‘सावंत बइगा’ मां अंगारमोती के प्रथम पुजारी देवसिंह नेताम वर्तमान पुजारी
(मनोज जायसवाल)
देश के कच्ची बांधों में शुमार सुप्रसिद्व व छत्तीसगढ का प्रमुख पं.रविशंकर जलाशय परियोजना(गंगरेल) बांध तट पर विराजी मां अंगारमोती देवी को तट में स्थापित किये जाने के पीछे अतीत में उतनी ही बातें है, जितनी कि पूर्व में रहे भक्तों की पीढिंयां चली आ रही है।
देउर गांव जो कि इसी गंगरेल बांध का दुरस्थ क्षेत्र है, जहां देवी माताजी का प्रथम स्थान कहा जाता है। गंगरेल बांध अंतर्गत डूब में आने के बाद कुछ परिवार इसी पहाडी पर तब से बस गए जो आज लगातार जगह की कमी के चलते पुनः बस रहे हैं। बता दें कि इसी स्थान पर आज भी लोग जो जानते हैं आस्था की ज्योत जलाते हैं।
छत्तीसगढ शासन द्वारा पर्यटन विकास के नाम पर इस बांध में मोटरबोट चालू भी चालू कया गया है। माता के भक्तों की बात करें तो प्रथम भक्त गांव के सावंत बइगा थे। इससे पूर्व की बात वे भी नहीं बता पाएंगे। जानते तक बता दें कि अर्जुन सिंह ठाकुर जिनका निधन 7 अक्टूबर 1978 को हुआ। ये तकरीबन सातवीं पीढी के पुजारी थे।
अंगारमोती प्रथम पुजारी का पता नहीं
अर्जुन सिंह ठाकुर स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। और इसके पुत्र भी लगातार माता की आराधना करते आज भी माता के पुजारी है। वर्तमान में देवसिंह नेताम वर्तमान पुजारी है। हमारी खोज में अतीत में उस गांव के माता के प्रथम पुजारी के संबंध में कोई भी फोटो या प्रामाणिक दस्तावेज उपलब्ध नहीं हो सका। और न ही उपलब्ध हो सकता।
स्व.अर्जुन सिंह ठाकुर के पुर्व पुजारीयों की कोई फोटो नहीं मिल रही है, ना ही मिलेगी क्योंकि तब फोटो का जमाना ही नहीं था। यह दुर्लभ फोटो भी हमने खाका छानते सशक्त हस्ताक्षर आपको पेश कर रहा है। यहां से सटा जिला मुख्यालय मां विध्यवासिनी की नगरीं धमतरी की बिलाई माता जी को मां अंगारमोती की बहन के नाम पर बताया जाता है, लेकिन तमाम भक्तों से भी बात करने पर बताया कि ऐसा नहीं है। बिना तथ्य के ऐसा कहा जाना भी उचित नहीं है।
अप्रतिम है,गंगरेल बांध
महानदी पर बनाया गया गंगरेल बांध पूरे छत्तीसगढ़ की जीवनरेखा है। हवाई सर्वे में ऐसे जगह का चयन किया गया है,जिसे देख ऐसा लगता है कि प्रकृति ने किस प्रकार से ऐसी जगह प्रदान की है जहां चहूंओर पहाड़ियां और इनके बीचों बीच गुजरती महानदी और यह गंगरेल बांध। चाहे कोई भी मौसम हो प्रतिदिन आने वाले सैलानी बांध का दीदार करते आदिशक्ति मां अंगारमोती का दर्शन कर अपनी मनोकामना के साथ वापस जाते हैं।
अपनी मनोकामना पूर्ण होने के बाद मां का स्नेह पुनः खींच लाती है और लोग चाहे देश के किसी भी कोने के हों यहां आते रहना चाहते हैं। अपार शांति स्थल के रूप में पहचान बनायी अंगारमोती धाम की महत्ता दिनों दिन फैलती जा रही है। कई बार शासन प्रशासन को यहां की भीड़ सम्हालने के लिए मशक्कत करते देखा जा सकता है।