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”लोकरंग अर्जुंदा टूट कर जुडने का श्रेष्ठ उदाहरण” श्री मनोज जायसवाल संपादक सशक्त हस्ताक्षर कांकेर(छ.ग.)

छत्तीसगढ़ के सुप्रसिद्ध रंगकर्मी बालोद के अर्जुंदा निवासी इसी लोकरंग अर्जुंदा के संस्थापक दीपक चंद्राकर ने आज एक निजी अस्पताल में इस जीवन को अलविदा कह दिया।

उन्होंने छ.ग. की लोककला को पूरे देश में सम्मान दिलाया।

दाऊ रामचंद्र देशमुख के चंदैनी गोंदा की समृद्व संस्कृति को लोकरंग अर्जुंदा के माध्यम संरक्षित एवं संवर्धित किया।

नीचे उक्त आलेख मैंने महज दो दिन पूर्व ही लिखी थी, छ.ग. संस्कृति कला संगीत जगत का एक सितारा आज अस्त हो गया। विनम्र श्रद्धांजलि….

(मनोज जायसवाल)
-छत्तीसगढ की कई नाचा टीम बंद हो चुकी,संवर्धन जरूरी।
छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक विरासत को बचाने की आवश्यकता है। ऐसे एक नहीं अपितु कई सांस्कृतिक मंच हैं जो संघर्ष के दौर में टूट चुके है और बिखर कर पुनः जुड़ाव भी हुआ है। टूट कर सशक्त होने में लोकरंग अर्जुंदा श्रेष्ठ उदाहरण है। लोकरंग अर्जुंदा का नाम छत्तीसगढ़ सांस्कृतिक टीम में किसी पहचान का मोहताज नहीं है। आज भी इस टीम के गाायक,गायिकाओं अभिनय करने वाले कलाकारों की खुब प्रशंसा होती है। दर्शकों का स्नेह है,जो इनसे आज भी उतना ही लगाव रखती है,जितना अतीत में।

सुदूर कई गावों में कई मंच बंद भी हो चुके हैं। बिखराव के बाद नाम के तौर पर कुछ मंचों में दर्शकों की भींड़ तो लगती है लेकिन छंटते भी देर नहीं लगती। ऐसे कई मंच हैं, जिन्हें एक बार देखने के बाद या तो आयोजन समितियां ही उन्हें लाना नहीं चाहती अपितु अपने आयोजन में अवसर दे भी दे तो दूसरी बार वह भींड़ को जमाये रखने में सफल नहीं हो पाती।

छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक विरासत मंचों को बनाये रखने एवं संवर्धन के लिए शासन द्वारा ध्यान दिया जाना जरूरी है। पहले की अपेक्षा कम हो चुके नाचा जो अब बिरले ही हो गये हैं का संवर्धन भी जरूरी है। यह वही नाचा है जो छ.ग. के हर गांव में मेले मंड़ई या अन्य अवसरों पर मुख्य मनोरंजन का साधन हुआ करता था।

नाचा के माध्यम रात भर दूसरे दिन सुर्य उगने तक लोग मंचों से उठते नहीं थे। आज भले ही सांस्कृतिक आयोजनों का दौर है जहां लिमिटेड समय तक प्रस्तुतियां दी जाती है। नाचा के दौर में साकरा वाले डाकु मंगल सिंह से लेकर कईयों पार्टियां गांव गांव के मंचों में शिरकत करती थी ऐसे नाचा कार्यक्रम जो आज लुप्तप्राय हो गये हैं। करहीभदर सांकरा के स्व. कार्तिक राम सिन्हा जो अब नहीं रहे पर आज भी क्षेत्र के मंचों पर लोग उन्हें याद करते हैं।

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