(मनोज जायसवाल)
ऐसा भी माना जाता है, कि आपका इस जन्म में किसी से घनिष्टता, लगाव कहीं ना कहीं पूर्व जन्म के अधूरे संबंधों को पूरा किए जाने के नाम होता है। वरन कभी-कभी जिनसे भौतिक रूप से मुलाकात ना हो, उनका चेहरा तक नहीं देखा हो फिर भी कैसे अपना सा लगता है,जैसे जन्म जन्मांतर का रिश्ता हो। अनुभव करने के लिए आपको सबसे पहले सामान्य होना पडेगा। संवेदित होंगे तो इन रूहों के रिश्ते अपनेपन से भर देंगे। वरन वही कुछ उन अशिक्षितों का सा जीवन जिनके लिए शब्दों के लाईन के कोई अर्थ नहीं है। संवेदित दिल तो छीक से भी अंदाजा लगा लेते हैं,कि उन्हें कौन याद कर रहा है। वरन जिस दिल में प्यार नहीं उनके लिए तो काव्य की तरह आलेखों का लाईन भी कोई मायने नहीं रखते। प्रेम के गीत भी उन्हें फूहड़ लगते हैं। आप संवेदित हैं तो खुशियां है,प्यार है,अपनापन है,वरन जीवन पतझड के समान है। रूहों के रिश्तों को बंधन में बांधने के लिए आपमें निःस्वार्थ प्रेम के साथ समर्पण चाहिए।
कहीं ना कहीं आपसे लगाव रखने वाला या आप जिसे चाहे वो अपना ही है।प्रकृति क्यों उनसे संयोग कराने मनोमस्तिष्क पटल पर उस तंतु को सक्रिय करती है सीधे शब्दों में कहें तो प्रकृति ही मिलाने तत्पर रहती है, जिसके चलते जिन्हें आप अपना मानते हैं, नहीं जानते,वो कौन है नहीं मालूम ना उसकी उम्र! पर कोई न कोई स्नेहिल बंधन बनाये रखने की हसरत। ये हसरत पूरी भी होती है।
लेकिन प्रकृति की इस देन रिश्ते के साथ आप अपना व्यवहार किस तरह बनाए रखते हैं, यह आप पर निर्भर करता है। कि उस प्रकृति के उन आभासों में कितना निभा पाते हैं। स्नेहिल संबंधों को निभाना सरल भी है, जब आपके व्यवहार में बदलाव न हो। इगो भाव मन में ना आये। यदि मन में इगो भाव आये तो उसे खुद पूरी विनम्रता झुकने की क्षमता हो। लेकिन आपका व्यवहार अच्छा नही रहा तो फिर ये संबंध टूट जाते हैं।
तब आप पुनः किसी बेहतर संबंधों की आंतरिक तलाश में होते हैं। बेहतर मिले भी, लेकिन पूर्व के उस स्नेहिल संबंध की याद और उसकी टीस हमेशा कभी ना कभी जागृत करेगी। तब एक दूसरे के सामने होते वो मुलाकात तक नहीं हो पाएगी। एक दूसरे को देखते आवाज तक आप नहीं सुन पाएंगे। इगो जो आडे आएगी। फिर शायद यही अधूरा रिश्ता, मधुर संबंध अगले जन्म शायद मिलन को आतुर होते मस्तिष्क पटल पर स्मृति शेष रहे।