साहित्यकार परिचय
श्रीमती कल्पना कुर्रे कल्पना
पिता – श्री हेमचंद घृतलहरे
पति – श्री शिवदयाल कुर्रे
पुत्र – 1. अभिनव 2. रिषभ
जन्मतिथि – 19 जून 1988
शिक्षा-
प्रकाशन-
पेशा – गृहणी
पता – ग्राम – कातलबोड़़
पोस्ट – देवरबीजा,
तहसील – साजा,
जिला – बेमेतरा (छ.ग.)
संपर्क- मो. – 8966810173,
”बांझ ”
” ठीक से सुबह हुई भी नहीं थी कि आराध्या की सास उसे जोर – जोर से चिल्लाने लगी तभी आराध्या दौड़ी – दौड़ी आई और बोली, क्या हुआ माँ जी ‘ सास बोली ‘ मैं गौशाला में चारा दे आई ,और अभी तक एक कप चाय भी नहीं मिली । अरे भाई एक कप चाय के लिए भी इसे बोलना पड़ता है ये नहीं कि खुद से ले आए, तभी ‘ससुर जी ‘ अरी भाग्यवान अभी सुबह के 6 भी नहीं बजे और तुम्हारा चिल्लाना शुरू हो जाता है । तभी ‘ सासु माँ ‘ तुम तो चुप ही रहो, दोक्ष- दो नमुने पाल रहे हो घर में एक बच्चा नहीं दे सकती दुसरी बछड़ा नहीं दे सकती हूँ अब तो पास पड़ोस वाले भी ताना मारते हैं , इन दोनों के वजह से।
आराध्या चुप चाप अपने सास की बातें सुन रही थी, और अपनी गाय जिसे ओ गौरी कहती थी उसे एक टक देखे जा रही थी । जो कि इतने सालों में एक भी बछड़ा नहीं दे पाई थी । बचपन के चोट के कारण गौरी के कमर में तकलीफ हो गई थी। ये बातें परिवार के सभी सदस्यों को पता थी , फिर भी सभी गौरी को बांझ गाय कहते थे। गौरी की एक बहन भी थी ,जो चार-चार बछड़ो की माँ थी। इसी कारण गौरी की अपेक्षा उसकी बहन को ज्यादा घास और देखभाल मिलता था, और गौरी को बांझ है बोलकर आधा पेट घास ही दे देते थे । आराध्या सोचती थी कि जब एक बेजुबान जानवर को ये लोग इतना सुनाते हैं तो मेरे बारे में क्या – क्या बोलते होंगे , क्यो कि आराध्या की शादी को छ: साल होने को आया था और अभी तक आराध्या माँ नहीं बन पाई थी।
हर दिन ऐसा ही चलता रहता । आराध्या अपना इलाज करवा रही थी, तभी कुछ महीनों बाद पता चला कि आराध्या माँ बनने वाली है । उसका जीवन खुशियों से भर गया। सभी बहुत खुश थे, खास कर सासु माँ , सब उसका ध्यान रखने लगे पर आराध्या, गौरी के लिए चिंतित थी क्योंकि गौरी आज भी उसी अंधेरे में खड़ी है जहां आराध्या पहले थी। धीरे – धीरे समय बिताता गया, फिर कुछ महीनों बाद आराध्या को बेटा हुआ। सारा परिवार खुश था। आराध्या अस्पताल से घर आ गई , तभी कुछ दिनो बाद पता चला कि गौरी माँ बनने वाली हैं। आराध्या बहुत खुश हुई, सासु मां , गौरी की देखभाल करने लगी, अच्छा घास, भूसा, पानी देने लगी।
गौरी कमजोर थी, कुछ महीनों के बाद वो दिन आ ही गया जब गौरी को प्रसव पीड़ा होने लगी। रात के 10 बजे थे सभी घर वाले उठ गये थे । गौरी की छटपटाहट देख कर आराध्या भी कहा सो पाती , कमरे से अंदर – बाहर कर रही थी । जैसे – जैसे रात बढ़ रही थी गौरी की हालत बिगड़ रही थी । रात के 2 बजे गौरी को एक प्यारा – सा बछड़ा हुआ। सभी उसके देखभाल में लग गए । आराध्या बहुत खुश थी, तभी गौरी की तबीयत खराब होने लगी , बचपन के चोट के कारण प्रसव के बाद गौरी के कमर में ताकत ही नहीं रही , वो उठ ही नहीं पाई । डॉक्टर को बुलवाया गया, सुई, दवाई लगने के बाद भी गौरी की हालत में सुधार नहीं आया ।
