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छत्तीसगढ में सामाजिक प्रतिषेध अधिनियम ? मनोज जायसवाल संपादक सशक्त हस्ताक्षर कांकेर(छ.ग.)

(मनोज जायसवाल)

जातिवादी भेदभाव,ऊॅंच-नीच का व्यवहार समाज में बड़ी समस्या रही है। साक्षरता,जागरूकता तो बड़ी बावजूद इसके इस प्रकार के व्यवहार की खबरें देश के कई कोनों से आती रही है।
किसी व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह का सामाजिक बहिष्कार हमारे संविधान के भाग 3 में निहीत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन माना गया है।

अमानवीय प्रथा या व्यक्तिगत  दृवेश  को भी भुनाया जाता रहा है। महान सामाजिक क्रांतिकारियों की धरा महाराष्ट्र में सामाजिक बहिष्कार को अपराध मानते हुए कानून के दायरे में लाया गया है।

सामाजिक बहिष्कार के लिए रोकथाम,निषेध और निवारण के लिए अधिनियम 2016 पारित किया गया था। 3 जुलाई 2017 को गवर्नमेंट आफ महाराष्ट्र गजट राष्ट्रपति की सहमति के बाद पहली बार प्रकाशित हुआ था। समाज में सामाजिक बहिष्कार के निषेध का उपबंध करने वाला देश का पहला राज्य बना।

इस कानून में यदि कोई भी व्यक्ति समूह सामाजिक बहिष्कार मामले में दोषी पाया जाता है तो उसे तीन साल की सजा और एक लाख जुर्माना देना होगा। जिसके कुछ हिस्से की राशि को पीड़ित को दिया जाना है। शिकायत दर्ज हो जाने के छःह महीने के अंदर सुनवाई भी निश्चित की गयी है ताकि दोषियों को सजा मिल सके। 13 जुलाई 2017 ऐतिहासिक दिन था जहां राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने सामाजिक बहिष्कार अधिनियम 2016 को अपनी स्वीकृति दी।

छत्तीसगढ़ में स्थिति
छत्तीसगढ़ में सामाजिक बहिष्कार प्रतिषेध अधिनियम का बहिष्कार किये जाने की खबर भी मिली। जहां इस तारतम्य  कई समाज के लोग जो रायपुर गये थे‚ ने रायपुर में प्रदर्शन कर इसे मौलिक अधिकारों का हनन करने वाला बताया। सामाजिक व्यवस्था ध्वस्त होने पर भी चिंता जतायी। 

मांगे जाने पर समर्थन दिया–

(भागवत वैष्णव‚प्रदेश महासचिव–पिछडा वर्ग कल्याण संघ रायपुर‚ छत्तीसगढ)

सशक्त हस्ताक्षर से बात करते बताया कि–  उस विषय पर हमारा विचार था की कोई भी सामाजिक व्यवस्था पर कानून बनाया जाए वो सामाजिक प्रमुखों और सामाजिक संगठनों के बीच रखकर और उनसे सलाह लेकर बनाया जाए, क्योंकि हर समाज की जीविका और रहन सहन में भिन्नता रहती है। सर्व समाज के लोगों ने हमारे संगठन  पिछडा वर्ग कल्याण संघ को निवेदन करने पर हमारे संगठन के लोग भी समर्थन के रूप में मौजूद रहे।

जब तत्संबंध में पिछड़ा वर्ग कल्याण संघ के एक पदाधिकारी से बात की तो उन्होंने  बताया कि कुल  मिलाकर सामाजिक प्रमुखों का ऐसा विचार साफ था सभी वर्ग समुदाय के प्रमुखों को विश्वास में लेकर ही इसे लागू किया जाय। ज्ञापन में भी ठीक ऐसी बातें ही लिखी गयी थी। लेकिन आज पर्यंत अभी तक शासन की ओर से कोई पत्र प्राप्त नहीं हुआ है। जिसके चलते स्वयं ही जानकारी नहीं है कि सामाजिक बहिष्कार प्रतिषेध अधिनियम लागू है कि नहीं।लेकिन मामला यदि आता है तो कभी-कभी तो आईपीसी की धारा 153 ए के तहत कार्यवाही की जाती है,तो कई दफा मानहानि दायर कर कोर्ट जाने की सलाह भी दिया जाता है।

सामाजिक संस्था खत्म होने कगार पर था‚  अधिनियम –

(महेश जैन‚ संभागीय अध्यक्ष डंडसेना कलार समाज बस्तर)

तत्संबंध में डंडसेना कलार समाज के तब भी सन् 2018 में तात्कालीन अध्यक्ष रहे महेश जैन से सशक्त हस्ताक्षर ने बात की। जहां उन्होंने बताया कि वर्ष 2018 में चुनाव पूर्व राजधानी जाकर सरकार से इस प्रस्तावित कानून को समाज हित में लागू नहीं किए जाने का मांग किया था। चुनावी साल में अधिनियम पटल पर नहीं रखा जा सका लेकिन 2018 के बाद जब सरकार बदल गयी तो यह अधिनियम पटल पर नहीं रखी जा सकी। कुल मिला कर यह अधिनियम लागू नहीं है।

महेश जैन का कहना है कि- छत्तीसगढ़ मे सामाजिक बहिष्कार अधिनियम में उल्लेखित प्रावधानों की जानकारी पहले पहल कई समाज प्रमुखों को जानकारी नहीं था। लेकिन जो जानकारी मिला भी उसके तहत् जो बिंदु स्पष्ट हो रहा था उसे लेकर चलें तो यहां सामाजिक संस्थाओं का औचित्य ही खत्म होने जा रहा था। यही कारण है कि इसका विरोध किया गया।

 

फोटो-फाईल फोटो

 

 

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