”बरसात”
मौसम ने ली अंगड़ाई।
झूम के आई ऋतुओं की रानी।
झमा-झम बरसा पानी।
सौंधी-सौंधी खुशबु आई।
घन नाद कर बादल गरजा।
चमक उठी चंचल चपला।
नाचे मोर ,पपीहा गाये।
टर-टर दादुर बोल सुनाये।
हरीतिमा श्रृंगार करेगी।
धरती दुल्हन सी सजेगी।
सन-सन सन-सन चली पुरवाई।
गर्मी से सबने राहत पाई।
झूम उठे हर्षित हो किसान।
बोया बीज लहराएगा धान।
तृप्त हुए ताल तलैया।
सागर से मिलने मतवाली है नदियाँ।
बरसात नेह रस बरसाये।
पिय मिलन की लगन जगाये।
तीज-त्यौहार भी संग-संग आये।
बरसात है ऋतुओं की रानी।
बहुत सुन्दर कविता लिखते हो आप