कविता काव्य

”अरूणोदय” श्री राजेश शुक्ला”काँकेरी शिक्षक साहित्यकार कांकेर छ.ग.

साहित्यकार परिचय-

श्री राजेश शुक्ला ”कांकेरी”

जन्म- 10 दिसंबर 1964

माता-पिता- स्व.कान्ति देवी शुक्ला/स्व.हरप्रसाद शुक्ला

शिक्षा- एम.कॉम, बी.एड.

प्रकाशन- कहानी (किरन),साझा संग्रह (काव्य धरोहर)

सम्मान-

सम्प्रति- व्याख्याता-शास.उच्च.माध्य.विद्या.कोरर, (काँकेर) छ.ग.।
संपर्क- 9826406234

 

”अरूणोदय”
घना अँधेरा रात का जब,
मन में भय भरता है।
हाथ को जब हाथ न सूझे,
मन केवल डरता है।
अँधियारे की कालिमा में,
मौन भी डरा – डरा सा।

आस जरा सी उजियारे की,
मन ढूँढा करता है।
ऐसे में अरुणोदय आता,
संग उजियारा लेकर।
अरुणोदय ही अँधियारे का,
दंभ हरा करता है।

अरुणोदय का अर्थ है होता,
नयी भोर की आशा।
नवऊर्जा है मन में भरता,
करता दूर निराशा।
अरूणोदय ही धरा का हर,
कोना प्रकाशित करता।

अँधकार का बर्तन भी,
लगता है भोर भरा सा।
अरुणोदय के समक्ष तो,
हर तिमिर मरा करता है।
अरुणोदय ही अँधियारे का,
दंभ हरण करता है।

अँधियारे और उजियारे का,
खेल ही तो जीवन है।
दुख-सुख भी तो रात व दिन के,
निश्चित ही दरपन हैं।
दुख का जब अँधियारा आता,
मन रोया करता है।

सुख के अरुणोदय में खिलता,
मन का हर उपवन है।
सुख के अरूणोदय के आगे,
दुख कहाँ ठहरता है।
अरूणोदय ही अँधियारे का,
दंभ हरण करता है।

अरूणोदय के जैसे ही,
हम बन सकें तो बन जाएँ।
धरती से हर तरह का हम,
अँधियारा दूर भगाएँ।
उजियारे की ऊर्जा से,
कोना-कोना भर दें हम।

जन-जन का मन हो उजला,
कुछ ऐसा हम कर जाएँ।
अरुणोदय संग पुंज प्रकाश का,
धरा पे उतरता है।
अरुणोदय ही अँधियारे का,
दंभ हरण करता है।

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