”मुर्ख बनाने के एवज में रिश्ते गंवाते लोग” श्री मनोज जायसवाल संपादक सशक्त हस्ताक्षर कांकेर(छ.ग.)

श्री मनोज जायसवाल
पिता-श्री अभय राम जायसवाल
माता-स्व.श्रीमती वीणा जायसवाल
जीवन संगिनी– श्रीमती धनेश्वरी जायसवाल
सन्तति- पुत्र 1. डीकेश जायसवाल 2. फलक जायसवाल
(साहित्य कला संगीत जगत को समर्पित)

‘‘मुर्ख बनाने के एवज में रिश्ते गंवाते लोग”
वैसे तो निश्चित रूप से 1 अप्रेल को हंसी ठिठोली का पर्व अप्रेल फूल मनाया जाता था। लेकिन अब तो ऐसा है कि कुछ लोग हमेशा एक दूसरे को अप्रेल फूल मना रहे होते हैं। सोचते हैं कि हम ही समझदार हैं और मुर्ख है। अपने को ज्ञानी और दूसरे को मुर्ख समझने की सोच के चलते कईयों लोग आज अपने स्नेहिल संबंधों से इतने दूर जा चुके हैं कि उनका वह मधुर संबंध नहीं जुड सकता, जैसे टूटने पर कांच।
कई तो अल्प शिक्षित होते हुए भी अपने उच्च शिक्षित मित्र को ऐसा अप्रेल फूल मनाने पर तुले होते हैं कि खुद को ज्ञानी साबित कर रहे होते हैं,उन्हें यह पता नहीं होता कि मुझसे ज्यादा समझदार तो मेरा मित्र है। जो मैं ये ब्लेकमेल सा व्यवहार और उनसे फायदा निकालना चाहता हूं, समाज में मेरी कैसे छवि प्रसारित होगी!
कई दफा तो इसी के चलते तल्ख लालच में आपकी स्वच्छ छवि की गंदी छाप चली जाती है,जहां तल्ख शब्द संबंधों को तोड़ देती है। क्योंकि जिन्हें आज की दिनचर्या में ब्लेकमेलिंग व्यवहारों से नासमझ कर समझने की भूल कर रहे हैं वह अंदर से सब कुछ समझ रहा होता है और इस एक शब्द से आपके कई रिश्तों पर दुष्प्रभाव पड़ता है। खुद के मित्र को अपने फायदे की खातिर मुर्ख बनाना ही नीचता को साबित करता है।
इस प्रकार के लोगों के लिए ही आस्तीन के सांप की संज्ञा दी गई है। खैर! बात करते हैं अप्रेल फुल की। 1 अप्रेल को दुनिया भर में हंसी ठिठोली करते हुए एक दूसरे को अनजाने में मुर्ख बनाते हुए मनाया जाता है। इस लिए इसे मुर्ख दिवस भी कहा जाता है। अमुमन रूप से कई दफा यह होता है कि लोगों को तारीख याद नहीं रहता इसी के चलते कोई बात मित्र द्वारा कही जाती है जिसे सच मान लिया जाता है और यही है अप्रेल फुल बनना। लेकिन मजाक का भी दायरा होना चाहिए। कई दफा अकस्मात घटना दुर्घटनाओं से मुर्ख बनाते मजाक बनाया जाता है जो उचित नहीं है।
क्या है? कहानी
एक लोककथा मुताबिक- एक अप्सरा ने किसान से दोस्ती की और कहा- यदि तुम एक मटकी भर पानी एक ही सांस में पी जाओगे तो मैं तुम्हें वरदान दूंगी। मेहनतकश किसान ने तुरंत पानी से भरा मटका उठाया और पी गया। जब उसने वरदान वाली बात दोहराई तो अप्सरा बोली- ‘तुम बहुत भोल-भाले हो, आज से तुम्हें मैं यह वरदान देती हूं कि तुम अपनी चुटीली बातों द्वारा लोगों के बीच खूब हंसी-मजाक करोगे।
अप्सरा का वरदान पाकर किसान ने लोगों को बहुत हंसाया, हंसने-हंसाने के कारण ही एक हंसी का पर्व जन्मा, जिसे हम मूर्ख दिवस के नाम से पुकारते हैं। यह भी बताते चलें कि मुर्ख दिवस का काफी विरोध भी युरोपीय देशों में हुआ। बावजूद इसके धीमे गति से ही सही मुर्ख दिवस मनता आ रहा है।बालीवुड में मोहम्मद रफी साहब के गाये गीत जो गीतकार हसरत जयपुरी साहब ने लिखा था। अप्रेल फुल बनाया तो उनको गुस्सा आया…. आज भी प्रसिद्व है। शंकर जयकिशन के संगीत में सायरा बानो, विश्वजीत अदाकारा थे।