कविता

‘जल संरक्षण’श्री राजेश शुक्ला ”कांकेरी”शिक्षक,साहित्यकार कांकेर छ.ग.

साहित्यकार परिचय- श्री राजेश शुक्ला ”कांकेरी”

जन्म- 10 दिसंबर 1964

माता-पिता- स्व.कान्ति देवी शुक्ला/स्व.हरप्रसाद शुक्ला

शिक्षा- एम.कॉम, बी.एड.

प्रकाशन- कहानी (किरन),साझा संग्रह (काव्य धरोहर)

सम्मान-

सम्प्रति- व्याख्याता-शास.उच्च.माध्य.विद्या.कोरर, (काँकेर) छ.ग.।
संपर्क- 9826406234

 

. ‘जल संरक्षण’

बूँद-बूँद भी भला , व्यर्थ  जल क्यूँ बहे,
बूँदों  को , अंजुलियों  पर  संभाल   लें।
जल  के  संरक्षण  का ,बीज बोएँ आज,
गर्भ  में  वर्तमान  के , भविष्य  पाल लें।

रोकें अब ना अगर,व्यर्थ जल का बहना,
व्यर्थ  है  हमारा  फिर,इस धरा पे रहना।
नदियो व झरनों का,वजूद हम बचाएँ,
आज  को  सँवारें  कल  को भी सजाएँ।
जल  के व्यर्थ खर्चे,बजट से निकाल लें,
गर्भ  में  वर्तमान  के  भविष्य  पाल  लें।

नगर  बन  गये  सारे,जंगल कंक्रीटों के,
कूचे  सारे  बन  गये , गारे और ईंटों के।
भू  जल  का  स्तर,है खो गया कहीं पर,
जगह नहीं कोई,जल के लिए जमीं पर।
जमीन  की भी प्यास का हाल-चाल लें,
गर्भ  में  वर्तमान  के , भविष्य  पाल लें।

सूखेगी  जब  धरती, जल के अभाव में,
पसरेगी  फिर प्यास,नगर,गली, गाँव में।
जल  की इक बूंद भी,ना होगी कहीं पर,
जल की तब कीमत फिर,आएगी नज़र।
इस भयंकरता के पूर्व,हालत संभाल लें,
गर्भ  में  वर्तमान  के, भविष्य  पाल  लें।

बूँद-बूँद  भी भला , व्यर्थ जल क्यूँ  बहे,
बूँदों   को   अंजुलियों  पर  संभाल  लें।
जल  के  संरक्षण  का  बीज बोएँ आज,
गर्भ  में  वर्तमान  के  भविष्य  पाल  लें।

राजेश शुक्ला “काँकेरी”

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