कविता

‘सच का आईना’श्री कमलेश झा साहित्यकार भागलपुर बिहार

साहित्यकार परिचय : श्री कमलेश झा
जन्म :  01 मार्च 1978 जन्म स्थान नगरपारा भागलपुर
माता,पिता: श्री कैलाश झा   श्रीमती  महाविद्या देवी
शिक्षा : एम बी ए मार्केटिंग इलेक्ट्रॉनिक ग्रेड्यूएट
प्रकाशन  :नई सोच नई उड़ान काविता माला,पापा एक याद  vol 1 से vol 7 तक  प्रिंसिपल ऑफ मैनजमेंट, और डिसीजन मेकिंग प्रोसेस एंड तकनीक
सम्प्रति : लेखन के कार्य से जुड़ा हुआ, देश के विभिन्न प्रान्तों से प्रकाशित अखवारों में करीब 8 दर्जन काविता का प्रकाशन
संपर्क 9990891378  मेल  Kamleshjha1378@gmail.com
 

”सच का आईना”
चेहरे की सच्चाई को बेवाक बताता है आईना।
बिना किसी लोभ मोह के सच दिखाता है आईना।।
रूप छिपा जो मुखौटे में दिखला न पाता है आईना।
मन में छिपे कलुषित विचार को दिखला न पाता है आईना।।
एक आईना मन के अंदर जो दिखलाता है प्रशस्त राह।
उस राह पर चलकर मानव करो प्रशस्त
भाविष्य का राह ।।
गहराई देखो उस आईने की जो सामने से है चमकदार।
पर उसने पृष्ठ भाग पर ओढ़ रखा है एक भद्दा चादर मात्र।।
अपने तन पर झेल दुखों को सच का आईना दिखला देता ।
भाव बबंडर मन के अंदर बेहिचक हीं बतला देता।।
अब बारी अपनी है मन आईना को देखना आप ।
मन के अंदर शुद्ध विचार को अपने हीं पहचानना आप ।।
मानव बनकर हम आए हैं हमें निभाना मानव धर्म।
आईना जैसा निर्भिक रहकर हमें बताना मानव धर्म।।
बेसक सौ दुकड़े में आईना धर्म रहता है उसका साथ।
सत्य बताना मूल धर्म पर टिका रहता है उसका साथ।।

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