(मनोज जायसवाल)
जहां भी प्रेम के स्वरूप का दर्शन हो, वहां द्वेश,क्लेश,विद्वेश,जलन की नजर। जीवनचर्या का यही हाल है, अपने को न देख दूसरों को देखना। प्रेम किसी एक से बंधा स्वरूप नहीं। किसी की सुंदरता,किसी की प्रतिभा प्रेम के योग्य है तो उन्हें प्रेम क्यों ना मिले!
किसी के स्नेह सबंधों पर जलन,क्लेश को छोड अपनी प्रतिभा स्वयं स्नेह पात्र बनने की आवश्यकता है,जो प्रेम के काबिल बनाता है। आप जिनसे प्रेम करते हैं, उनसे और भी कई हजारों लोग प्रेम रख सकते हैं, जो उनकी प्रतिभा का परिणाम है।
पिछली जन्मों का सुखद एहसास इस जन्म के अच्छे प्रेम संबंधों में जुड़ने हमेशा आपकी मस्तिष्क पटल मे बसी रहे फिर वो ना मिल सकने वाली ख्वाहिश जहां उम्र की सीमा नहीं वो आपका प्रेम है,जिनसे बात किए बगैर अपने को अधूरा पाते हैं? जवाब सिर्फ अपने तक है,जिसे अपने उन तक व्यक्त किया जा सकता है जिनसे प्रेम है।
कई दफा यह पिछली जन्मों में अच्छे रहे संबंध जो कभी अकस्मात टूट गया हो और इस जन्म में मिलने आतुर हो। ऐसा माना जाता भी है। तो दूसरी ओर अच्छे संबंधों पर तिरछी नजर उन द्वेश भावों की दिल में मैल भरे लोगों का भी है,जो जलन भाव रखते हैं। जिनसे इनका कोई वास्ता नहीं होता। ना फायदा ना किसी प्रकार की हानि। लेकिन किंतु..परंतु आज यह बात कि जिनका जिनसे अच्छा संबध भी जीवनचर्या में किसी ना किसी कि किरकिरी बना रहता है। घनिष्ठ संबंधों को भी चाटुकारिता का नाम वो लोग देते हैं,जो प्रेम से अनभिज्ञ हैं।