(मनोज जायसवाल)
व्यक्ति से परिवार और परिवारों को मिलाकर बनाये गये समूह का नाम समाज है। वही समाज जिसमें जीवन के कई संस्कार एवं उत्सव के साथ साथ जीवन जीने के लिए सहयोग की आकांक्षाएं साझा किये जाने वाले संस्कार का पालन करते निभायी जाती है। अर्थ तो विराट भी और संक्षेप भी। लेकिन बौद्धिक रूप से समझी जाना अनिवार्यतः जरूरी है।
क्या हो गया है कि महज दस लोग कहीं बैठ जाए या समूह बना लिये जाए वहां अपने को सबसे संपूर्ण मानकर अपने अहं की तुष्टि निभायी जाने लगी है? जहां यहां उपस्थित लोग जो चाहें जैसा मन में आ रहा है वो नियम बना कर अन्य लोगों से उसे पालन करने की आशा करने लगते हैं। सिर्फ आशा ही नहीं करते अपितु लोगों के बीच अहंकार के मद में चूर होकर अपने बनाए नियमों को पूरा कराने की खातिर दण्ड का सहारा लेते हैं, तो कहीं धौस मारते दिखायी देते हैं। खुद इन्हें नहीं मालूम कि देश के संविधान में हर नागरिक को मौलिक अधिकार भी दिया गया है,जिसको हनन करने की हिमाकत करना आपको समय आने पर महंगा पड़ सकता है।
यही कारण है कि जब केस न्यायालयों में जाते हैं, तो ये समाज के नाम घमंड जताने वाले जेल तक जाते देखे गये हैं। इसके बावजूद इन लोगों का समाज के नाम बड़ी-बड़ी बातें करने की आदत नहीं जाती। अपने गलत व्यवहार की सजा इन्हें किसी न किसी मोड़ पर मिलना ही है।
पद की घमंड में चूर ये लोग इतने मद में होते हैं कि समाज में व्यावहारिक विषयों को जिन पर भारतीय संविधान ने मौलिक अधिकार दिया है,पर प्रतिबंध लगाये जाने और इनकी बातों का अवहेलना करने वालों को समाज से बहिष्कृत किये जाने की धौंस दिये जाने की आदत नहीं जाती। जब ये कानून की धाराओं में फंसते हैं तो खुद इन्हें माफी मांगनी पड़ती है। जरूर याद करें जेल जाने वालों को याद कर। यदि जेल जाकर भी भूल गए हों तो याद कर लीजिए।
मानव जन्म पर होने वाले संस्कार से लेकर महती विवाह संस्कार और तो और अंतिम संस्कार को भी नियमों की परिधि में लाने की खातिर ऐसे ऐसे नियम बनाते हैं,जो कि इन व्यावहारिक वो क्रियाकर्म जो परिवार निभाता है,उस पर अंकुश लगाना इनका घृणित मकसद होता है। दाह संस्कार में कफन नहीं चढ़ाना, पैसा चढ़ाना..ना जाने क्या क्या इनके मस्तिष्क की ऊपज जैसे हो वैसे नियम बनाने से नहीं चूकते। लेकिन महज कुछ दिनों तक भी ये नियम स्थिर नहीं रह पाते।
आज के आधुनिक युग में सगाई अवसरों पर लड़की लड़के एक दूसरे को हार नहीं पहनाने से लेकर टेंट माईक नहीं लगाने सहित ना जाने क्या-क्या फरमान सुनाई देती है। व्यावहारिक बातों को नियम बनाने वालों के इस मस्तिष्क की उपज का अमूमन विरोध ही होता है। हर परिवार जागरूक है,उसमें अपने हित के लिए,फिजुलखर्ची आदि विषयों पर आगे पीछे सोचने का ज्ञान है। वह देख रहा है,आपके दमनात्मक नियमों को जहां अपने नाम किये जाने की गलत सोच और पालन कराये जाने की खातिर कितने नीचे जाकर अपने दम पर स्वतंत्र जीवनयापन करने वाले परिवार पर नियमों के बंधन में बांधने का विचार बखुबी समझते हैं। लोग आपको याद करा रहे हैं कि जरा याद करो अपने विवाह की कि आपने सगाई पर हार पहना और पहनाया था कि नहीं। आपने अपने घरों के सदस्य की मृत्यु पर अंतिम संस्कार में कफन चढ़ाए थे या नहीं। महज कुछ रूपयों के कफन पर चिंता जता कर लोगों के पैसे बचाने का इतना ही चिंता है तो समाज की ओर से आर्थिक सहयोग भी कभी दुःखी पीड़ित,असहाय परिवारों के लिए कर देते।
व्यावहारिक निजी अधिकारों पर हनन होने पर जब लोगों के बीच से सवाल उठते हैं,तो आपका जवाब होता है कि यह लोगों के ताली बजाने से नियम बना दिए गए हैं। हॉं अपनी गंदी सोच छिपाने का इससे और क्या तरीका हो सकता है। चलो हम कुछ भी विषय पर ताली बजवा दें। ताली बजाये जाने से आप समाज के नियम बना देंगे?
सामाजिक विच्छेद किये जाने का शब्द क्या इतना सरल हो गया कि इन शब्दों के अतिरिक्त अन्य कोई बड़ी औकात नजर नहीं आती! बात-बात पर जब स्वयं का दिमाग काम ना करने लगे तो समाज से विच्छेदित करने पर बात ले आओ और दण्ड बता दिया जाय। व्यक्ति दण्ड दे तो समाज में रहे अन्यथा समाज से बाहर रहे। समाज का अंतिम व्यक्ति आज बहुधा पीड़ित और प्रताड़ित एवं दुःखी है तो समाज से बहिष्कृत किये जाने वाले शब्दों से। कोई भी समाज का व्यक्ति जब कोई बड़ा अपराध करता है तो निश्चित ही आप अपने समुदाय से किनारा कर सकते हैं,लेकिन यह क्या छोटी-छोटी बातों पर समाज से बहिष्किृत किये जाने का धौंस!
समाज से बहिष्कृत किये जाने का धौंस ही लोगों को विद्रोह की ओर ले जाता है। तमाम लड़ाई-झगड़े सब अन्याय किये जाने का परिणाम ही है। किसी को शौक नहीं है,लड़ाई करने का।
समाज में कोई पद धारित किये जाने पर अपने अंदर घमंड का जन्म होने से पहले ही हमेशा यह याद रख लेना चाहिए कि अपने को जितना प्रभावशाली मानने की भूल कर रहे हैं,यह ना समझें कि समाज का कोई सदस्य प्रभावशाली नहीं है! समाज में आपके मुंह की आवाज नहीं आपकी बौद्विकता ऐसी होनी चाहिए कि इसके लोग कायल हो सके। आवाजें निकालने से लोग चुप नहीं होंगे बल्कि आपके ज्यादा आवाज करने से खुद की मानसिकता और सोच का परिचय खुद दे रहे हैं।