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“वट सावित्री अमावस्या” प्रकृति संरक्षण के वचन का दिन भी मनाेज जायसवाल संपादक सशक्त हस्ताक्षर छ.ग.

भारतीय सनातन धर्म में वट सावित्री अमावस्या का महिलाओं के लिए काफी महत्वपुर्ण है।ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशी से पूर्णिमा तथा अमावस्या तक करने वाले विधान में सौभाग्यवती महिलाओं के साथ ही आज इसे सभी करती है। सौभाग्यवती महिलाओं के लिए पति की लंबी आयु मुख्य कामना होती है। कथा देखें तो जब यमराज सत्वान के प्राण ले जाने लगे तो सावित्री भी उनके पीछे पीछे चलने लगी। ऐसे में यमराज ने उन्हें तीन वरदान मांगने को कहा। सावित्री ने एक वरदान में सौ पुत्रों की माता बनना मांगा और जब यम ने उन्हें ये वरदान दिया तो सावित्री ने कहा कि वे पतिव्रता स्त्री है और बिना पति के मां नहीं बन सकती।
यमराज को अपनी गलती का अहसास हुआ और उन्होंने चने के रूप में सत्यवान के प्राण दे दिए। सावित्री ने सत्यवान के मुंह में चना रखकर फूंक दिया, जिससे वे जीवित हो गए। तभी से इस व्रत में चने का प्रसाद चढ़ाने का नियम है। पुजा में जल, मौली,रोली, कच्चा सूत, भिगोया हुआ चना, फूल तथा धूप होनी चाहिए। जल से वट वृक्ष को सींचकर तने के चारों ओर कच्चा धागा लपेटकर तीन बार परिक्रमा का विधान है।व्रत सावित्री कथा का श्रवण कर अपनी सास तथा बडे बुर्जुगों को प्रणाम की जानी चाहिए।
पुराणों में यह वर्णन मिलता है कि वट वृक्ष में ब्रह्मा, विष्णु व महेश तीनों का वास है। इसके नीचे बैठकर पूजन, व्रत कथा आदि सुनने से मनोकामना पूरी होती है। वट वृक्ष अपनी विशालता के लिए भी प्रसिद्ध है। वैज्ञानिक दृष्टि से भी देखा जाय तो वट वृक्ष मानव जीवन के लिए काफी मात्रा में आक्सीजन छोडते हैं। भरी गर्मी में इसके नीचे छांव में आराम करने पर मानसिक शांति मिलती है। अतीत में ऐन गर्मी के दिनों में वट के इन्हीं गुणों की वजह से भी की जाती रही हो। पर निरंतर प्रकृति से हो रही छेडछाड और वनों की कटाई से आज का दिन प्रकृति के संरक्षण हेतु वनों की कटाई से बचाने वचन लेने का दिन भी है।

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