”छत्तीसगढ़ में अक्षय तृतीया की विशेष मान्यता” श्री मणिशंकर दिवाकर अधिवक्ता एवं साहित्यकार दुर्ग(छ.ग.)
(मणिशंकर दिवाकर )
ऐसे तो पूरा भारत देश में बहुत सारे राज्य प्रदेश है जहाँ विविध अन्य रूप से विशेष मान्यता दी जाती वहीं अपने अपने देश राज्य व प्रदेश संस्कृति के आधार पर अनेक प्रकार के त्यौहारों को मान्यता दी जाती है, और उनके प्रचलित परम्परागत नियमों के अनुसार चलते व चलाते आ रहे हैं ठीक उसी प्रकार हमारे छत्तीसगढ़ राज्य में भी एक अलग नीति नियम अनुसार अक्षय तृतीया यानी अक्ती का दिन कहते और मानते हैं।
अक्षय तृतीया का दिन बहुत ही शुभ माना जाता है। इस दिन जो काम शुरू किया जाता है वह फल देने वाला माना जाता है। हमारे प्रदेश में मुख्यमंत्री ने धरती और प्रकृति की रक्षा के संकल्प के साथ छत्तीसगढ़ में माटी पूजन महाभियान की शुरुआत की है‚ जो छत्तीसगढ के लिए बहुत ही सराहनीय एवं प्रशंसनीय है। छत्तीसगढ में पारंपरिक त्यौहारों को लेकर जिस प्रकार से प्रदेश सरकार द्धारा महती प्रयास किए गए हैं‚उसकी सर्वत्र प्रशंसा हो रही है। अब तो छत्तीसगढ शासन ने इन पारंपरिक त्यौहारों को मनाये जाने के लिए राशि दिये जाने का भी प्रावधान किया गया है।
दिन मिट्टी का कार्य जोताई व मिट्टीखाद को जमीन में डाला जाता और क ई जगह तो सोना चांदी लेना बहुत ही शुभ माना जाता है एक और वही हमारे छोटे छोटे बच्चियों के द्वारा मिट्टी व लकडी के पुतले पुतलियों का विवाह रस्म कर बड़ा उमंग उत्साह मनाया जाता है।
अक्षय तृतीया या आखा तीज वैशाख मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को कहते हैं। हिंदू धर्म पौराणिक ग्रन्थों के अनुसार इस दिन जो भी शुभ कार्य किये जाते हैं, उनका अक्षय फल मिलता है। यानि क्षय नही होता। इसी कारण इसे अक्षय तृतीया कहा जाता है, वैसे तो सभी बारह महीनों की शुक्ल पक्ष तृतीया शुभ होती है, किन्तु वैशाख माह की तिथि स्वयं सिद्ध मुहूर्ताे में भी अति उत्तम व अक्षय तृतीया का सर्वसिद्ध मुहूर्त के रूप में भी विशेष महत्त्व है।
मान्यता है कि इस दिन बिना कोई पंचांग तिथी बार नक्षत्रों को बगैर देखे कोई भी शुभ व मांगलिक कार्य जैसे विवाह, गृह-प्रवेश, वस्त्र-आभूषणों की खरीददारी या घर, जमीन, वाहन आदि की खरीददारी से सम्बन्धित कार्य किए जा सकते हैं विशेष मान्यता दी जाती है।