
हे जगदंबा (देवी बंदना)
हे जगदंबा हे जग तारा
तुम ही हो दुर्गा के रूप।
हे शैलपुत्री हे अंबे गौरी
तुम ही हो माता के रूप ।।
बीच भंवर में नैया डोले
कोई ना अपना खेवन हार ।
आश तुमसे लगी हे माता,
अब तो करवा दो भवसागर पार ।।
छल कपट से भरे पड़े हैं
फिर भी तेरे हैं संतान।
कटुता मन से दूर करो माँ
हम तो बस तेरी संतान।।
पूत कपूत होते हैं माता
पर तुम तो हो करुणा के खान ।
प्रदान करो हे माता तुम
सुख समृद्धि और विद्या का दान ।।
इस जग के तो सारे रिश्ते
स्वार्थ के आधार पर।
पर अपना माँ बेटे का रिश्ता
यह तो केवल प्यार पर ।।
दया दृष्टि हेरो हे माता
हम तो तेरे बालक हैं ।
बालसुलभ गलती को क्षेमो
हमतो तेरे बालक हैं ।।
तुमने तारे बहुत ही पापी
जिसके पापों की थी भरमार ।
तुमने मारे कई असुर
जिससे त्रस्त था संसार ।।
अब आंखें क्यों फेरा हे
माता कष्ट झेल रहा संसार ।
हम अबोध बालक हैं माता
फैला दो आंचल का प्यार ।।
सिंह वाहिनी खप्पर वाली
केसरी पीठ विराजे तुम ।
नौ हाथों में शस्त्र लिए
दानव दमन कराओ तुम ।।
मन के अंदर बैठे अहंकार को
मिट्टी में मिला दो तुम ।
घर समाज के प्यार को
पुनः जागृत करा दो तुम ।।
इस नर तन में कई अवगुण है
जिसका मर्दन कर दो तुम ।
सरल और नेक जनमानस के
हृदय में परिवर्तित कर दो तुम ।।
ब्रह्मचारी वाले गुण को
कलुषित मन में भर दो तुम ।
मन विचलित हो जब मानव का
शांति ज्ञान करा दो तुम ।।
शक्ति रुप हे माता तुम,
तुम ही हो जग के आधार ।
करुणामई दृष्टि डालो हे माता
हम बालक है निराधार ।।
शिव सहचरी ,विष्णु प्रिया तुम ,
तुम ही शारदा भवानी हो ।
इस भूवन के सभी चरा-चर
के तुम तारण हारी हो ।।
कष्ट हरो हे माता जग का
यह जग है तेरी संतान ।
हम सब तो बालक हे माता
हैं बस तेरी संतान ।।
राह दिखाओ हे माता
कर्म पथ हो कैसे महान
प्रदान करो अपना आशीष
हे माता हम तो बस तेरी संतान ।।