आलेख

ऐसे भी उत्कृष्ट रचनाओं का क्या? श्री मनोज जायसवाल संपादक सशक्त हस्ताक्षर कांकेर छत्तीसगढ़

कितने ही उत्कृष्ट गजल हो या अन्य आलेख। यदि आम पाठकों की समझ से बाहर हो तो आपकी कलम की अहमियत क्या है,यह विचार करने वाली बात है। अंतिम सिरे के व्यक्ति की तो बात ही छोड़ो। कितनी सरल,धाराप्रवाह लाईनें आप लिखते हैं।

जिन मुद्दों पर लिखते हैं वह किसी सामाजिक असमानता को ठोकर मार रही है कि नहीं। किसी को तंज लग रहा है कि नहीं।

 

यदि इन बातों को दरकिनार आपका कोई आलेख रचना जिसे शब्दों से सजासंवार कर कितनी ही अच्छी प्रस्तुती दी जाय उसके कोई मायने नहीं है। कई लोग अपनी अपनी विधा वालों को आजकल के वाट्सएप ग्रुप में एड किए होते हैं। यथा कोई साहित्य पत्रकार वाला ग्रुप है तो उसमें इससे जुड़े व्यक्तियों को एड किया जाता है।

 

खुद को पता है कि इसमें आपके ही बिरादरी के लोग जुड़े हैं, हां में हां मिलाया जाएगा फिर जो लेखन सामग्री डाली जाएगी वो तो आपके अपनों तक सीमित हो गया। फायदा तो तब है जब उसमें अन्य लोग भी जुड़े हों। अपनी विधा अपनों के लिए ही परोसने का क्या? कोई आयोजन में जब तक आम लोगों की जन उपस्थिति न हो तब इस आयोजन का क्या? आपके जैसे ज्ञानी के आयोजन में कौन ज्ञान ग्रहण करेगा।

 

अतएव अपनी विधा पर गर्व न कर आम लोगों को महत्व दें जो जनबल से भी आपको सम्मान देते मान बढ़ाते हैं। वरन ज्ञानियों की टोलियों में तो सकारात्मक नहीं आपकी लाईनों में नकारात्मक भाव के पीछे पड़े होते हैं। महत्व उन लाईनों का ज्यादा है,जो आम लोगों तक की समझ में आ जाए। उत्कृष्टता के नाम आम लोगों की समझ में न आने वाली लाईनों का प्रयोग खुद में जरूर गदगद हों पर बाहरी दुनियां में बड़ा औचित्य नहीं है।

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