गौरी बहुत दर्द , तकलीफ और बेबसी से अपने बछड़े को देखती रही, गौरी के आंखों से आंसू निकल रहे थे। करीब सुबह के 5 बजे गौरी का देहांत हो गया। ” हाय रे किस्मत को भी तरस नहीं आया, एक बच्चे के लिए उसने पुरी जिन्दगी बांझ है सुनती रही, और उस बच्चे को जन्म देते ही मर गई, उसे अपना दुध भी ना पिला सकती । आज गौरी ने बांझ शब्द को भी हरा दिया। मर के भी बांझ शब्द को मार दिया ।ठीक से सुबह हुई भी नहीं थी कि आराध्या की सास उसे जोर – जोर से चिल्लाने लगी तभी आराध्या दौड़ी – दौड़ी आई और बोली, क्या हुआ माँ जी ‘ सास बोली ‘ मैं गौशाला में चारा दे आई ,और अभी तक एक कप चाय भी नहीं मिली ।
अरे भाई एक कप चाय के लिए भी इसे बोलना पड़ता है ये नहीं कि खुद से ले आए, तभी ‘ससुर जी ‘ अरी भाग्यवान अभी सुबह के 6 भी नहीं बजे और तुम्हारा चिल्लाना शुरू हो जाता है । तभी ‘ सासु माँ ‘ तुम तो चुप ही रहो, दोक्ष- दो नमुने पाल रहे हो घर में एक बच्चा नहीं दे सकती दुसरी बछड़ा नहीं दे सकती हूँ अब तो पास पड़ोस वाले भी ताना मारते हैं , इन दोनों के वजह से। आराध्या चुप चाप अपने सास की बातें सुन रही थी, और अपनी गाय जिसे ओ गौरी कहती थी उसे एक टक देखे जा रही थी । जो कि इतने सालों में एक भी बछड़ा नहीं दे पाई थी । बचपन के चोट के कारण गौरी के कमर में तकलीफ हो गई थी।
ये बातें परिवार के सभी सदस्यों को पता थी , फिर भी सभी गौरी को बांझ गाय कहते थे। गौरी की एक बहन भी थी ,जो चार-चार बछड़ो की माँ थी। इसी कारण गौरी की अपेक्षा उसकी बहन को ज्यादा घास और देखभाल मिलता था, और गौरी को बांझ है बोलकर आधा पेट घास ही दे देते थे । आराध्या सोचती थी कि जब एक बेजुबान जानवर को ये लोग इतना सुनाते हैं तो मेरे बारे में क्या – क्या बोलते होंगे , क्यो कि आराध्या की शादी को छ: साल होने को आया था और अभी तक आराध्या माँ नहीं बन पाई थी। हर दिन ऐसा ही चलता रहता । आराध्या अपना इलाज करवा रही थी, तभी कुछ महीनों बाद पता चला कि आराध्या माँ बनने वाली है ।
उसका जीवन खुशियों से भर गया। सभी बहुत खुश थे, खास कर सासु माँ , सब उसका ध्यान रखने लगे पर आराध्या, गौरी के लिए चिंतित थी क्योंकि गौरी आज भी उसी अंधेरे में खड़ी है जहां आराध्या पहले थी। धीरे – धीरे समय बिताता गया, फिर कुछ महीनों बाद आराध्या को बेटा हुआ। सारा परिवार खुश था। आराध्या अस्पताल से घर आ गई , तभी कुछ दिनो बाद पता चला कि गौरी माँ बनने वाली हैं। आराध्या बहुत खुश हुई, सासु मां , गौरी की देखभाल करने लगी, अच्छा घास, भूसा, पानी देने लगी। गौरी कमजोर थी, कुछ महीनों के बाद वो दिन आ ही गया जब गौरी को प्रसव पीड़ा होने लगी। रात के 10 बजे थे सभी घर वाले उठ गये थे ।
गौरी की छटपटाहट देख कर आराध्या भी कहा सो पाती , कमरे से अंदर – बाहर कर रही थी । जैसे – जैसे रात बढ़ रही थी गौरी की हालत बिगड़ रही थी । रात के 2 बजे गौरी को एक प्यारा – सा बछड़ा हुआ। सभी उसके देखभाल में लग गए । आराध्या बहुत खुश थी, तभी गौरी की तबीयत खराब होने लगी , बचपन के चोट के कारण प्रसव के बाद गौरी के कमर में ताकत ही नहीं रही , वो उठ ही नहीं पाई । डॉक्टर को बुलवाया गया, सुई, दवाई लगने के बाद भी गौरी की हालत में सुधार नहीं आया । गौरी बहुत दर्द , तकलीफ और बेबसी से अपने बछड़े को देखती रही, गौरी के आंखों से आंसू निकल रहे थे। करीब सुबह के 5 बजे गौरी का देहांत हो गया।
” हाय रे किस्मत को भी तरस नहीं आया, एक बच्चे के लिए उसने पुरी जिन्दगी बांझ है सुनती रही, और उस बच्चे को जन्म देते ही मर गई, उसे अपना दुध भी ना पिला सकती । आज गौरी ने बांझ शब्द को भी हरा दिया।मर के भी बांझ शब्द को मार दिया ।