कविता

‘हे जगदंबा’ श्री कमलेश झा,साहित्यकार,कवि नगरपारा भागलपुर बिहार

साहित्यकार परिचय : श्री कमलेश झा
जन्म :  01 मार्च 1978 जन्म स्थान नगरपारा भागलपुर
माता,पिता: श्री कैलाश झा   श्रीमती  महाविद्या देवी
शिक्षा : एम बी ए मार्केटिंग इलेक्ट्रॉनिक ग्रेड्यूएट
प्रकाशन  :नई सोच नई उड़ान काविता माला,पापा एक याद  vol 1 से vol 7 तक  प्रिंसिपल ऑफ मैनजमेंट, और डिसीजन मेकिंग प्रोसेस एंड तकनीक
सम्प्रति : लेखन के कार्य से जुड़ा हुआ, देश के विभिन्न प्रान्तों से प्रकाशित अखवारों में करीब 8 दर्जन काविता का प्रकाशन
संपर्क 9990891378  मेल  Kamleshjha1378@gmail.com

हे जगदंबा (देवी बंदना)

हे जगदंबा हे जग तारा
तुम ही हो दुर्गा के रूप।
हे शैलपुत्री हे अंबे गौरी
तुम ही हो माता के रूप ।।

बीच भंवर में नैया डोले
कोई ना अपना खेवन हार ।
आश तुमसे लगी हे माता,
अब तो करवा दो भवसागर पार ।।

छल कपट से भरे पड़े हैं
फिर भी तेरे हैं संतान।
कटुता मन से दूर करो माँ
हम तो बस तेरी संतान।।

पूत कपूत होते हैं माता
पर तुम तो हो करुणा के खान ।
प्रदान करो हे माता तुम
सुख समृद्धि और विद्या का दान ।।

इस जग के तो सारे रिश्ते
स्वार्थ के आधार पर।
पर अपना माँ बेटे का रिश्ता
यह तो केवल प्यार पर ।।

दया दृष्टि हेरो हे माता
हम तो तेरे बालक हैं ।
बालसुलभ गलती को क्षेमो
हमतो तेरे बालक हैं ।।

तुमने तारे बहुत ही पापी
जिसके पापों की थी भरमार ।
तुमने मारे कई असुर
जिससे त्रस्त था संसार ।।

अब आंखें क्यों फेरा हे
माता कष्ट झेल रहा संसार ।
हम अबोध बालक हैं माता
फैला दो आंचल का प्यार ।।

सिंह वाहिनी खप्पर वाली
केसरी पीठ विराजे तुम ।
नौ हाथों में शस्त्र लिए
दानव दमन कराओ तुम ।।

मन के अंदर बैठे अहंकार को
मिट्टी में मिला दो तुम ।
घर समाज के प्यार को
पुनः जागृत करा दो तुम ।।

इस नर तन में कई अवगुण है
जिसका मर्दन कर दो तुम ।
सरल और नेक जनमानस के
हृदय में परिवर्तित कर दो तुम ।।

ब्रह्मचारी वाले गुण को
कलुषित मन में भर दो तुम ।
मन विचलित हो जब मानव का
शांति ज्ञान करा दो तुम ।।

शक्ति रुप हे माता तुम,
तुम ही हो जग के आधार ।
करुणामई दृष्टि डालो हे माता
हम बालक है निराधार ।।

शिव सहचरी ,विष्णु प्रिया तुम ,
तुम ही शारदा भवानी हो ।
इस भूवन के सभी चरा-चर
के तुम तारण हारी हो ।।

कष्ट हरो हे माता जग का
यह जग है तेरी संतान ।
हम सब तो बालक हे माता
हैं बस तेरी संतान ।।

राह दिखाओ हे माता
कर्म पथ हो कैसे महान
प्रदान करो अपना आशीष
हे माता हम तो बस तेरी संतान ।।

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