आलेख

”मेरी हसी से मेरी मुलाकात” श्रीमती  झरना माथुर साहित्यकार,कवयित्री,गायिका देहरादून उत्तरांचल

साहित्यकार जीवन परिचय-श्रीमती  झरना माथुर
माता-पिता -श्रीमती ऊषा सक्सेना& स्वर्गीय श्री विनोद कुमार
जन्म तिथि- 12.03.74
प्रकाशन-“नवांकुर”और “एहसास दिलों के”
पुरस्कार/सम्मान-काव्य विभूषण,श्रेष्ठ रचनाकार,प्रज्ञा रत्न,कोरोना योध्दा सम्मान,बागेश्वरीसम्म्मं,अटल रत्न सम्मान,साहित्य रत्न सम्मान,काव्य पुंज सम्मान।
सम्प्रति-
सम्पर्क-2,सीमेंट रोड करनपुर,देहरादून।
”मेरी हसी से मेरी मुलाकात”
एक बार मेरी हसी से मेरी मुलाकात हो गयी।जैसे मेरे मन की बात हो गयी।मैने हसी से पूछा क्यूँ हसी तेरे अनेक रूप है।कभी तू अधरों पे खुल के खिल जाती है और कभी हौले से धीमे पाव चली आती।हरेक की जिन्दगी में आती जरुर है।कभी जल्दी और कभी देर से।मैने तेरे उस स्वरूप को भी देखा है जिसमे तू अपना पूर्ण रूप बदल लेती है और ठहाका बन के गूंज उत्पन्न करती हो।जिसमे ऊर्जा का वास होता है।
तू मुझसे क्यू रुठी रह्ती है।कभी मेरे अधरों पे भी आया कर।मीठा तराना कोई गाया कर।क्या मुझे खुश होने का अधिकार नही।जब भी तू आने को होती उससे पहले नैनो में आसुओ की बरसात होती।तुझे महसूस भी नही कर पाती।तू छू कर मुझे दूर चली जाती।
हसी ने मेरी तरफ आखों में आखें डालकर देखा और अचानक से रूप बदलकर ठहाके में बदल गयी और वो मुझसे बोली पगली मैं आती नही हूँ।मुझे तो खुद इन्सान बुलाता है,खोजता है,ढूँढ्ता है।चीजो मे,छोटी-छोटी बातों में,सपनों में अपनी खुद की यादों मे।
मैने पूछा वो कैसे।वो बोली जो तूने अपने चारों तरफ जो दुखों के राक्षस पाल रखे है।वो पहले अपनी सोच से दूर भगा।अपनी नकरात्मकता को सकरातमक्ता से दूर कर।फिर वो कर जिसमे सिर्फ तुझे खुशि मिलती हो।तू सबके लिये तो जी चुकी अब तो अपने लिये जी।
ये सोच क्या चाहिये तुझे जिन्दगी मे।
देखना अपने होठों पे तू मुझे पायेगी।मेरे अनेक रूपों को अपने होठों पे सजायेगी।ये मेरा वादा है।
मैं उसकी बाते सुनकर बहुत खुश हुई और आज मन ही मन ये फैसला लिया।आज से अपने लिये भी जियुँगी।इस हसी को अपने होठों पे लाके रहूँगी।

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