लघुकथा

”मोबाइल दास” श्री किशन टण्डन ‘क्रान्ति’ वरिष्ठ साहित्यकार,रायपुर छत्तीसगढ

साहित्यकार-परिचय – श्री किशन टण्डन ‘क्रान्ति’

माता-पिता – श्री रामखिलावन टण्डन, श्रीमती मोंगरा देवी जीवन संगिनी-श्रीमती गायत्री देवी

जन्म – 01 जुलाई 1964 मस्तूरी, जिला- बिलासपुर (छ.ग.)

शिक्षा – एम. ए. ( समाजशास्त्र, इतिहास, राजनीति विज्ञान ) उपलब्धियाँ मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग से जिला महिला एवं बाल विकास अधिकारी पद पर चयनित ( 1996 )

प्रकाशन – काव्य-संग्रह-11, कहानी-संग्रह- 6, लघुकथा-संग्रह-5, उपन्यास-2, हास्य व्यंग्य

– संग्रह-2, ग़ज़ल-संग्रह-1, बाल कविता-संग्रह-2 कुल प्रकाशनाधीन कृति- 27

पुरस्कार / सम्मान –  डॉ. अम्बेडकर राष्ट्रीय फैलोशिप साहित्य सम्मान, साहित्य वाचस्पति सम्मान (उत्तरप्रदेश साहित्यपीठ) सहित कुल 14 राष्ट्रीय,राज्यीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय सम्मान एवं अलंकरण।

विशेष – वेश्यावृत्ति के सन्दर्भ में सेक्स वर्करों की दर्द में डूबी जिन्दगी के बारे में आपके द्वारा रचित ‘अदा’ उपन्यास विश्व में सर्वाधिक पढ़े जाने वाले उपन्यासों में से एक है।

सम्प्रति – उपसंचालक, छत्तीसगढ़ शासन, महिला एवं बाल विकास विभाग। संस्थापक एवं अध्यक्ष
छत्तीसगढ़ कलमकार मंच ।

सम्पर्क – ‘मातृछाया’ दयापुरम् मस्तूरी- 495551, जिला- बिलासपुर ( छ.ग. )
मो. 98937 28332/ 87706 75527

 

 

”मोबाइल दास”

मोबाइल प्रेम के कारण अब उसका नाम मोबाइल दास पड़ गया था, क्योंकि वह दिन-रात के 24 घण्टे के कालक्रम में 17-18 घण्टे तक मोबाइल में ही खोया रहता था। मोबाइल दास कहकर पुकारने से उसे गर्वोक्ति होती थी। आज रात बहुत मुश्किल से उनकी आँखें लगी तो उन्होंने स्वप्न में देखा- भगवान प्रगट होकर बोल रहा है कि हे मोबाइल भक्त- मोबाइल दास, कभी-कभी खुद को समय दो तो अच्छा रहेगा।

 

मोबाइल दास ने भगवान जी से पूछा- मैं खुद को किस प्रकार समय दूँ प्रभु?
भगवान जी बोले- यह भी कोई पूछने की चीज है। तुम चाँद को ढूँढ़ो, तारों को गिनों, कहीं चाँद दिख जाए तो खुश हो जाओ। यह सुनकर मोबाइल दास ने कहा- अरे मैंने तो इस बारे में कभी सोचा ही नहीं था। उन्होंने अनुरोध किया कि हे प्रभु, मुझे इन चीजों का जरा एहसास तो कराओ।

 

यह कहते ही मोबाइल दास ने महसूस किया कि वह झील में बड़ी देर से पैर डाले बैठे हैं और चिनार के पत्ते पैरों से खेल रहे हैं। इससे उसे आनन्ददायक गुदगुदी सी लग रही है। आसमान में बिजली के चमकने से साफ दिख रहा है कि उनका पसन्दीदा सुर्ख हरा रंग आँखों को तसल्ली देने के लिए बेताब है। आसमानी परियाँ भी मुस्कुराती हुई दिख रही थीं। अब वह सोचने लगा, खूबसूरती का कोई पैमाना तो नहीं होता, पर अगर होता तो वे खुद ही पैमाने बन जाते।

 

फिर उसने पहाड़ों और झीलों की खूबसूरती को महसूस किया। पंछियों को आसमान में कतारबद्ध उड़ते हुए देखा, जो काफी मनमोहक लग रहे थे। शौर्य गीत गाती हुई हवाओं को सुनने, देखने और महसूस करने का आनन्द ही कुछ और था। थोड़ी दूर में बच्चे कंचे, खो-खो, कुर्सी दौड़ और गुल्ली-डण्डे खेलते नजर आए। तभी कुछ बच्चों को परियों की कहानी सुनते हुए देखा। हल्की बारिश के बीच आकाश में इन्द्रधनुष उभर आया था, जिसे बच्चे, बूढ़े, जवान सभी गौर से देख रहे थे।

 

अब उन्हें लगा कि मैंने मोबाइल के चक्कर में कितना कुछ मिस कर दिया है। मोबाइल दास ही क्यों, सारे लोग यही तो कर रहे हैं। सच है जिसे जब भी वक्त मिले जी लेना चाहिए।
मोबाइल दास फोन को किनारे में साइलेंट रख दिया था। अकस्मात उसे मोबाइल का ध्यान आया तो उसकी नींद खुल गई। वह फिर सोचने लगा- मेरे मोबाइल के सामने ये सारे सपने बेकार है। मोबाइल में भी तो ये सारी चीजें हैं। फिर हम मोबाइल में ही क्यों न खो जाएँ… और अब वो फिर से अपने मोबाइल में रीझ गया।

 

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