सहभागिता हर किसी को दिखायी दे रहा है।