(मनोज जायसवाल)
जब बस्तर मे बेटियों की शादी आम बस्तरियों से की जाती है, तो दहेज में सल्फी का पेड़ दिया जाता है। लेकिन अगर जिसकी बिटिया नहीं होती है तो उसके बाद उस व्यक्ति के भांजे को वह सल्फी का झाड़ देने का भी बस्तर के कुछ क्षेत्रों में उत्तराधिकार की परंपरा है।
सल्फी (वानस्पतिक नाम:Caryota urens / केरियोटा यूरेन्स) ताड़ कुल का एक पुष्पधारी वृक्ष है। इसे बस्तर बीयर के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि इससे एक मादक रस (बीयर) बनायी जाती है। एक दिन में करीब बीस लीटर तक मादक रस देने वाले इस पेड़ की बस्तर की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में एक महत्वपूर्ण स्थान है। एक पेड़ से साल में छह से सात माह तक मादक रस निकलता है। इसकी तुलना शराब से बिल्कुल नहीं करनी चाहिए जो शाकाहारी हैं,शराब का सेवन बिल्कुल भी नहीं करते वो भी इस प्राकृतिक रस का सेवन कर सकते हैं।
सल्फी के पेंड से नलनुमा एक डंडी निकलती है, और यहां से ही सल्फी रस निकाला जाता है। डंडी को नहीं काटने पर यह फूल आगे बढता जाता है। सल्फी और इमली की महत्ता सुदूर बस्तर के अर्थव्यवस्था में खासा महत्व रखता है। गत वर्ष पूर्व याद हो कि कि सरकार द्वारा महुए के फूल को खरीदने में प्रतिबंध लगाया गया था लेकिन यह फरमान नही टिक सका और फिर पुनः निर्णय लिया गया है कि लिया जाना है।
बस्तर में सल्फी महूए के साथ चार,तेंदू,भेलवा,चिरौंजी, आम आदि अन्य भी वनोपज है। जिसे बेचकर कईयों परिवार अपना घर भी चलाते है, लेकिन जिस प्रकार से वनोपज संग्रहण एवं इसके दर मेहनत के हिसाब से कम हुए हैं वह चिंता का विषय है। कोसा,लाख आदि बहुमूल्य वनोपजों को कम दर पर लिया जाना निहायत रूप से आज के मंहगाई के समय उचित नहीं है।बस्तर में हीं वनोपज के बदले अतीत में नमक दिया जाता रहा जिस समय जागरूकता की कमी और गरीबी के चलते लोग दे दिया करते थे।
इस प्रदेश के वनाच्छादित क्षेत्रों में वनोपजों को सम्मानजनक दरों में लिया जाना चाहिए। इन्हीं क्षेत्रों से आयुर्वेदिक महत्व की झाडियों की पत्तियों यथा भुई नीम,गिलोय आदि भी पर्याप्त मात्रा में उपलब्धता है, जिसका दूरस्थ शहरों में काफी कीमत है फिर भी यहां महत्व के हिसाब से देखा जाय तो कीमत कम ही है। इमली जैसी खाद्य चीजें जो देश के आम बाजारों में अच्छी दर पर बेची जाती है,बस्तर की उत्कृष्ट इमली का जवाब नहीं लेकिन इसकी दर और भी बढ़नी चाहिए।