कविता काव्य देश

 बहुत सुंदर है मेरी “माँ ” श्रीमती कल्पना शिवदयाल कुर्रे “कल्पना” साहित्यकार बेमेतरा(छ.ग.)

साहित्यकार परिचय
श्रीमती कल्पना कुर्रे  
माता /पिता – श्रीमती गीता घृतलहरे, श्री हेमचंद घृतलहरे 
पति – श्री शिवदयाल कुर्रे
संतत–्‍  पुत्र – 1. अभिनव 2. रिषभ
जन्मतिथि – 19 जून 1988
शिक्षा-
प्रकाशन-

पेशा – गृहणी

पता – ग्राम – कातलबोड़़
पोस्ट – देवरबीजा,
तहसील – साजा,
जिला – बेमेतरा (छ.ग.)
संपर्क- मो. – 8966810173

 बहुत सुंदर है मेरी “माँ “

बहुत सुंदर है मेरी मां,
सबको अपना बनाये।
तन से मन से,
बड़ा हृदय है उनका
छल-कपट ना जाने ,
सीधा सरल स्वभाव उनका
सबको अपना माने।

कितना भी कष्ट सह जाये अकेली,
कभी ना हार माने।
बहुत सुंदर है मेरी मां
सब को अपना बनाये।
सुरज की पहली किरण है ‘मां’
उजियारा फैलाये,
उज्ज्वलता की पहचान है वो,
सबको उज्ज्वल बनाएं।

दिन रात करें सब की सेवा,
ऐसा प्यार लुटाऐ।
बहुत सुंदर है मेरी मां,
सबको अपना बनाये।
संस्कारों की देवी है वो,
हमें भी संस्कारी बनाये।
शिक्षा देके पंख के,
उड़ना हमे‌ सिखायें।

ऊंचे ही पर उड़ना आकाश में
यही बात समझाये।
मन ही मन चिंता करें सब की,
कभी ना ये जतायें।
हमे पहले खाना खिलाकर,
खुद भुखी सो जायें।
माथे पर चुम्बन देकर,
नींद से हमें जगाये।

बहुत सुंदर है मेरी मां,
सब को अपना बनाये।
चोट हमें लग जाये तो,
मां को दर्द सतायें।
बच्चों को खुश देख वो,
मन ही मन मुसकाय।

जरा बिमार देखें मां तो,
दौड़ी -दौड़ी चली आये,
पहले गले लगा कर प्यार करे,
तब दवाई खिलायें।
घर की चौखट से खाली ना लौटे,
कोई ऐसा ज्ञान बतायें।

बड़े -बुढ़ो की सेवा करना,
हर पल हमें सिखायें।
बहुत सुंदर है मेरी मां,
सबको अपना बनाये।
कितनी ही उम्र हो जाये,
सारा जीवन प्यार निभायें।

मन जितना पवित्र उनका,
कर्म उतना ही पावन,
अच्छा चरित्र निर्माण कर,
बच्चों को बनाया सबका मनभावन।
मैं भी तो हूं परछाईं मां की,
क्यों -ना मैं भी उनके जैसे बन जाऊं
प्यार लुटाकर सेवाभाव से,
‘मां ‘ जैसी सुंदर कहलाऊं।।

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