”स्त्री को ध्वेय रख,परोसी जाती रही अश्लीलता” श्री मनोज जायसवाल संपादक सशक्त हस्ताक्षर कांकेर(छ.ग.)
(मनोज जायसवाल )
कालांतर में जिस प्रकार हमारी भारतीय सिने कला जगत में चलचित्रों का स्वर्णिम इतिहास रहा, आधुनिक काल के रास्ते में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर कई चलचित्रों में अश्लीलता परोसी गई जो वर्तमान तक आम से भी आम और बदतर होती चली गई है। व्यावसायिकता की तराजू में स्त्री देह को तौला गया जिसकी खातिर धार्मिक आयोजन भी आदतन चकाचौंध के चलते सनद नहीं रहा कि हमें उक्त आयोजन में जाना है। यही कारण है कि नवरात्रि पर्व पर होने वाली गरबा जैसे कार्यक्रमों में कई बार कुछ स्त्रियों के बदन दिखाउ वस्त्र असहजता के चलते महज आकर्षित करने उकसावे को प्रतीत किये जाने के चलते घटनाएं भी हुई। खुद कई में दिखावे की भावना बनी रही तो दोष किसे दिया जा सकता है।
जिस तरह हालीवुड फिल्मों में फिल्माया गया उसी तरह यहां पेश किये जाने का सिलसिला चल पड़ा। इस अश्लीलता में स्त्री शरीर को ध्वेय रखा गया चाहे वह जिस नजरीये से हो। कई दफा इस प्रकार की कथानक एवं अंग प्रदर्शन पर देश में आंदोलन प्रदर्शन तनाव की स्थिति भी निर्मित हुई।
अंग प्रदर्शन के मामलों पर एक एक मजबूर पिता की बानगी देखिये कि उन्हें स्पष्टया कहना पडा कि बेटी ऐसे कृत्य में तुम मेरी बेटी नहीं। पिता का दर्द इससे और कितनां किया जा सकता है।
फिल्मांकन पर एक ही बात सामने आई कि दर्शक ऐसा ही पसंद करते हैं। लेकिन यह नहीं बताया गया कि किस आधार पर कहा गया या कि आप प्रमाणित कर रहे हैं कि दर्शक ऐसा ही पसंद करते हैं?
वो सारी बातें है जो देश की युवा पीढ़ी को ग्लैमर जगत में चकाचौंध भरी प्रदर्शन जैसी चलचित्रें गलत रास्तों पर ले जाती है। सिने कला जगत से जुड़ी कई स्त्रियों के परिधान आज तथाकथित मॉड प्रदर्शन ना हो तो फीके से महसूस की जाने लगी और यह विचार धारावाहिकों से लेकर अब आम सामाजिक मंचों तक आ गई।
कई बेहूदे काल्पनिक कहानियों में परिवार के रिश्तों नातों के बीच संबंध,गाली,गलौच,आधुनिक जीवनचर्या की भौंडी तस्वीर परोसते रहे। जहां रिश्तों को तार-तार करने में कसर नहीं छोड़ी गई।
यह प्रदर्शन हमारी भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता के पहलूओं को स्पष्ट करती है, उन रूहों को महसूस करती दिखाई नहीं देती जो कहानी प्यार के नाम पर परोसी जाती है। चलचित्र के साथ कई द्विअर्थी गीत बने जिन गीतों का भी विरोध देश में हुआ लेकिन सियासी ताकत कहें या कुछ और कि उनकी ही जीत हुई और ये गीत हमारी संस्कृति में गुंजती रही।
