आलेख

‘समय कल्चुरीवंश के एक होने का’ मनोज जायसवाल संपादक सशक्त हस्ताक्षर,कांकेर छ.ग.

(मनोज जायसवाल)
बताया जाता है कि छत्तीसगढ़ में हमारा बस्तर संभाग केरल जैसे प्रदेश से भी बड़ा है। बस्तर में आदिवासियों के बाद कलार समाज का वर्चस्व है। आदिकाल से आदिवासियों के साथ ही एक दूसरे से आजीविका के साधनों के साथ मिलीजुली जीवनचर्या रही है।

सुदूर इलाकों में वनोपज महुआ फूल,चार,तेंदू,हर्रा,बेहड़ा,आम,इमली सहित कई पेंड़ पौधे आर्थिक स्त्रोत रहे हैं। जीवन की महती वैवाहिक संबंधों में पहले पहल इमली के पौधों की गिनती के साथ रिश्ते स्थापित किये जाने का दौर भी चला है।

बस्तर जैसे विशाल संभाग में कलार संभाग का वर्चस्व तो है पर अभी भी डंड़सेना कलार समाज जिसके सदस्य यहां वास करते हैं प्रत्येक जिले में अपना संगठन दुरूस्त नहीं कर पाया है। समाज के कई चुनाव के बाद समाज जन आशा लगा रहे कि अब तो उनके संगठन का प्रत्येक जिले में जिलाध्यक्ष निर्वाचित हो पर ऐसा नहीं हो सका। जिलाध्यक्ष सहित अन्य पदों का निर्वाचन तो दूर समाज की मतदाता सूची भी तैयार नहीं हो सकी। भले ही आज समाज में संभागीय अध्यक्ष का चुनाव हो पर बस्तर का संभाग मुख्यालय जगदलपूर में भवन नहीं बनाया जा सका। प्रत्येक जिले में संगठन तैयार नहीं तो कैसे संभागीय का तमगा दिया जा सकता है? लेकिन मुख्य रूप से आज कोंडागांव और कांकेर को मिलाकर संभाग का तमगा दिया गया है।

 

समाज के लोग देख रहे हैं, लेकिन शायद उनकी ओर देखने वाला  कोई  नहीं है। संभागीय स्तर तो दरअसल उसी दिन पूर्ण रूप से कहा जायेगा जिस दिन समाज के प्रत्येक जिले में संगठन हो। बस्तर में समाज के पदस्थ उच्च अधिकारी कर्मचारियों से छत्तीसगढ़ के साथ बाहर प्रदेश के लोग भी वैवाहिक संबंध बिना किसी तामझाम और विचारों से बना रहे हैं,लेकिन अन्य लोगों के लिए तो आज भी मशक्कत करना पड़ता है। विचारणीय कि आप शासकीय सेवारत को कन्या देना पसंद करते हैं‚पर यहां से लेना पसंद नहीं करते क्योंॽ  आज भी अन्य शिक्षितजन बस्तर से बाहर के लोगों के लिए बस्तरिया,जंगलिया के नाम कहे जाते हैं। ऐसा बोलना ही बस्तर के लोगों की प्रतिष्ठा को शायद कम आंकना हो।

 

अब वो पिछड़ेपन का तमगा दिया जाने वाला बस्तर नहीं रहा। आज तो यहां की सामाजिक समरसता,यहां के लोगों का कृषि क्षेत्र में तकनीकी विकास,संस्कृति सभ्यता,प्रतिभाओं की उर्वरा धरती देश ही नहीं पूरे विश्व को आकर्षित कर रही है। बस्तर से वैवाहिक रिश्ते स्थापित करने के साथ ही बस्तर पर्यटन पर आना ही गर्व का विषय माना जा रहा है।

 

बस्तर में डंडसेना कलार समाज का संभागीय मुख्यालय में भवन के साथ ही संपूर्ण कलार जाति की गणना और प्रत्येक जिले में संगठन तैयार किये जाने पर कार्य को पूरा किया जाना समाजहित में होगा। इसके लिए ऊर्जावान समाजसेवकों की जरूरत पड़ेगी।

छत्तीसगढ़ में माता महामाया कल्चुरीवंशों की कुलदेवी कही जाती है,रतनपुर राजधानी हुआ करता था। आज जरूरत इस बात का है कि समस्त कल्चुरीवंश समाजहित में एक होने का।

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