साहित्यकार परिचय-अनिल कुमार मौर्य ‘अनल’
जन्म- 22 मई 1980 जन्म स्थान,संजय नगर,कांकेर छत्तीसगढ
माता/पिता – फूलचंद माैर्य श्रीमती राेवती मौर्य, पत्नी-श्रीमती दीप्ति मौर्य, पुत्र-संस्कार,पुत्री-जिज्ञासा मौर्य
शिक्षा- एमए(हिंदी) इतिहास एवं सन! 2019 में विश्व विद्यालय जगदलपुर द्वारा मास्टर आफ आर्ट की संस्कृत विषय में उपाधि, डी.एड.
सम्मान- साहित्य रत्न समता अवार्ड 2017, साहित्य श्री समता अवार्ड 2018 मौलाना आजाद शिक्षा रत्न अवार्ड 2018, प्राइड आफ छत्तीसगढ अवार्ड 2018, प्राइड आफ छत्तीसगढ अवार्ड, सहभागिता सम्मान।
प्रकाशन-कोलाहल काव्य संग्रह।
सम्प्रति- कांकेर जिले में शिक्षक के रूप में कार्यरत।
सम्पर्क- कांकेर माे. 8349439969
‘‘उदिता जी,’’ सादर नमन
गुरू गोविन्द दोऊ खड़े काके लागि पांए,
बलिहारी गुरू आपने गोविन्द दियों बताए।।
अर्थात विश्व में एक गुरू ही है जिसे गोविन्द(भगवान) से भी श्रेष्ठ माना गया है। एक अराधक के समीप गुरू और गोविन्द दोनों ही उपस्थित रहते है लेकिन शिष्य यह असमंजस में है कि वह किसको प्रथम प्रणाम करें तब साक्षात् परमात्मा यह कहता है कि आप गुरू का ही आराधना करों क्योंकि वह मुझसे भी बड़ा है।
तब उसकी आराधाना करते हुए शिष्य सर्वस्व को प्राप्त करता है मनुष्य अगर चाहे तो गुरू किसी भी रूप में हो सकता है। कहने का मतलब यह है कि हमें प्रेरणा कही से भी मिल सकती है क्रौच पक्षी के बहेलिया द्वारा हताहत किये जाने पर दुःखी होकर महर्षि वाल्मिकी ने महा काव्य की रचना की तुलसी जी ने अपनी पत्नी रत्नावली से प्रेरणा पाकर रामचरित मानस को लिखा, यहां मै एक और उदाहरण ‘‘ कस्तुरी कुण्डली बसैय मृग ढूंढय बन माही ऐसे घटि-घटि राम है दुनिया देखे नाही’’ अर्थात एक मृग जिसकी नाभी में एक सुगंधित पदार्थ रहता है लेकिन वह अज्ञानतावश उसे यहां-वहां ढूंढता फिरता है लेकिन जब उसे सत्यता का पता चलता है तब वह व्यर्थ में न भटकते हुए ईश्वर की चरणों में अपने आप को समर्पित कर देता है।
ऐसे ही कांकेर जिले के चारामा विकास-खण्ड के ग्राम अरौद हायर सेकेन्ड्री स्कूल में रसायन शास्त्र के व्याख्याता श्रीमती उदिता भोयर गर्भवती होते हुए भी कोई भी अवकाश नही लिया और सतत् अपने कर्तव्य का निर्वाहन करती रही शिष्टाचारी,क्षमाशील,कर्तव्यनिष्ठ ऐसे तमाम गुण भरे पड़ें है।
अतः इनके संदर्भ में यह उक्ति कही जाय की मन-समर्पित,तन-समर्पित और यह जीवन समर्पित चाहती हूॅ मेरे बच्चों मैं तुम्हे कुछ और भी दूॅ। उदिता जी ने यह बात सत्य कर दिखाया है कि त्याग करने से उसका फल अवश्य ही मिलता है। दूसरे शब्दों में कहे तो मानसिंक व आत्मिक संतुष्टि मिलती है। आज की इस दौर मे जब जीवन संघर्षमय और कठिनाईयों से भरा पड़ा है। बावजूद इसके 8 माह तक लगातार विद्यालय आकर अपने छात्र-छात्राओं की ज्ञान को बढ़ाया को मैं हृदय से नमन करता हूॅ।
और आशा करता हॅू की उदिता मैंडम से प्रेरणा पाकर हमारे अन्य शिक्षक एवं शिक्षिकाए भाईयों एवं बहनों चाहे वह किसी भी स्तर पर अध्यापन करते हो निश्चित ही अपने पढ़ाने के ढ़ग परिवर्तन करते हुए बच्चों के सर्वांगीण विकास करने में सार्थक कदम उठाऐंगे। और अपने शैली व वैक्तित्व में एक नया मुकाम हासिल करेगे। अग्रेजी में कहावत है – ‘‘Style is the man’’ दूसरे शब्दों कहे तो शैली ही व्यक्तित्व है उदिता जी मेंरा यह आलेख आपके श्री चरणों में सादर समर्पित है। मै भी आपकी तरह एक साधारण सा शिक्षक हॅू और यह मान कर चलता हूॅ कि अगर कोई बच्चा लगातार कक्षा-कक्ष में रहते हुए अपने गुरूओं द्वारा पढ़ाये गये पाठ्य विषयों को श्रवण करते हुए अनुकरण करेगें तो निश्चित हा बुलंदी की शिखर तक पहुचेगा।
हे! विद्यार्थियो मै भी एक विद्यार्थी रहा और असफल भी हुआ कभी हतास व निराश नही हुआ बल्कि दृण संकल्प व इच्छा शक्ति लिऐ कर्म करता चला गया और आज सफलता मेरी कदम चुम रही है। यहा मुझें भगवत्-गीता के उपदेश कर्मेनवधिका रस्ते मॉ फलेषु कदाचना, अर्थात कर्म करों -कर्म करों यदि तुम सत्यता के पथ पर चलकर कर्म करोंगे तो तुम्हे सफलता आवश्व मिलेगा। उदिता जी एक बार आपको पुनः नमन।