सिने कला जगत बालीवुड का असर प्रादेशिक फिल्मों पर भी पड़ा। भोजपुरी फिल्में उदाहरण है,कई ऐसी फिल्में एवं गीत जो आप परिवार के साथ कतई नहीं देख सकते। एलबमों में नग्नता परोसी गई है। देश का विकासशील संस्कृति संस्कारों का प्रदेश छत्तीसगढ़ में भी जिस तरह परिवारनुकूल देखने लायक फिल्में बनायी गई जो बालीवुड की परिवार प्रधान फिल्मों को भी मात देती नजर आई।
लेकिन प्रतिस्पर्धा में छत्तीसगढ़ के बाहर से लाए गए कलाकार और फिल्म और एलबमों में अश्लीलता परोसने का प्रयास किया गया पर वे सफल नहीं हो सके। छत्तीसगढ़ में ही उन सफल फिल्मों के मध्यांतर में कितने फिल्म डब्बा बंद हुए यह बताने की जरूरत नहीं है। पर आज जो विचार चल रहा है वह इस बात को लेकर जरूर है,कि छत्तीसगढ़ी फिल्म तो साथ सुथरी ही होना चाहिए।
इस बात को निर्माता भी साम्य रख काम कर रहे हैं। छत्तीसगढ़ में भी उत्तरप्रदेश बिहार की भोजपुरी फिल्मों का शुटिंग किया गया,कोई बात नहीं पर छत्तीसगढ़ की फिल्मों में वो भोजपुरी फिल्में जिसमें इस प्रकार का प्रदर्शन किया गया है, वह यहां सफल नहीं हो सकती।
अभिव्यक्ति की आजादी के नाम जिस प्रकार परिधान को लेकर बात रखी जाती है,सच बोलने वाले को महिला विरोधी करार दिया जाता है। दिखाऊ परिधान,नाज नखरे सबके उन्हें पैसे मिलते हैं,इन्हें जमीनी धरातल में प्रयोग करते भारतीय संस्कृति का माखौल ना उड़ायें। अश्लील,द्विअर्थी जैसे टीवी शो यह सब आप पसंद ना करें तो उन्हें टीआरपी अवगत करा देगा कि दर्शक क्या पसंद करते हैं।
वर्तमान समय में बालीवुड की बातें बताने की जरूरत नहीं है,जहां रोज आप तक खबरिया चौनल हालचाल बता रहे हैं। वर्तमान के सोशल मीडिया के दौर में बातें साहित्य तक पहूंची है। जिस तरह प्रेम काव्य एवं सामान्य काव्य में भी स्त्री की कामुकता प्रदर्शित करते पोस्ट डाला जा रहा है। क्यों?
यही सोच कि लोग आपकी रचना नहीं पढ़ते इन फोटोज से लाइक आते हैं। ऐसा कुछ हद तक हो भी रहा है,जिसे भी हमें विचार करने की जरूरत है। आप रचनाएं पढ़ें फोटो पर ना जाएं। रचना सामान्य है और फोटो उस तरीके की है तो आप रचनाकार का अंदाजा स्वयं लगा सकते हैं।
ऐसी बात नहीं कि इन सारे नकारात्मक पक्ष की छोंड़ सकारात्मक पक्ष नहीं है। कई ज्ञानवर्धक ऐतिहासिक फिल्मों का भी निर्माण हुआ है। वर्तमान में जिस काव्य की बात कर रहे हैं,सकारात्मक रूप से प्रेरणादायी काव्य लिखे जा रहे हैं। विचार अपना है कि आप सकारात्मक पक्ष की ओर हैं कि नकारात्मक।
वर्तमान में छत्तीसगढ में नवरात्रि पर्व की धूम है,जहां यहां मॉ की आराधना जसगीतों से की जाती है। पर महानगरों की गरबा का प्रभाव से अछूता नहीं रहा। लेकिन जसगीत के साथ नृत्य की अपनी परंपरा है,जिसे यहां के लोग पसंद करते हैं। गरबा नृत्य के नाम चमक दमक से परिपूर्ण अधखुले बदन के कपडों पर नृत्य आम छत्तीसगढिया कभी पसंद नहीं करता और ना धार्मिक आयोजनों में वो इसका सम्मान नहीं करता।